नई दिल्ली। केंद्र की यूपीए सरकार के दौरान मनमोहन सिंह के पीएम रहते सरकार ने मुसलमानों की हालत बेहतर करने के लिए जस्टिस राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता में 7 सदस्यीय आयोग बनाया था। इसकी रिपोर्ट को भी तत्कालीन सरकार ने लागू किया था। अब सुप्रीम कोर्ट में सच्चर आयोग और उसकी इसी रिपोर्ट को चुनौती दी गई है। सच्चर आयोग की रिपोर्ट को चुनौती देने वाली याचिका में दलील दी गई है कि बिना कैबिनेट की मंजूरी लिए ही तत्कालीन पीएम यानी मनमोहन सिंह ने अपनी मर्जी से जस्टिस सच्चर की अध्यक्षता में आयोग बना दिया।
संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत राष्ट्रपति की तरफ से इस तरह के आयोग के गठन का आदेश जारी किया जा सकता है, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं हुआ। इसके अलावा किसी धर्म विशेष के फायदे के लिए अलग से ऐसा कदम उठाना संविधान के खिलाफ है।
सच्चर आयोग ने देश में मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक हालत का अध्ययन किया था। जिसके बाद इस संप्रदाय की भलाई के लिए आयोग ने सरकार को अपनी रिपोर्ट में सिफारिशें दी थीं। इन सिफारिशों में से कई को मनमोहन सरकार ने लागू किया था। अब सुप्रीम कोर्ट में दी गई याचिका में अपील की गई है कि आयोग ही गलत बना था, तो इसके सुझावों पर भी अमल न करने के निर्देश सरकार को दिए जाएं।
बता दें कि मनमोहन सिंह का पीएम रहते दिया गया एक बयान भी विवाद का विषय बन गया था। इस बयान में मनमोहन सिंह ने कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यक समुदाय का है। मनमोहन के इस बयान पर सवाल उठे थे कि जब संविधान ही नागरिकों में भेदभाव नहीं करता, तो पीएम को अल्पसंख्यकों को अलग से पहला हक देने का बयान नहीं देना चाहिए था।