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Uttarakhand: उत्तराखंड के धारचूला में 85 मुस्लिमों समेत 91 दुकानदारों के रजिस्ट्रेशन रद्द, लड़कियों को भगाए जाने के बाद लोगों की नाराजगी को देखते हुए व्यापार मंडल का फैसला

Uttarakhand: धारचूला के एसडीएम मंजीत सिंह ने बताया कि बाहरी लोगों के खिलाफ स्थानीय लोग नाराज हैं। उन्होंने बताया कि हालात को सुधारने के लिए धारचूला में सभी समुदायों के लोगों से बैठक की गई है। मामले को सुलझाने के लिए अभी और बैठक भी होंगी। फिलहाल प्रशासन ने यहां कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सभी व्यवस्था की है।

पिथौरागढ़। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के धारचूला में प्रांतीय उद्योग व्यापार मंडल ने 91 दुकानदारों के रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिए हैं। इनमें 85 मुस्लिम हैं। बाकी हिंदू समुदाय के हैं। जिन दुकानदारों के रजिस्ट्रेशन रद्द किए गए हैं, उनमें से ज्यादातर साल 2000 के बाद धारचूला आए थे और व्यापार करने लगे थे। साल 2000 में ही यूपी से अलग होकर उत्तराखंड राज्य बना था। व्यापारियों का संगठऩ धारचूला में दरअसल अभियान चला रहा है। व्यापारी संगठन लोगों से कह रहा है कि बाहरी लोगों खासकर मुस्लिमों को किराए पर दुकानें और घर न दें।

हिंदी अखबार नवभारत टाइम्स के मुताबिक प्रांतीय उद्योग व्यापार मंडल के महासचिव महेश गर्बयाल के हवाले से ये खबर दी है। अखबार की खबर के मुताबिक 1 फरवरी को अल्पसंख्यक समुदाय का एक शख्स 2 नाबालिग लड़कियों को ले गया था। इस घटना के विरोध में धारचूला के बाजार में व्यापारियों के संगठन ने प्रदर्शन भी किया था। पुलिस ने आरोपी को बरेली से गिरफ्तार किया था। उस पर अपहरण, यौन उत्पीड़न और पॉक्सो एक्ट में केस भी किया गया। इस घटना के बाद से ही धारचूला में बाहरी लोगों के खिलाफ माहौल बन गया। लोगों में काफी नाराजगी भी देखी जाने लगी। खासकर अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति स्थानीय लोग काफी नाराज हैं। जिसके नतीजे में व्यापारी संगठन ने कारोबारियों के रजिस्ट्रेशन रद्द करने का फैसला किया।

स्थानीय प्रशासन ने इस मामले में पीड़ितों को सुरक्षा देने का फैसला किया है। धारचूला के एसडीएम मंजीत सिंह ने अखबार को बताया कि बाहरी लोगों के खिलाफ स्थानीय लोग नाराज हैं। उन्होंने बताया कि हालात को सुधारने के लिए धारचूला में सभी समुदायों के लोगों से बैठक की गई है। मामले को सुलझाने के लिए अभी और बैठक भी होंगी। फिलहाल प्रशासन धारचूला में कानून और व्यवस्था की स्थिति को ठीक रखने में जुटा है। ये पहला मौका है, जब उत्तराखंड में अल्पसंख्यक समुदाय के प्रति कहीं इतनी नाराजगी देखी गई है।