
नई दिल्ली। सामाजिक और जाति आधारित जनगणना की मांग करने वाली जनहित याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। इस जनहित याचिका पर जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने सुनवाई की। जस्टिस रॉय ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि यह शासन के अधिकार क्षेत्र में है। हम इसमें क्या कर सकते हैं? इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि 94 देशों ने सामाजिक और जाति आधारित जनगणना को लागू किया है। भारत को अभी करना बाकी है। इंद्रा साहनी जजमेंट कहता है कि ऐसा समय-समय पर किया जाना चाहिए। इस पर जस्टिस रॉय ने कहा, क्षमा करें, हम इसे खारिज कर रहे हैं। यह नीतिगत मामला है और हम इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते।
पिछड़े और कमजोर वर्गों की भलाई के लिए केंद्र सरकार को सामाजिक और जाति आधारित जनगणना कराने का निर्देश देने की मांग वाली यह जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई थी। याचिका में कहा गया था कि इससे वंचित रह गए समूहों की पहचान हो सकेगी। साथ ही संसाधनों के बंटवारे में समानता आएगी। इसके साथ ये फायदा भी बताया गया है कि सामाजिक न्याय और संविधान के उद्देश्यों को हासिल किया जा सकेगा। नीतियों को लागू करने में निगरानी भी हो सकेगी। जनहित याचिका में यह भी कहा गया है कि सटीक डेटा मिलने से लोगों की सामाजिक और आर्थिक भलाई होगी और इसके साथ ही जनसांख्यिकी को समझने में भी मदद मिलेगी।
आपको बता दें कि जातिगत जनगणना की मांग सबसे पहले कांग्रेस ने उठाई थी। लोकसभा चुनाव में इसे विपक्षी दलों ने मुद्दा भी बनाया था। हाल के दिनों में मोदी सरकार में शामिल एलजेपी-आर के नेता चिराग पासवान ने भी जातिगत जनगणना कराने के पक्ष में बयान दिया है। वहीं बीएसपी सुप्रीमो मायावती इस मसले पर कांग्रेस को लगातार निशाने पर ले रही हैं। मायावती का कहना है कि कांग्रेस ने सबसे लंबे वक्त तक केंद्र में शासन किया, लेकिन तब जातिगत जनगणना क्यों नहीं कराई?