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J-K: मोदी सरकार की सख्ती से कश्मीर के पत्थरबाजों के हौसले पस्त, घटनाओं का ग्राफ हुआ तेजी से नीचे

Jammu-Kashmir: गृह मंत्रालय के आंकड़ों को देखें, तो 2019 मे जनवरी से जुलाई के बीच जो पत्थरबाजी की घटनाएं हुईं, उसके मुकाबले इस साल इनमें 88 फीसदी की कमी आई है। जबकि, घायल होने वालों का प्रतिशत भी 93 से घटकर 84 हो गया है। इसकी बड़ी वजह आतंकियों के खिलाफ जबरदस्त अभियान, बड़ी तादाद में सुरक्षाबलों की कमी और कोरोना प्रतिबंध माने जा रहे हैं।

श्रीनगर। संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार के सख्त रवैये और सुरक्षाबलों की गहन निगरानी से कश्मीर घाटी में पत्थरबाजी करने वालों के हौसले पस्त हुए हैं। ऐसे में सुरक्षाबलों पर पथराव की घटनाओं में बड़ी कमी हुई है। बीते दिनों ही जम्मू-कश्मीर पुलिस की सीआईडी ने आदेश जारी किया है कि पत्थरबाजों का किसी सरकारी योजना के लिए पुलिस वेरिफिकेशन नहीं किया जाएगा। अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक साल 2019 के बाद से पत्थरबाजी की घटनाओं में काफी कमी आई है। गृह मंत्रालय के मुताबिक साल 2019 में जनवरी से जुलाई के बीच पत्थरबाजी की 618 घटनाएं हुई थीं। पिछले साल इसी अवधि में 222 और इस साल जनवरी से जुलाई तक ऐसी 76 घटनाएं ही हुईं। इस तरह पत्थरबाजी में सुरक्षाबलों के जवानों के चोट लगने की घटनाएं 2019 में 64 और इस साल अब तक सिर्फ 10 ही हैं।

Kashmir Stone Platting

गृह मंत्रालय के आंकड़ों को देखें, तो 2019 मे जनवरी से जुलाई के बीच जो पत्थरबाजी की घटनाएं हुईं, उसके मुकाबले इस साल इनमें 88 फीसदी की कमी आई है। जबकि, घायल होने वालों का प्रतिशत भी 93 से घटकर 84 हो गया है। इसकी बड़ी वजह आतंकियों के खिलाफ जबरदस्त अभियान, बड़ी तादाद में सुरक्षाबलों की कमी और कोरोना प्रतिबंध माने जा रहे हैं।

home ministry

केंद्र सरकार के मुताबिक पैलट गन के इस्तेमाल और लाठीचार्ज में घायल होने वाले आम नागरिकों की संख्या भी कम हुई है। 2019 में 339 लोग घायल हुए थे। इस साल अब तक यह संख्या सिर्फ 25 लोगों की है। वहीं, आतंकियों की गिरफ्तारी की संख्या भी बढ़ी है। साल 2019 में जनवरी से जुलाई के बीच 82 आतंकवादी गिरफ्तार हुए थे। वहीं, इस साल जनवरी से जुलाई तक 178 दहशतगर्द धरे जा चुके हैं।

बता दें कि 2019 की 5 अगस्त को मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से जुड़े संविधान के अनुच्छेद 370 और 35-ए को खत्म कर दिया था। जिसके बाद इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटते हुए 72 दिन तक इंटरनेट और फोन सेवाएं बंद कर दी थी।