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स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर लिखे गए झूठे और अपमानजनक लेख के लिए ‘द वीक’ का माफीनामा

Article on Savarkar: ‘द वीक’ द्वारा लिखे गए माफीनामे को राष्ट्रभक्त लोगों की जीत मानी जा रही है और महापुरुषों का अपमान करने वाले संकीर्ण मानसिकता के लोगों की पराजय के रूप देखा जा रहा है।

नई दिल्ली। स्वातंत्र्यवीर सावरकर पर ‘द वीक’ पत्रिका में लिखे गए झूठे और अपमानजनक लेख को लेकर अब माफी मांगी गई है। बता दें कि द वीक पत्रिका में वीर सावरकर के लिए अपमानजनक शब्दों में झूठा लेख लिखा गया था। जिसपर अब पत्रिका ने माफी मांगी है। ‘द वीक’ द्वारा लिखे गए माफीनामे को राष्ट्रभक्त लोगों की जीत मानी जा रही है और महापुरुषों का अपमान करने वाले संकीर्ण मानसिकता के लोगों की पराजय के रूप देखा जा रहा है। बता दें कि 24 जनवरी, 2016 को निरंजन टाकले नाम के पत्रकार का एक लेख ‘द वीक’ ने प्रकाशित किया था, जिसका शीर्षक ‘लैंब लायोनाइज्ड’ था। इस लेख को लेकर विवाद भी हुआ। इस लेख को वीर सावरकर की प्रतिष्ठा को धूमिल करने के उद्देश्य से लिखा गया था और साथ ही इसमें मनगढ़ंत और तथ्यहीन बातें लिखी गयीं थी। दावा किया गया कि, इस लेख में तथ्यों को तोड़-मरोड़कर कर प्रस्तुत किया गया।

बता दें कि ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक’ ने इस आलेख को चुनौती दी थी। 23 अप्रैल, 2016 को सबसे पहले प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया में इसकी लिखित शिकायत की गई। हालांकि परन्तु प्रेस काउंसिल कहां, इस तरह के मामलों पर संज्ञान लेती है। जगजाहिर है कि राष्ट्रीय विचार से जुड़े विषयों पर उसकी उदासीनता सदैव ही देखने को मिली है, उसका कारण सब जानते ही हैं। उसके बाद स्मारक इस लेख के विरुद्ध याचिका लेकर न्यायालय पहुँच गया और हम देखते हैं कि न्यायालय में झूठ टिक नहीं सका। इससे पहले वीर सावरकर के सम्बन्ध में आपत्तिजनक कार्यक्रम के प्रसारण के लिए एबीपी माझा भी लिखित माफी मांग चुका है। सोचिये, इतिहास में इस तरह के लोगों ने कितना और किस प्रकार का झूठ परोसा होगा?

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वीर सावरकर के संबंध में अन्य ‘द आयर-वायर’ जैसी कई वेबसाइट्स पर भी निरंजन टाकले और उनके जैसे अन्य तथाकथित पत्रकारों के प्रदूषित विचार पढ़ने को मिलते हैं। प्रोपेगैंडा के उद्देश्य से निकल रहीं इस प्रकार की वेबसाइट्स को थोड़ी शर्म हो तो वे भी ‘द वीक’ से सबक लेकर खेद प्रकट कर सकती हैं। या फिर उनके संपादक/संचालक भी यह काम कर सकते हैं। पर, वे माफी मांगेंगे नहीं, जब तक उनको न्यायालय में घसीटा न जाए। दरअसल, वे झूठ फैलाना अपना अधिकार समझते हैं। अगर उनके झूठ पर सवाल उठाओ और कानूनी कार्यवाही करो तो वे ‘अभिव्यक्ति की आज़ादी’ का नारा लगाने लगते हैं। वे ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ जैसे मौलिक और महत्वपूर्ण अधिकार की आड़ में झूठ और प्रोपेगैंडा फैलाना चाहते हैं, जो अब मुश्किल है।

याद रखिये कि पांच साल बाद, ‘द वीक’ के प्रबंधक ने भी माफी इसलिए ही मांगी है क्योंकि वे इस बीच लेख में परोसे गए झूठ को न्यायालय के सामने सही सिद्ध नहीं कर सके। अगर ‘स्वातंत्र्यवीर सावरकर राष्ट्रीय स्मारक’ न्यायालय नहीं जाता तो ये कभी माफ़ी मांगते नहीं। इस प्रकरण में अब तक 21 सुनवाइयां हो चुकी हैं। 10 दिसंबर, 2019 को आरोपियों को 15 हजार रुपये के निजी मुचलके पर जमानत मिली। जब प्रबंधक को लगा कि न्यायालय में वे इस प्रकरण में फंस चुके हैं, उनके पास सच नहीं है। तब उन्होंने 23 मई, 2021 को प्रकाशित ‘द वीक’ में इस लेख के सम्बन्ध में खेद प्रकट किया और वीर सावरकर का अपमान होने के लिए जिम्मेदार लेख के लिए क्षमा याचना की है।

‘द वीक’, उसके संपादक, पत्रकारों और उन जैसे अन्य दुराग्रही लोगों को थोड़ा अपने गिरेबां में झांककर देखना चाहिए, जो अपने वैचारिक स्वार्थों के कारण ऐसे व्यक्तित्व के प्रति दुष्प्रचार करते हैं जिनका न केवल स्वयं का जीवन अपितु उनका सम्पूर्ण परिवार भारत माता की सेवा में समर्पित रहा। देश की स्वतंत्रता के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों के संचालन के कारण सावरकर ने ‘कालापानी’ की कठिनतम सजा भोगी।

आश्चर्य होता है इन लोगों की समझ पर जो नक्सली आतंकी गतिविधियों के आरोपियों को ‘सामान्य जेल’ से मुक्त कराने के लिए देशभर में हस्ताक्षर अभियान चलाते हैं और ‘कालापानी’ से बाहर आने के सावरकर के कानूनी अधिकार को ‘माफीनामा’ कहकर प्रोपेगैंडा करते हैं। जो स्वयं उस समय अंग्रेजों के साथ खड़े थे, आज सावरकर जैसे महान व्यक्तित्व पर ‘अंग्रेजों का सहयोगी’ होने का मिथ्यारोप लगाते हैं। जो स्वयं मुस्लिम लीग की ‘पाकिस्तान निर्माण की मांग’ को अपने बौद्धिक पराक्रम से समर्थन दे रहे थे, वे झूठे लोग आज सावरकर को द्विराष्ट्र सिद्धांत का जनक बताते हैं। इतना झूठ परोसा गया है कि उसके लिए उनकी सात पुस्ते भी माफी मांगें तो कम है।

बहरहाल, यह माफी उन सब लोगों के मुंह पर जोरदार तमाचा है जो गाहे-बगाहे ‘भारत माता के सच्चे पुत्रों’ पर अपमानजनक टीका-टिप्पणी करते रहते हैं। वीर सावरकर को ‘भारत माता का निष्ठावान पुत्र’ महात्मा गांधीजी ने कहा है। अपने समाचार पत्र ‘यंग इंडिया’ में महात्मा गांधीजी ने 18 मई, 1921 को विनायक सावरकर और गणेश सावरकर, दोनों भाईयों के लिए लिखते हुए यह प्रश्न उठाया था कि इन दोनों प्रतिभाशाली भाईयों को ‘शाही घोषणा’ के बाद भी अब तक क्यों नहीं छोड़ा गया है। सावरकर उस समय अपने भाई के साथ कालापानी में कठोर सजा भोग रहे थे।

सोचिये, महात्मा गांधी स्वयं जिनका सम्मान करते थे, उनका अपमान आज कुछ लोग करते हैं और बड़ी बेशर्मी से ये खुद को गांधीवादी बताते हैं।

अब आईये, जानते हैं कि ‘द वीक’ ने मई-2021 के अपने अंक में खेद प्रकट करते हुए क्या लिखा है? ‘द वीक’ ने वीर सावरकर पर लिखे गए अपमानजनक और झूठे लेख के लिए माफी मांगते हुए लिखा है – “विनायक दामोदर सावरकर पर एक लेख 24 जनवरी, 2016 को ‘द वीक’ में प्रकाशित किया गया था। इसका शीर्षक ‘लैंब लायोनाइज्ड’ था और कंटेंट पेज में ‘हीरो टू जीरो’ के रूप में उल्लेख किया गया था, उसे गलत समझा गया और यह उच्च कद वाले वीर सावरकर की गलत व्याख्या करता है। हम वीर सावरकर को अति सम्मान की श्रेणी में रखते हैं। यदि इस लेख से किसी व्यक्ति को कोई व्यक्तिगत चोट पहुंची हो, तो पत्रिका प्रबंधन खेद व्यक्त करता है और इस तरह के प्रकाशन के लिए क्षमा चाहते हैं।” उम्मीद है कि ‘द वीक’ की यह माफी बाकी सब ओछे मन के लोगों के लिए सबक बनेगी और वे देशहित में अपना सर्वस्व अर्पित करने वाली महान विभूतियों का अपमान करने से बाज़ आएंगे।