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Kiren Rijiju On Judiciary: ‘कुछ वकील ही कमाते हैं करोड़ों, जज भी देते रहते हैं तारीख पर तारीख’, केंद्रीय कानून मंत्री ने फिर सुनाई खरी-खरी

किरेन रिजिजू इससे पहले भी संसद में अदालतों के बारे में बयान देकर चर्चा में रहे हैं। कोर्ट में होने वाली छुट्टियों के मसले पर उन्होंने सवाल उठाए थे। इस साल सुप्रीम कोर्ट में शीतकालीन अवकाश के दौरान कोई भी बेंच नहीं है। पहली बार ऐसा हुआ है, जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के लिए किसी जज की बेंच नहीं रखी गई है।

कुरुक्षेत्र। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने एक बार फिर जजों और वकीलों के कामकाज के तौर-तरीकों पर सवाल खड़े किए हैं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में सोमवार को अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के 16वें राष्ट्रीय सम्मेलन में रिजिजू ने इन पर निशाना साधा। रिजिजू ने कहा कि अदालतों में पेंडिंग मामलों की भरमार है। कुछ वकील तारीख मांगते रहते हैं और कुछ जज उनको तारीख देते भी रहते हैं। ऐसे में जिन लोगों पर न्याय देने की जिम्मेदारी है, वे न्याय देने में सक्षम नहीं रहते। रिजिजू ने कहा कि न्याय देने में देरी नहीं करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में कुछ वकील ऐसे हैं, जिनकी तारीखें पहले आती हैं। कुछ वकील कहते हैं कि अगर उन्हें केस मिलेगा, तो वे जीतकर दिखा देंगे।

रिजिजू ने ये भी कहा कि कुछ वकील एक बार की पेशी के लिए 30 से 40 लाख की मोटी फीस लेते हैं और कुछ वकीलों के पास काम नहीं होता। उन्होंने कहा कि सबके लिए एक जैसे नियम कायदे हैं, तो फिर ऐसा क्यों है? किरेन रिजिजू ने आगे कहा कि कुछ वकील हैं, जो सारे बड़े केस ले लेते हैं और उनसे करोड़ों की कमाई करते हैं। बड़े वकीलों को सारा स्पेस खुद नहीं लेना चाहिए। उन्हें छोटे वकीलों के लिए भी जगह छोड़नी चाहिए। केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के वकील निचली अदालतों में भी जाकर प्रैक्टिस कर सकते हैं। आखिर कोर्ट तो कोर्ट होता है।

kiren rijiju

किरेन रिजिजू इससे पहले भी संसद में अदालतों के बारे में बयान देकर चर्चा में रहे हैं। कोर्ट में होने वाली छुट्टियों के मसले पर उन्होंने सवाल उठाए थे। इस साल सुप्रीम कोर्ट में शीतकालीन अवकाश के दौरान कोई भी बेंच नहीं है। पहली बार ऐसा हुआ है, जब सुप्रीम कोर्ट में आकस्मिक सुनवाई के लिए किसी जज की बेंच नहीं रखी गई है। माना जा रहा है कि सरकार और न्यायपालिका के बीच ये टकराव की स्थिति है। पहले भी मोदी सरकार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कानून लाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम ही संवैधानिक है। जबकि, कॉलेजियम सिस्टम की शुरुआत साल 1993 से हुई थी। उससे पहले जजों की नियुक्ति केंद्र सरकार ही करती रही थी।