कुरुक्षेत्र। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने एक बार फिर जजों और वकीलों के कामकाज के तौर-तरीकों पर सवाल खड़े किए हैं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में सोमवार को अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद के 16वें राष्ट्रीय सम्मेलन में रिजिजू ने इन पर निशाना साधा। रिजिजू ने कहा कि अदालतों में पेंडिंग मामलों की भरमार है। कुछ वकील तारीख मांगते रहते हैं और कुछ जज उनको तारीख देते भी रहते हैं। ऐसे में जिन लोगों पर न्याय देने की जिम्मेदारी है, वे न्याय देने में सक्षम नहीं रहते। रिजिजू ने कहा कि न्याय देने में देरी नहीं करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में कुछ वकील ऐसे हैं, जिनकी तारीखें पहले आती हैं। कुछ वकील कहते हैं कि अगर उन्हें केस मिलेगा, तो वे जीतकर दिखा देंगे।
There’re so many pending cases in courts. Some lawyers keep on asking for dates&some judges even give them. So, people responsible for delivering justice aren’t able to deliver justice:Union Law Minister at 16th National Conference of Akhil Bharatiya Adhivakta Parishad in Haryana pic.twitter.com/dFFsIAU0Ru
— ANI (@ANI) December 26, 2022
रिजिजू ने ये भी कहा कि कुछ वकील एक बार की पेशी के लिए 30 से 40 लाख की मोटी फीस लेते हैं और कुछ वकीलों के पास काम नहीं होता। उन्होंने कहा कि सबके लिए एक जैसे नियम कायदे हैं, तो फिर ऐसा क्यों है? किरेन रिजिजू ने आगे कहा कि कुछ वकील हैं, जो सारे बड़े केस ले लेते हैं और उनसे करोड़ों की कमाई करते हैं। बड़े वकीलों को सारा स्पेस खुद नहीं लेना चाहिए। उन्हें छोटे वकीलों के लिए भी जगह छोड़नी चाहिए। केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के वकील निचली अदालतों में भी जाकर प्रैक्टिस कर सकते हैं। आखिर कोर्ट तो कोर्ट होता है।
किरेन रिजिजू इससे पहले भी संसद में अदालतों के बारे में बयान देकर चर्चा में रहे हैं। कोर्ट में होने वाली छुट्टियों के मसले पर उन्होंने सवाल उठाए थे। इस साल सुप्रीम कोर्ट में शीतकालीन अवकाश के दौरान कोई भी बेंच नहीं है। पहली बार ऐसा हुआ है, जब सुप्रीम कोर्ट में आकस्मिक सुनवाई के लिए किसी जज की बेंच नहीं रखी गई है। माना जा रहा है कि सरकार और न्यायपालिका के बीच ये टकराव की स्थिति है। पहले भी मोदी सरकार हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कानून लाई थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम ही संवैधानिक है। जबकि, कॉलेजियम सिस्टम की शुरुआत साल 1993 से हुई थी। उससे पहले जजों की नियुक्ति केंद्र सरकार ही करती रही थी।