newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

Who is Vijay Yadav: वेल्डर पिता के बेटे ने गरीबी के बीच सीखा जूडो, अब भारत के लिए गोल्ड लाना है मकसद

Who is Vijay Yadav: विजय यादव पापा वेल्डिंग का काम करते थे। उनके परिवार में 5 भाई-बहन हैं। यानी की मां-पिता को मिलकर 7 सदस्य हो जाते है। चूंकि पिता का वेल्डिंग का काम करते थे जिसकी वजह से उनके परिवार वालों को दो जून की रोटी भी बड़ी मुश्किल से नसीब होती थी। इतना ही अपना एक टाइम का भरपेट खाना मिल सके। इसलिए विजय यादव ने खेल सेंटर पर जाना शुरू कर दिया। ताकि अगर मेरा चयन किसी खेल में हो जाए तो मुझे भरपेट खाना तो मिलेगा।

नई दिल्ली। कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 का आगाज हो गया है। इस बार भारत को अपने खिलाड़ियोंं से शानदार प्रदर्शन की उम्मीद है। पिछले बार के मुकाबले इस बार कॉमनवेल्थ गेम्स ज्यादा मेडल जीतने का भरोसा है। लेकिन कॉमनवेल्थ खेलों के बीच अब ऐसे खिलाड़ी की कहानी के बारे में बताने जा रहे है। जो अपको को भी मोटिवेट कर सकती है। भले ही जिदंगी में कितना संघर्ष करना पड़े, लेकिन इरादे बुलंद हो तो कुछ भी हासिल किया जा सकता है। हम बात कर रहे हैं जूडो खिलाड़ी विजय यादव की। जो इस बार 60 किलो वेट में बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को गोल्ड मेडल दिलाने के इरादे से अपना दमखम दिखाएंगे।

कॉमनवेल्थ खिलाड़ी विजय के घर में ‘दो जून की रोटी नहीं’

विजय यादव पापा वेल्डिंग का काम करते थे। उनके परिवार में 5 भाई-बहन हैं। यानी की मां-पिता को मिलकर 7 सदस्य हो जाते है। चूंकि पिता का वेल्डिंग का काम करते थे जिसकी वजह से उनके परिवार वालों को दो जून की रोटी भी बड़ी मुश्किल से नसीब होती थी। इतना ही अपना एक टाइम का भरपेट खाना मिल सके। इसलिए विजय यादव ने खेल सेंटर पर जाना शुरू कर दिया। ताकि अगर मेरा चयन किसी खेल में हो जाए तो मुझे भरपेट खाना तो मिलेगा। हिंदी अखबार दैनिक भास्कर को दिए इंटरव्यू में विजय ने अपनी जिंदगी के उन पन्नों को खोला जिन्हें याद करके उनकी आंखें भर आती हैं। जूडो से अपने करियर की शुरूआत करने के बारे में विजय बताते हैं कि मुझे जूडो जैसे खेल के बारे में पता नहीं था। हमारी आर्थिक स्थिति इतनी खराब थी कि पापा के लिए हम सभी के लिए एक टाइम के संतुलित भोजन की व्यवस्था करना भी मुश्किल था। मुझे सिर्फ इतना पता था कि अगर मैं कोई भी खेल खेलता हूं और मेरा चयन UP सरकार की खेल एकेडमी में हो जाता है तो मुझे भरपेट खाना तो मिलेगा। आगे चलकर सब कुछ अच्छा रहा तो नौकरी भी मिल जाएगी।

इसी मन के साथ मैंने बनारस में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया के सेंटर पर जाना शुरू किया। वहां पर मुझे जूडो के बारे में पता चला। बाद में मेरा चयन जूडो खेल के आवासीय सेंटर में हो गया। विजय यादव ने बताया कि परिवार में हम तीन भाई और दो बहन हैं, पिताजी वेल्डिंग का काम करते थे। उन्हीं की कमाई से हमारा सात लोगों का परिवार चलता था। पापा को जो थोड़े-बहुत पैसे मिलते, उसी से राशन आता था। खेल ने मुझे इन मुश्किलों से बाहर निकाला है, अब देश के लिए कुछ करना है।

विजय यादव ने जूडो की शुरुआत कैसे की?

कॉमनवेल्थ गेम्स तक पहुंचने के लिए भी विजय को खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। उनके आर्थिक हालात इस कदर खराब थे कि सेंटर तक जाने के लिए ऑटो या गाड़ी का किराया उनके पास नहीं होता था तो वो कई बार साइकिल वालों से या कभी अन्य वाहनों से लिफ्ट लेकर घर से 10-15 किमी दूर अपने सेंटर पर पहुंचते थे और कई बार तो ऐसा भी हुआ जब उन्हें लिफ्ट नहीं मिली तो ये पूरा रास्ता उन्होंने पैदल ही तय किया। कॉमनवेल्थ गेम्स को लेकर विजय की तैयारी पूरी है वो कहते हैं कि दिल्ली के कैंप में ट्रेनिंग लेने और इसके अलावा यूरोप में ट्रेनिंग और चैंपियनशिप में हिस्सा लेने का उन्हें कॉमनवेल्थ गेम्स में भी जरूर फायदा मिलेगा।

जब विजय से पूछा गया कि वो क्या मानते हैं कि इन गेम्स में उन्हें कौन कड़ी चुनौती दे सकता है तो उन्होंने कहा कि मेरे वेट में इंग्लैंड का जूडो प्लेयर है जिससे मुझे पार पाना होगा और अगर मैं इससे जीत लेता हूं तो मैं मेडल तक का सफर जरूर तय कर लूंगा। अब देखना ये होगा कि विजय का ये आत्मविश्वास जूडो में भारत की जय जय करवा पाता है या नहीं।