नई दिल्ली। पिछले कई माह से दुनिया रूस-यूक्रेन के भू-राजनीति में किसी बड़े अनिष्ट की आशंका से डर रही है। हालिया समय में रूस द्वारा यूक्रेन की सीमा पर 1 लाख से भी ज्यादा फौजों की तैनाती और अमेरिका व उसके सहयोगी देशों द्वारा इसको लेकर रूस को धमकी के बीच दुनिया भर के शेयर बाजारों में कई बार उतार-चढ़ाव देखने को मिल चुके हैं। इसके अलावा कच्चे तेलों के दाम हों या फिर ईंधनों की कीमत, इनमें भी हमें काफी परिवर्तन देखने को मिले हैं। भारत के संदर्भ में देखें तो भारतीय शेयर बाजार भी इससे अछूते नहीं रहे हैं। लेकिन इन तमाम आशंकाओं के बीच राहत की खबर सुनने को मिल रही हैं और वह ये कि वे रूसी सैनिक जो यूक्रेन की सीमा पर तैनात थें अब वे अपने बेस स्टेशन पर वापस लौटने लगे हैं। समाचार एजेंसी एएफपी ने अपनी सूत्रों के हवाले से खबर दी है कि जर्मनी से बातचीत के बाद यूक्रेन बॉर्डर पर तैनात रूसी सैनिक अब अपने ठिकानों पर वापस लौट रहे हैं। इसके अलावा रूस द्वारा कदम पीछे खींचे जाने की जो वजह बतायी जा रही है वह ये कि पश्चिमी देशों के संयुक्त और गहन राजनयिक प्रयासों से यह अहम मोड़ देखने को मिल रहा है।
उम्दा पहल में जर्मनी की अहम भूमिका
समाचार एजेंसी एएफपी के अनुसार, सैनिकों के वापसी की प्रक्रिया में जर्मनी ने अहम भूमिका निभाई है। गौरतलब है कि बाल्टिक लीडर्स चर्चा के लिए जर्मनी में एकत्रित हैं और इन नेताओं की मौजूदगी में जर्मनी के चांसलर ओलाफ स्कॉल्ज ने रूस को लगभग वार्निंग देते हुए कहा था कि वह तनाव बढ़ाकर पश्चिमी सहयोगियों के धैर्य की परीक्षा न ले। स्कॉल्ज ने कहा था कि यह हम सभी के लिए नाजुक स्थिति है। रूस को हमारी एकता को कमजोर नहीं समझना चाहिए। हम यूरोपीय संघ व नाटो समूह के साथ एकजुट हैं। इसके अलावे स्कॉल्ज ने यह भी कहा था कि हम अपने सहयोगियों की चिंताओं को बहुत गंभीरता से लेते हैं। इसके बाद युद्ध की आशंका अब कम होती दिख रही है क्योंकि रूस द्वारा अब अधिकारिक तौर पर अपने सैनिकों को वापस बुलाने की बात कही गई है।
विवाद के जड़ में क्या है?
दरअसल, यूक्रेन पश्चिमी देशों के साथ अपना संबंध मजबूत करना चाहता है और उसकी इच्छा नाटो में शामिल होने की भी है। नाटो 1949 में स्थापित 30 यूरोपीय सदस्य देशों का एक संगठन है जिसका मुख्य उद्देश्य रूस और साम्यवाद के प्रसार को रोकना है। इसके अलावा इसकी विशेषता यह है कि अगर कोई तीसरा देश इसके सदस्य देशों पर हमला करता है तो वह हमला समूह पर हमला माना जाएगा, और पूरा समूह लामबंद होकर उस हमले का मुकाबला करेगा। रूस के लिए यही चिंता की बात है, क्योंकि यदि रूस भविष्य में यूक्रेन पर हमला करे और यूक्रेन नाटो का सदस्य हो तो फिर तीसरे विश्वयुद्ध से दुनिया को कोई नहीं रोक पाएगा। गौरतलब है 2014 में रूस ने यूक्रेन के दक्षिणी हिस्से यानी क्रीमिया को कब्जा लिया था। रूस की यह चिंता है कि यदि यूक्रेन नाटो में शामिल होता है तो उसकी जमीन का इस्तेमाल पश्चिमी ताकतें कर सकती हैं। इसके अलावा रूस यह भी चाहता है कि नाटो का पूर्वी यूरोप में विस्तार और अधिक न हो।