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Pradosh Vrat 2021 : अपने दुख-दर्द दूर करने के लिए भौम प्रदोष व्रत के दिन पढ़ें ये कथा, होंगे कई लाभ

Pradosh Vrat 2021 : हर महीने त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2021) पड़ता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत आज यानी 16 नवंबर, मंगलवार को मनाया जा रहा है। ये व्रत मंगलावर को पड़ रहा है इसलिए इसे भौम प्रदोष व्रत (Bhaum Pradosh Vrat 2021) कहा जाता है।

नई दिल्ली। हर महीने त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat 2021) पड़ता है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत आज यानी 16 नवंबर, मंगलवार को मनाया जा रहा है। ये व्रत मंगलावर को पड़ रहा है इसलिए इसे भौम प्रदोष व्रत (Bhaum Pradosh Vrat 2021) कहा जाता है। इस दिन भगवान शिव (Lord Shiva) की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। प्रदोष व्रत का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा और व्रत करने से विशेषफल की प्राप्ति होती है। अगर आप अपने दुख-दर्द दूर करना चाहते हैं तो इस दिन व्रत कथा पढ़ें, जिसे हम नीचे बता रहे हैं।

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पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई सहारा नहीं था इसलिए वह सुबह होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। वह खुद का और अपने पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा।

एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार पसंद आ गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। वैसा ही किया गया।

ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करने के साथ ही भगवान शंकर की पूजा-पाठ किया करती थी। प्रदोष व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के साथ फिर से सुखपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। मान्यता है कि जैसे ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के प्रभाव से दिन बदले, वैसे ही भगवान शंकर अपने भक्तों के दिन फेरते हैं।