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Sharad Purnima 2022 Katha: क्यों मनाते हैं शरद पूर्णिमा का त्योहार, जानिए क्या है इसकी पौराणिक कथा?

शरद पूर्णिमा को आश्विन पूर्णिमा, कोजगारी पूर्णिमा और कौमुदी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। यही कारण है कि इसे अमृत काल भी कहा जाता है।

नई दिल्ली। सनातन धर्म में माने जाने वाले कई प्रमुख त्योहारों में से एक है शरद पूर्णिमा का त्योहार, जो कि इस साल 09 अक्टूबर, रविवार के दिन पड़ रहा है। ये पर्व हर साल आश्विन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा को आश्विन पूर्णिमा, कोजगारी पूर्णिमा और कौमुदी व्रत के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण होता है। यही कारण है कि इसे अमृत काल भी कहा जाता है। इसके अलावा, इसे महालक्ष्मी के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान इसी दिन मां लक्ष्मी प्रकट हुई थीं।

कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन मां लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ गरूड़ पर बैठकर भ्रमण के लिए निकलती हैं और भक्तों पर अपनी कृपा बरसाती हैं। ऐसी मान्यता है कि जिस घर में अंधेरा या सोता हुआ व्यक्ति नजर आता है मां लक्ष्मी उसके दरवाजे से ही लौट जाती हैं। वहीं, जिन लोगों पर मां लक्ष्मी की कृपा होती है उन्हें कर्ज से छुटकारा मिल जाता है। यही वजह है कि इसे कर्ज मुक्ति पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

शरद पूर्णिमा व्रत की पौराणिक कथा

एक प्रचलित धार्मिक कथा के अनुसार, एक समय में साहूकार की दो बेटियां पूर्णिमा का व्रत रखा थीं। एक बार बड़ी बेटी ने पूर्णिमा का व्रत रख कर विधि पूर्वक पूजन किया लेकिन छोटी बेटी ने व्रत छोड़ दिया। परिणामस्वरूप छोटी लड़की के बच्चों की जन्म लेते ही मृत्यु होने लगी। एक बार ऐसा हुआ की उसकी बड़ी बहन के पुण्य स्पर्श से छोटी लड़की का एक बालक जीवित हो गया था। उसी दिन से ये व्रत रखकर उसका विधिपूर्वक पूजन किया जाने लगा।