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बिहार में हाशिए पर जाती कांग्रेस

2015 में पांच चरणों में हुए बिहार के विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को उसकी उम्मीद से ज्यादा सीटें मिलीं। इन चुनावों में कांग्रेस 41 सीटों पर चुनाव लड़ी जिसमें उसे 27 सीटों पर सफलता हासिल हुई। 2020 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस राजद एवं वाम दलों के साथ गठबंधन कर 70 सीटों पर चुनाव लड़ीं

बिहार में कांग्रेस की दुर्गति साफ नजर आ रही है। कभी दूसरों को सीट बांटने वाली कांग्रेस आज लालू के सामने घुटने टेकने के लिए मजबूर है। लालू जो चाह रहे हैं उसी हिसाब से टिकट तय हो रहे हैं। कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस को बिहार में कोई तरजीह नहीं दी जा रही है। आपको याद होगा जब पटना में विपक्षी एकता की पहली बैठक हुई थी। तब लालू ने राहुल गांधी को दूल्हा और खुद बाराती बनने का वादा किया था। इसके बाद भी कांग्रेस को वहां पर कोई भाव नहीं मिल रहा है। उल्टे राजद उन सीटों पर भी प्रत्याशी उतारने जा रहा है जो सीट कांग्रेस उससे मांग रही थी।

इसका सबसे ताजा उदाहरण है पप्पू यादव, उन्होंने हाल ही में अपनी जनाधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था। उन्हें पूर्णिया से टिकट मिलने की उम्मीद थी, लेकिन लालू यादव ने यह सीट कांग्रेस के लिए न छोड़ते हुए अपने पास रख ली और आगामी लोकसभा चुनाव के लिए जदयू से राजद में आईं बीमा भारती को यहां से उम्मीदवार घोषित कर दिया। हालांकि पप्पू यादव भी अड़ गए हैं। पप्पू यादव ने यहां से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। उनका कहना है कि वह कांग्रेस के बैनर तले यहीं से चुनाव लड़ेंगे और वह 2 अप्रैल को नामांकन दाखिल करेंगे। अब ऊंट किस करवट बैठता है ये तो आगे देखा जाएगा। लेकिन बिहार में लालू प्रसाद यादव ने अपनी चलाई है। इंडी गठबंधन के बीच जो बंटवारा हुआ उसमें आरजेडी ने 26 सीटें अपने पास, नौ कांग्रेस को और पांच सीट वामदलों को मिली हैं।

बहरहाल यहां बिहार की बात करें तो 1967 के विधान सभाओं के चुनाव में कांग्रेस केंद्र में सरकार बनाने में तो तो सफल रही किन्तु 16 राज्यों में हुए विधान सभा चुनावों में बिहार सहित आठ राज्यों में कांग्रेस को पराजय का मुंह देखना पड़ा। बिहार में अभी तक 23 मुख्यमंत्रियों में से 20 मुख्यमंत्रियों को देने वाली कांग्रेस आज यहां हाशिए पर है। 1990 के बिहार विधानसभा चुनाव में जनता दल को मुस्लिम, पिछड़ी जातियों एवं कुछ हद तक अगड़ी जातियों का समर्थन प्राप्त हुआ। कांग्रेस पार्टी को 324 में से 71 सीट मिलीं। बिहार में 1990 तक हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का यह सबसे खराब प्रदर्शन था। लालू यादव मुख्यमंत्री बने। लालू यादव जुलाई 1997 तक मुख्यमंत्री रहे। जब वह चारा घोटाला में जेल गए तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया। राबड़ी देवी मार्च 2005 तक बिहार की मुख्यमंत्री रहीं।

1990 के बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन लगातार खराब होता चला गया। 1995 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 342 में से 29 सीटें ही मिलीं। 2000 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 243 में मात्र 23 सीट जीत सकीं। 2005 के फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 243 में 10 सीट जीत सकी। नवम्बर 2005 में दोबारा हुए चुनाव में नौ सीटें ही जीत पाई। 2010 के विधानसभा चुनाव में इसे सिर्फ चार सीटों से ही संतोष करना पड़ा।

2015 में पांच चरणों में हुए बिहार के विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस को उसकी उम्मीद से ज्यादा सीटें मिलीं। इन चुनावों में कांग्रेस 41 सीटों पर चुनाव लड़ी जिसमें उसे 27 सीटों पर सफलता हासिल हुई। 2020 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस राजद एवं वाम दलों के साथ गठबंधन कर 70 सीटों पर चुनाव लड़ीं लेकिन 10 नवंबर 2020 को चुनाव के परिणाम आए तो कांग्रेस 2015 के अपने नतीजों के अनुसार भी सीट नहीं जीत सकी। कांग्रेस बस 19 सीटों पर ही चुनाव जीत पाई। यह कुछ आंकड़े हैं जो बिहार में लगातार सिमटती कांग्रेस की स्थिति को जगजाहिर करते हैं।

लोेकसभा में तो यह स्थिति और भी खराब है। 2000 में जब बिहार से झारंखड अलग हुए तब कांग्रेस बिहार में बस एक ही सीट जीत पाई थी। इसके बाद बिहार में कांग्रेस पनप नहीं पाई है। बिहार में 40 लोकसभा सीट हैं 2014 के आम चुनावों में कांग्रेस मात्र 1 सीट जीती थीं। 2019 में लोकसभा चुनावों में महज एक सीट जीत पाने में ही कांग्रेस कामयाब रही थी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि बिहार में कांग्रेस अब तक की अपनी सबसे खराब स्थिति में स्थिति में है। लालू प्रसाद यादव की बात मानने के अलावा उसके पास कोई विकल्प नहीं है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।