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कोरोनावायरस : दुनिया को भरोसा सबसे असरदार और सस्ती दवा बना लेगा भारत!

कोरोनावायरस की वैक्सीन पर दुनिया की उम्मीदें टिकी हैं। फिलहाल, इबोला के इलाज में काम आने वाली रेमडेसिवीर एकमात्र ऐसी दवा है जो कोरोना के इलाज में बेहद असरदायी नजर आ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन सॉलिडैरिटी ट्रायल के अंतर्गत जिन चार दवाइयों पर परीक्षण कर रहा है, उसमें यह दवा भी है। इसे बनानी वाली कंपनी गीलिड ने भारत और पाकिस्तान की पांच जेनरिक दवा निर्माताओं के साथ करार भी किया है।

नई दिल्ली। कोरोनावायरस की वैक्सीन पर दुनिया की उम्मीदें टिकी हैं। फिलहाल, इबोला के इलाज में काम आने वाली रेमडेसिवीर एकमात्र ऐसी दवा है जो कोरोना के इलाज में बेहद असरदायी नजर आ रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन सॉलिडैरिटी ट्रायल के अंतर्गत जिन चार दवाइयों पर परीक्षण कर रहा है, उसमें यह दवा भी है। इसे बनानी वाली कंपनी गीलिड ने भारत और पाकिस्तान की पांच जेनरिक दवा निर्माताओं के साथ करार भी किया है।

हालांकि, स्वास्थ्य सेवाओं के पक्षधर दो समूहों ने भारत सरकार को रेमडेसिवीर दवा के एकाधिकार के संदर्भ में एक पत्र लिखा है। इस पत्र में रेमडेसिवीर दवा के लिए गीलिड साइंसेज को दिए गए पेटेंट रद्द करने की मांग की गई है। स्वास्थ्य समूहों का कहना है कि पेटेंट रद्द करने से इस दवा को दुनिया भर के कोरोना वायरस मरीजों, विशेष रूप से गरीब देशों में वितरित किया जा सकेगा।

भारत में ड्रग पेटेंट एक महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि कई देश जरूरी दवाओं के सस्ते संस्करण के लिए जेनेरिक दवा बनाने वाले देशों पर निर्भर हैं। भारत में जेनेरिक दवाओं का बड़े पैमाने पर उत्पादन होता है। रेमडेसिवीर दवा को लेकर गीलिड के भारत में तीन पेटेंट हैं। यह 2009 से हैं, जब इबोला के इलाज के लिए यह दवा बननी शुरू हुई थी।

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प्रारंभिक परीक्षण के नतीजों में अब तक रेमडेसिवीर ही ऐसी दवा है जिसे कई देशों में कोरोना के इलाज के लिए मंजूरी मिली है और ये दवा COVID-19 के इलाज में कारगर भी मानी जा रही है। वहीं, गीलिड का कहना है कि उसने दवाइयों की पहुंच बढ़ाने के लिए भारत और पाकिस्तान में स्थित पांच जेनेरिक दवा निर्माताओं के साथ गैर-विशिष्ट लाइसेंसिंग समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। इससे उन्हें 127 देशों के लिए रेमडेसिवीर बनाने और बेचने की अनुमति मिली है। लेकिन कुछ स्वास्थ्य समूहों का कहना है कि इस समझौते का मतलब है कि यह दवा उन देशों को सस्ते में उपलब्ध नहीं हो सकती, जो इन पांच दवा निर्माताओं के लिए फायदेमंद नहीं हैं।

भारत सरकार को लिखे पत्र में Third World Network के वरिष्ठ कानून शोधकर्ता के गोपाकुमार ने लिखा, ‘यह लाइसेंस वैश्विक बाजार को दो भागो में विभाजित करने वाला है। इसमें लाभ पहुंचाने वाले बाजारों को गीलिड ने अपने साथ बनाए रखा है जबकि कम मुनाफे वाले बाजारों को पांच जेनेरिक कंपनियां दे दी गईं हैं।’