नई दिल्ली। कोरोना वायरस के प्रकोप को झेल चुके मरीजों के रक्त प्लाज्मा से अब इस महामारी से पीड़ित अन्य मरीजों का उपचार किया जा सकता है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद ने रक्त प्लाज्मा के द्वारा कोरोनावायरस के मरीजों के उपचार हेतु ट्रायल की अनुमति प्रदान कर दी है। इस बारे में जानकारी देते हुए एम्स के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर नवल विक्रम ने कहा कि कोरोना से ठीक हो चुके एक व्यक्ति के खून से कोरोना प्रभावित चार अन्य लोगों का इलाज किया जाना संभव हो सकता है।
आप सोच रहे होंगे कि यह तकनीक आखिर काम कैसे करती है।चलिए आपको बताते हैं इस तकनीक के जरिए कैसे मरीजों को ठीक किया जा सकेगा। तकनीक के काम करने के तरीकों पर एम्स के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉक्टर नवल विक्रम ने कहा कि यह उपचार प्रणाली इस धारणा पर काम करती है कि वे मरीज जो किसी संक्रमण से उबर जाते हैं।
उनके शरीर में संक्रमण को बेअसर करने वाले प्रतिरोधी एंटीबॉडीज विकसित हो जाते हैं। इसके बाद नए मरीजों के खून में पुराने ठीक हो चुके मरीज का खून डालकर इन एंटीबॉडीज के जरिए नए मरीज के शरीर में मौजूद वायरस को खत्म किया जाता है। यह तकनीक कोरोनावायरस से जूझ रहे लोगों के लिए एक नई उम्मीद की किरण है और इसके जरिए एक साथ कई लोगों का इलाज संभव हो सकता है।
प्रोफेसर के अनुसार किसी मरीज के शरीर से प्लाज्मा( एंटीबॉडीज) उसके ठीक होने के 14 दिन बाद ही लिया जा सकता है और उस रोगी का कोरोना टेस्ट एक बार नहीं, बल्कि दो बार किया जाएगा। इतना ही नहीं ठीक हो चुके मरीज का एलिजा टेस्ट भी किया जाएगा ताकि यह पता चल सके कि उसके शरीर में एंटीबॉडीज की मात्रा कितनी है।
इसके अलावा प्लाज्मा देने वाले व्यक्ति की पूरी जांच की जाती है कि कहीं उसे कोई और बीमारी तो नहीं है। गौरतलब है कि दुनिया भर के वैज्ञानिक कोरोना की वैक्सीन ढूंढने के प्रयास में लगे हुए हैं। लेकिन रक्त प्लाज्मा भी एक असरदार कारक के रूप में सामने आ सकता है।