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राहुल गांधी की सोच वामपंथ सरीखी, विभाजनकारी और देश के लिए घातक है

राहुल गांधी देश भर में प्रचार पर हैं। जहां जाते हैं वहां बोलते हैं हमारी सरकार आने पर आर्थिक सर्वेक्षण कराएंगे, किसके पास कितना धन है पता कराएंगे, ऐसे तमाम विडियो इंटरनेट पर मौजूद हैं जिनमें राहुल गांधी ऐसे दावे कर रहे हैं। किसके पास क्या है, कितना है, वह इसका पता लगवाने की बात करते हैं। देश के औद्योगिक घरानों पर निशाना साधते हैं।

राहुल गांधी जो बोल रहे हैं ऐसे विचार और बयान वामपंथी राजनीति की खासतौर पर पहचान रहे हैं। समाज की नसों में जहर घोलकर, उन्हें जाति के नाम पर अलग करके जहरीली राजनीति वामपंथी ही करते हैं। अमीरों से छीनों और समाज में बांट दो, उनकी जमीनों पर कब्जा कर लो, याद करें देशभर में नक्सलवाद का जन्म इसी विचार की वजह से उपजा था। देश के कई हिस्सों में लोगों ने इसको भुगता भी। हजारों लोग देश के विभिन्न हिस्सों बंगाल, बिहार, यूपी, छत्तीसगढ़, उड़ीसा आदि राज्यों में नक्सली हिंसा में मारे गए। वामपंथी सबसे ज्यादा सक्रिय बंगाल में थे। जहां तीन से ज्यादा दशक तक उन्होंने शासन किया। आज बंगाल की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। बंगाल में जो रहा है सब वह अपनी आंखों से देख रहे हैं। राहुल गांधी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता है, उस कांग्रेस के जो आजादी के समय राष्ट्रवादी लोगों का मंच थी। देश की सबसे पुरानी पार्टी थी, लेकिन कांग्रेस में घुस आए वामपंथी विचार की वजह से ऐसे सभी नेता कांग्रेस से दूर होते गए, या उन्हें निपटा दिया गया और आज कांग्रेस का अर्थ बस गांधी परिवार की पार्टी ही रह गया है जहाँ वामपंथी विचारधारा बहुत गहरी पैठ बना चुकी है।

राहुल बयान देते हैं इसके बाद इंडियन ओवरसीज कांग्रेस के अध्यक्ष और राहुल गांधी के सलाहकार सैम पित्रोदा ने भारत में विरासत पर टैक्स लगाए जाने की वकालत करते हैं। जिस टैक्स की बात पित्रोदा ने की उसके बारे में बताएं तो “अमेरिका में इनहेरिटेंस टैक्स यानी विरासत पर टैक्स की व्यवस्था है। इसका अर्थ है कि अगर किसी के पास 10 करोड़ डॉलर की संपत्ति है तो उसके मरने के बाद बच्चों को केवल 45 प्रतिशत संपत्ति ही मिलेगी और बाकी 55 प्रतिशत सरकार ले लेगी” पित्रोदा कहते हैं कि भारत में आप ऐसा नहीं कर सकते। क्या वह भारत में ऐसा ही करवाना चाहते हैं।

इसके बाद विवाद होता है, विरोध होता है, लेकिन राहुल फिर से बयान देते हैं। शनिवार को दिल्ली में हुए एक कार्यक्रम में उन्होंने फिर से आर्थिक सर्वेक्षण की बात की। संबंधित वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल है। राहुल ने बोला आर्थिक सर्वेक्षण के साथ-साथ जाति जनगणना भी कराई जाएगी और यह पता लगाया जाएगा कि देश में किसके पास कितनी संपत्ति है। जाति जनगणना से पूरे देश को पता लग जाएगा कि हिंदुस्तान का धन कहां है, किसके हाथ में है। पिछड़ों के हाथ में कितना, दलितों के हाथ में कितना है, गरीबों के हाथों में कितना है। सुनने में शायद यह अच्छा लगे लेकिन ऐसी सोच देश के लिए खतरनाक है। देश के औद्योगिक घरानों के लिए खतरनाक है।

सैम पित्रोदा का बयान तो अभी आया है लेकिन इससे पहले 2013 में तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने इस टैक्स को लाने की बहस शुरू करी थी, हालांकि कारोबारी जगत के भारी विरोध जताने पर ऐसा नहीं हो पाया। इन दोनों बयानों के परिपेक्ष्य में देखेंं तो इसका यही अर्थ निकलता है कि कांग्रेस की मंशा पहले से ही ऐसी थी। यदि 2014 में कांग्रेस सत्ता में आ गई होती तो वह अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए लोगों की संपत्ति को, उनकी जीवन भर की पूंजी को अभी तक हड़प चुकी होती।

जैसे—जैसे कांग्रेस परिवार केंद्रित हुई। सैम पित्रौदा सरीखे बुद्धिजीवियों और देश के बाहर से पढ़कर आए लोगों के हाथों में कांग्रेस की कमान आई तो कांग्रेस अपना जनाधार खोती गई। अब एक बार फिर राहुल गांधी जाति के नाम पर, आर्थिक स्थिति के नाम पर समाज को बांटने की बात कर रहे हैं। जो वह बोल रहे हैं इसके परिणाम कितने घातक हो सकते हैं संभवत: उन्हें इसका अंदाजा नहीं है। कांग्रेस एक खतरनाक मंसूबे के साथ आगे बढ़ रही है। इसके लिए सतर्क रहने की जरूरत है। आपकी बरसों की मेहनत, आपकी कमाई सब कांग्रेस के निशाने पर है। कम से कम राहुल गांधी द्वारा लगातार दिए जा रहे बयान तो इसी तरफ इशारा करते हैं।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।