newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

Dobaaraa Review: नहीं चल सका Anurag Kashyap की फिल्म Dobaaraa का जादू, लाल सिंह चड्ढा की तरह खाली पड़ी हैं कुर्सियां

Dobaaraa Review: नहीं चल सका Anurag Kashyap की फिल्म Dobaaraa का जादू, लाल सिंह चड्ढा की तरह खाली पड़ी हैं कुर्सियां यहां हम आपको बताएंगे की आखिर फिल्म दोबारा को एक बार भी देखना चाहिए या नहीं।

नई दिल्ली। अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित और तापसी पन्नू द्वारा अभिनयकृत फिल्म दोबारा सिनेमाघर में रिलीज़ हो गई है। पिछले कई दिन से देखने को मिल रहा है की कोई भी फिल्म कॉन्ट्रोवर्सी से पहले रिलीज़ ही नहीं होती है। फिल्म रिलीज़ होने से पहले उसकी कॉन्ट्रोवर्सी चलना जरूरी हो जाता है। ऐसा ही कुछ फिल्म दोबारा के साथ भी हुआ। फिल्म दोबारा के प्रमोशन के दौरान अनुराग कश्यप और तापसी पन्नू के कुछ बयान वायरल हो रहे हैं। जहां उन्होंने फिल्म को बॉयकॉट करने की दर्शकों से मांग की थी तो लोगों ने ट्वीटर पर, #boycottdobaaraa का ट्रेंड भी चला  दिया था। फिल्म दोबारा में तापसी पन्नू के साथ पावैल गुलाटी, नस्सार, राहुल भट्ट, हिमांशी चौधरी और शास्वत चटर्जी मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। फिल्म 2018 में आयी स्पैनिश फिल्म मिराज का अडॉप्टेशन है। यहां हम आपको बताएंगे की आखिर फिल्म दोबारा को एक बार भी देखना चाहिए या नहीं।

फिल्म की कहानी क्या है

एक औरत है जिसका नाम है आन्तरा। अन्तरा का रोल तापसी पन्नू ने निभाया है। ये औरत करीब 25 साल के बाद एक बच्चे को बचाती है। लेकिन यहां ध्यान रखने वाली बात है कि बच्चे की मौत 25 साल पहले हो चुकी है। कंफ्यूस हो रहे होंगे, असल में कहानी भी कन्फ्यूज़न वाली ही है। कहानी अगर आप ध्यान से नहीं देखेंगे तो थोड़ा बहुत कन्फ्यूज़न वहां भी हो सकता है। बच्चे की मौत तब हुई जब बच्चा 25 साल पहले एक रात भयंकर तूफ़ान में अपने पडोसी के अंकल आंटी को लड़ाई करते देखता है वो उनके पास जाता है और जब वो वहां से निकल रहा होता है तब उसकी मौत हो जाती है। लेकिन 25 साल बाद एक बार फिर से वही तूफ़ान भरी रात वापस आती है और अंतरा उस बच्चे की जान बचाती है। फिल्म दो यूनिवर्स की कहानी है एक यूनिवर्स है जो 25 साल पहले का है और एक यूनिवर्स आज का है। दोनों ही यूनिवर्स के बीच कहानी समानांतर होकर चलती है।

कैसी है कहानी

यह मिराज का रीमेक है या कह सकते है की अडॉप्टेशन है इसलिए कहानी उतनी नयी तो नहीं लगती है। लेकिन क्योंकि बॉलीवुड में ऐसी कहानियां कम ही बनी हैं इसीलिए ये कहानी कुछ नयी और अलग लगती है। हालांकि कहानी का विषय ऐसा है जो बार बार कभी 25 साल पहले से होकर गुजरता है तो कभी वर्तमान समय से होकर गुजरता है इसलिए सामान्य दर्शकों के लिए वो कुछ परेशानी का कारण बन सकता है और वो कुछ उलझन में पड़ सकते हैं। लेकिन ये मानना पड़ेगा की इस तरह के भी ड्रामा को एक बेहतरीन ढंग से लिखा गया है और उतने ही खूबसूरत ढंग से फिल्माया गया है क्योंकि ये आपको स्क्रीन से और कहानी से बांधे रखता है। हां शुरुआत के 25 मिनट ये कहानी थोड़ा मूड बनाने में समय लेती है लेकिन इसका दूसरा हॉफ मनोरंजन के साथ-साथ उत्सुकता भी बढ़ाता है। कहानी उतना इमोशनल करके नहीं जाती है। इसके अलावा फिल्म का सस्पेंस भी बहुत गहरा नहीं है वो फिल्म देखने के दौरान ही समझ में आने लगता है।

जिन लोगों को सस्पेंस थ्रिलर कहानी पसंद है उनके लिए यह एक सामान्य दर्जे की फिल्म होगी। वहीं मास ऑडियंस इस फिल्म को शायद न भी पसंद करे। सस्पेंस और थ्रिलर उतना खास नहीं है की लोग तालियां बाजने पर मजबूर हो जाएं पर ये है की फिल्म आपको जोड़कर रखती है। फिल्म में पावैल गुलाटी, राहुल भट्ट, नस्सार, शाश्वत चटर्जी और हिमांशी चौधरी का काम अच्छा है लेकिन तापसी पन्नू से एक्टिंग में कुछ ख़ास देखने को नहीं मिलता है। अगर संवाद की बात करें तो बहुत साधारण हैं एक भी ऐसा डायलाग नहीं है जहां दर्शकों ने तालियां बजाई हों। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूसिक और म्यूसिक साधारण है पर ये अच्छी बात है की इस बार अनुराग की फिल्म में म्यूसिक है। कुल मिलाकर अगर इस फिल्म की बात करें यह फिल्म सभी के लिए नहीं है यह उन्हीं के लिए है जो थ्रिलर और सस्पेंस कहानियों को पसंद करते हैं। लेकिन थ्रिलर और सस्पेंस के पसन्दीदा लोगों को भी यहां कुछ बहुत अलग नहीं बल्कि एक ठीक ठाक एक बार देखी जाने वाली फिल्म ही मिलती है। फिल्म को देखने के लिए थिएटर में ज्यादा लोग मौजूद नहीं थे और ऐसा लगता है की आने वाले समय यह फिल्म उतना कमाई नहीं कर पायेगी।