देहरादून। देवभूमि उत्तराखंड के केदारनाथ में पिछले 9 दिन में 3 बार हिमस्खलन यानी एवलांच आ चुका है। इससे यहां के लोगों में डर बैठ गया है। साल 2013 में इसी तरह के हिमस्खलन के बाद उत्तराखंड के बड़े इलाके में आपदा आई थी। इस बार केदारनाथ मंदिर के पीछे स्थित जिस चोराबाड़ी ग्लेशियर से एवलांच आए हैं, 2013 में भी वहीं से इसकी शुरुआत हुई थी। ऐसे में आम तौर पर लोग मानने लगे हैं कि केदारनाथ धाम पर खतरा मंडरा रहा है। वहीं, हिमालय भूविज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक अब बार बार एवलांच आने के कारणों की जांच और भविष्य में इससे उपजने वाले खतरे से बचने के रास्ते तलाश रहे हैं।
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— Vinay Shah (@shahvinayv) September 26, 2022
पहले आपको बताते हैं कि एवलांच आखिर किसे कहते हैं। जब पहाड़ों में जमी बर्फ अपनी जगह से खिसककर तेजी से नीचे आती है और सबकुछ तबाह कर देती है, तो उसे एवलांच कहा जाता है। 22 सितंबर से 1 अक्टूबर तक केदारनाथ मंदिर के पीछे चोराबाड़ी ग्लेशियर में 3 बार एवलांच आ चुका है। वाडिया संस्थान के वैज्ञानिक इसपर शोध करने के लिए चोराबाड़ी भी गए हैं। वाडिया संस्थान के रिटायर्ड वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल के मुताबिक केदारनाथ धाम के पीछे हिमालय में दो बड़े ग्लेशियर हैं। इनके दर्जनों हैंगिंग ग्लेशियर भी हैं। उनके मुताबिक ज्यादा तीर्थयात्रियों की वजह से केदारनाथ इलाके में तापमान बढ़ रहा है। कंस्ट्रक्शन की वजह से ग्लेशियरों पर घूल बैठ रही है। इससे ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। बाकी हेलीकॉप्टरों की उड़ानों से भी कंपन होता है। इससे हैंगिंग ग्लेशियरों में एवलांच आ जाता है। कई बार गिरी हुई बर्फ ठीक से जम नहीं पाती। इससे भी एवलांच आते हैं। हालांकि, उनका मानना है कि केदारनाथ घाटी की तरफ फिलहाल खतरा नहीं है। केदारनाथ मंदिर के पुजारी विजय बगवाड़ी भी मानते हैं कि हेलीकॉप्टरों की आवाजाही से ऐसा खतरा हो रहा है।
बता दें कि साल 2013 में 13 से 17 जून के बीच जमकर बारिश हुई थी। तब चोराबाड़ी ग्लेशियर पिघलने लगा। इससे मंदाकिनी नदी में बाढ़ आ गई। जिससे भूस्खलन भी हुए और तबाही मची थी। केदारनाथ धाम से शुरू हुई आपदा ने उत्तराखंड में 250 से ज्यादा छोटे और बड़े पुल बहा दिए थे। करीब 5000 लोग इस आपदा में मारे गए थे। 13000 हेक्टेयर खेती की जमीन को भी नुकसान पहुंचा था। इसके अलावा 35 हाइवे, 9 नेशनल हाइवे वगैरा भी बह गए थे।