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Chandrayan-3: 54 साल पहले नासा ने छोड़ा था चांद पर एक सीक्रेट यंत्र, आज भी वर्किंग मोड़ में दे रहा अहम जानकारियां

Chandrayan-3: लूनर लेजर रेंजिंग रेट्रोरिफ्लेक्टर का प्रयोग प्रकाश के आगे और पीछे जाने में लगने वाले समय को मापकर पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी निर्धारित करने की क्षमता में है। इस विधि में चंद्रमा पर रखे गए उपकरण से प्रकाश की एक छोटी सी पल्स की वापसी का समय शामिल है।

नई दिल्ली। इस समय दुनिया भर की निगाहें भारत के मिशन चंद्रयान-3 पर टिकी हुई हैं। हर कोई चंद्रयान-3 की चांद के दक्षिण पल पर स्मूथ लैंडिंग का इंतजार कर रहा है। अगर सफलतापूर्वक भारत का चंद्रयान-3 मिशन चांद की सतह पर लैंड कर पाता है तो यह इसरो के लिए एक बड़ी कामयाबी होगी। इससे न सिर्फ भारत को बल्कि दुनिया को चंद्रमा के बारे में और उसके विशेष खनिज और पानी के भंडार के बारे में एक अहम जानकारी मिलेगी। इसके साथ ही इस मिशन का उद्देश्य यह भी पता लगाना है कि क्या चांद पर दक्षिण ध्रुव पर किसी भी तरह से जीवन संभव है या फिर नहीं। लेकिन चंद्रयान-3 के मिशन के बीच नासा के 54 साल पहले किए गए मिशन की भी चर्चाएं हो रही है।  54 साल पहले नासा के अपोलो 11 मिशन की यादें चर्चा का विषय बन गई हैं। 20 जुलाई 1969 को नासा के अपोलो 11 ने चंद्रमा पर उतरकर इतिहास रच दिया था। मिशन का नेतृत्व अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग ने किया था, उनके साथ बज़ एल्ड्रिन भी थे। इन अंतरिक्ष खोजकर्ताओं ने लूनर लेजर रेंजिंग रेट्रोरेफ्लेक्टर (एलआरआरआर) नामक एक अद्वितीय उपकरण के साथ एक स्थायी विरासत छोड़ी, जिसे उन्होंने चंद्र सतह पर स्थापित किया।

लूनर लेजर रेंजिंग रेट्रोरेफ्लेक्टर, जिसे अक्सर “रेट्रोरेफ्लेक्टर” कहा जाता है, एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक उद्देश्य को पूरा करता है। फ़्यूज्ड सिलिका क्यूब्स से निर्मित, यह उपकरण लेजर किरणों को पृथ्वी पर वापस प्रतिबिंबित करने के लिए चंद्रमा की सतह पर रणनीतिक रूप से तैनात किया गया था। पृथ्वी से भेजे गए लेजर-रेंजिंग बीम एलआरआरआर द्वारा सटीक रूप से प्रतिबिंबित होते हैं, जिससे वैज्ञानिकों को पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी को सटीक रूप से मापने की अनुमति मिलती है। यह माप शोधकर्ताओं को दो खगोलीय पिंडों के बीच की गतिशीलता और परिवर्तनों को समझने में सहायता करता है।

Chandrayan

 

लूनर लेजर रेंजिंग रेट्रोरिफ्लेक्टर का प्रयोग प्रकाश के आगे और पीछे जाने में लगने वाले समय को मापकर पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी निर्धारित करने की क्षमता में है। इस विधि में चंद्रमा पर रखे गए उपकरण से प्रकाश की एक छोटी सी पल्स की वापसी का समय शामिल है। इस डेटा का उपयोग करके, वैज्ञानिक पृथ्वी और चंद्रमा के बीच सटीक दूरी की गणना कर सकते हैं, जो चंद्रमा की कक्षा और हमारे ग्रह के साथ इसकी बातचीत के बारे में हमारी समझ में योगदान देता है।