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दृष्टि बाधित सौरभ सोनी ने किया भारत का नाम रौशन, एशिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड & इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में दर्ज करवाया अपना नाम

Rajasthan: सौरभ ने बताया की उनका जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था, उनके अलावा उनकी तीन बहिने और भी है जो सभी छोटी है। वित्तीय हालत ठीक नहीं हो पाने के कारण उन्होंने कई-कई दिन सिर्फ आलू की टिक्की खाकर भी अपना समय निकाला है। लोगो ने सहानुभूति तो दिखाई लेकिन उपेक्षा ज्यादा की।

नई दिल्ली। मार्ग में कठिनाई उन्हीं के आती है, जिनमें उनसे लड़ने की शक्ति एवं हिम्मत होती है। यदि इंसान के व्यक्तित्व में ईमानदारी, लग्न और दृढ़ इच्छाशक्ति हो, तो आने वाली बड़ी से बड़ी परेशानी भी उसके जज्बे को पथ भ्रमित नहीं कर सकती, बल्कि ऐसा व्यक्ति इन कठिनाइयों को चुनौतियों  के रूप में लेकर उनका डट कर सामना करता है और अपनी सफलता के मार्ग पर अग्रसर रहता है। इसी तरह का उदहारण पेश किया है राजस्थान राज्य, झालावाड़ जिले के छोटे से गांव से तालुक रखने वाले युवा सौरभ सोनी ने। सौरभ सोनी ने 4 जनवरी 2022 को 61 वाद्य यन्त्र बजाकर एशिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड & इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में अपने नाम रिकॉर्ड दर्ज करवा दिया है। इससे पहले यह रिकॉर्ड UAE के एबिन जॉर्ज के नाम था, जिसने 27 वाद्य यन्त्र बजाकर यह रिकॉर्ड बनाया था। सौरभ सोनी अभी 25 वर्ष के हैं और उनका जन्म झालावाड़ जिले के डग जिले में हुआ था। उनके सामने बाल्यवस्था से ही कठिनाइयों का पहाड़ था। उनके पिताजी अशोक सोनी एवं माता मंजू सोनी दोनों ही नेत्रहीन हैं, जिस वजह से उनकी खुद की आंखों की रौशनी बचपन से बाधित रही।


बचपन से ही परेशानियों का सामना करने वाले सौरभ के पिता ने नेत्रहीन होने की वजह से संगीत को ही अपना आजीविका का साधन बना लिया और खुद से उसमे महारत हासिल की। अशोक सैनी प्रज्ञाचक्षु संगीतज्ञ एवं कवि के रूप में आस पास के गांवों और छोटे-छोटे प्रोग्राम में प्रस्तुति देकर ,उससे हुई आय से जीवनयापन करते थे। सौरभ की कमजोर आंखों की रोशनी एवं घर में आजीविका का साधन कुछ अन्य न हो पाने के कारण उन्होंने सौरभ को भी संगीत के क्षेत्र में ही करियर बनाने का सुझाव दिया और 5 वर्ष की उम्र से ही उसको हरमनोनियम,  ढोलक, मंजरी, मंजीराए, बांसुरी आदि जैसे कई वाद्य यंत्र बजाने की शिक्षा देना प्रारम्भ किया। सौरभ बचपन से पिताजी को वाद्य यन्त्र बजाते हुए देख खुश होता था और इसमें गहन रूचि दिखाता था। उसने पांच वर्ष की आयु से ही विभिन्न वाद्य यंत्रों को बजाने का अभ्यास प्रारम्भ कर दिया और पिताजी के साथ छोटे-मोटे प्रोग्राम में उनकी सहायता करना शुरू कर दिया। इसके बाद जब  प्रारम्भिक शिक्षा लेने के लिए स्कूल जाता, तो बाधित दृष्टि एवं धन की कमी के कारण कई समकक्ष दोस्तों की उपेक्षा का पात्र बनता। उसकी संगीत में रूचि को देखते हुए पिता ने सौरभ का संगीत शिक्षा के लिए झालावाड के राजकीय संगीत विद्यालय में दाखिला करवा दिया। यहां उन्हें गुरू भंवरलाल वर्मा और सुगम संगीत के ज्ञाता भूपेन्द्र सिखरवाल नेे संगीत की शिक्षा दी। उसने संगीत विषय में ही राजस्थान हिंदी बोर्ड से स्कूल शिक्षा ख़त्म की।

स्कूली शिक्षा के बाद सौरभ ने संगीत विषारद 5 वर्षीया कोर्स के लिए भातखण्डे विश्वविद्यालय, लखनऊ में आवेदन कर दिया जिसका परीक्षा सेण्टर गृह जिले से 350 किलोमीटर दूर जयपुर में आता था। 1 साल में दो बार 5 सैद्धांतिक एवं 5 प्रायोगिक परीक्षा देने के लिए जयपुर जाना पड़ता था, जिसके लिए भी धन की व्यवस्था बमुश्किल हो पाती थी। अभ्यास के लिए वह राजकीय संगीत विद्यालय झालावाड़ में जाता और खुद अकेले ही अभ्यास करता, उसकी इस लग्न को देखकर वहीं की सेवानिवृत संगीत शिक्षिका आशा सक्सेना काफी प्रभावित हुई और उन्होंने इसको घर आकर शिक्षा लेने के लिए सुझाव दिया लेकिन वित्तीय स्थिति कमजोर होने के कारण सौरभ ने असमर्थता जताई। आशा सक्सेना ने पारिवारिक परिस्थिति को देखते हुए इसको निशुल्क संगीत की शिक्षा देने का निर्णय लिया। सौरभ रोजाना संगीत गुरु के घर पहुंच जाता और शिक्षिका रोजाना पूरी लग्न के साथ शाम को 3 से 5 बजे तक इसकी कला को निखारने का प्रयास करती। सौरभ ने बताया की उनका जीवन कठिनाइयों से भरा हुआ था, उनके अलावा उनकी तीन बहिने और भी है जो सभी छोटी है। वित्तीय हालत ठीक नहीं हो पाने के कारण उन्होंने कई-कई दिन सिर्फ आलू की टिक्की खाकर भी अपना समय निकाला है। लोगो ने सहानुभूति तो दिखाई लेकिन उपेक्षा ज्यादा की। 1 छोटी बहिन भी दृष्टि बाधित है। पिताजी के पास पर्याप्त धन नहीं था, इसलिए कई समस्याओ ने जन्म लिया, लेकिन उन्होंने अपना हौसला नहीं छोड़ा और पूरी लग्न के साथ अभ्यास चालू रखा।

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यू ट्यूब से पता चली अपनी कबिलियात

सौरभ बताते हैं वो खाली समय में यूट्यूब पर म्यूजिक से जुडी जानकारी देखते हैं, लगभग छ: माह पहले उन्हें यू ट्यूब से ही मालूम चला कि 27 वाद्य यंत्र बजाकर UAE के एबिन जॉर्ज ने अपना नाम एशिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में दर्ज करवा रखा है। तब उन्होंने इस बारे में अपनी संगीत गुरु आशा सक्सेना से चर्चा की एवं बताया की वो खुद 137 वाद्य यन्त्र बजाना जानते हैं। तब आशा सक्सेना ने उसे भी पुराने रिकॉर्ड को तोड़ खुद का नाम दर्ज करवा कर भारत का नाम रोशन करने के लिए प्रेरित किया। उसके बाद सौरभ ने 17 नवंबर 2021 को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में 111 वाद्य यंत्र बजाकर नाम दर्ज करवाने के लिए ऑनलाइन आवेदन कर दिया, लेकिन नियम के तहत वह न से तीन महीनो में उत्तर आता है। अत: वहां से तीन महीने में जवाब आने तक का इंताजर उन्होंने नहीं किया और 29 दिसम्बर 2021 को ही एशिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड & इंडिया बुक ऑफ़ रिकॉर्ड में 61 वाद्य यंत्र बजाकर अपने नाम रिकॉर्ड दर्ज करवाने के लिए आवेदन कर दिया। 4 जनवरी 2022 को कन्फर्मेशन आने के बाद उसकी तैयारी की और अपनी प्रस्तुति देकर यह रिकॉर्ड अपने नाम करवा लिया। उन्होंने इसके लिए 58 मिनट्स में जलतंरग, पेडल मटका, हारमोनियम, जाइलोफ़ोन, बेन्जो, तबला, गिटार, तम्बूरा, रावण हत्ता, भपंग आदि सहित 61 वाद्य यंत्र बजाए। इन रिकार्ड्स का सर्टिफिकेट 25 जनवरी को सौरभ को प्राप्त हुआ जिसे जिला स्तरीय कार्यक्रम में झालावाड़ जिले की जिला कलेक्टर डॉ. भारती दीक्षित ने देकर सम्मानित किया।

पहले जो उड़ाते थे उपहास, अब वो ही करते है सराहना

सौरभ को कई बार वित्तीय स्थिति एवं बाधित दृष्टि की वजह से उपहास का पात्र बनना पड़ा था, लेकिन जब उनके संगीत की प्रतिभा का डंका बजने लगा, तो वो ही लोग सौरभ से समय मांग कर शो करवाने लगे। सौरभ जी राजस्थान के पापुलर टैलेन्ट हंट शो-2016, जिले, प्रांत एवं राष्ट्रीय स्तरीय के कई बड़े-बड़े  संगीत कायक्रमों में निर्णायक भूमिका निभाह चुके हैं। इसके अलावा वर्ष 2018 में कनाडा की सिख कम्युनिटी द्वारा आयोजित शो अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुके हैं। वो यूट्यूब चैनल के माध्यम से भी अपनी मिली शिक्षा का प्रचार कर रहे हैं। फ़िलहाल, वो झालावाड़ के लेखिका अनुसयूइया एजुकेशन अकादमी  में संगीत लेक्चरर के रूप में कार्यरत हैं तथा अपना अभ्यास जारी रख रहे हैं। उन्होंने न सिर्फ जिले का, बल्कि प्रदेश व देश का पूरे एशिया में रिकार्ड बनाकर गौरवान्वित किया। अब उनको गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज करवाने के लिए उनके उत्तर का इंतजार है।