बेंगलुरु। कर्नाटक में मंगलवार को धर्मांतरण विरोधी बिल को गवर्नर थावर चंद गहलोत ने मंजूरी दे दी। बिल को विधानसभा से पास कराया गया, लेकिन विधान परिषद में बीजेपी के पास बहुमत न होने की वजह से इस बिल के प्रावधानों को अध्यादेश लाकर लागू किया गया है। अब कर्नाटक में जबरन या लालच देकर धर्मांतरण करने पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगेगा और तीन से पांच साल की कैद होगी। वहीं, नाबालिग, महिला या एससी-एसटी का धर्मांतरण कराने वाले पर 50 हजार का जुर्माना लगेगा और तीन से 10 साल की कैद का प्रावधान किया गया है। वहीं, कांग्रेस ने बिल पास होने के बाद इसे लागू करने के लिए अध्यादेश लाने पर सवाल उठाए हैं।
कर्नाटक में बसवराज बोम्मई की सरकार ने दिसंबर 2021 में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के संरक्षण का बिल विधानसभा में पेश किया था। कांग्रेस ने इसका जमकर विरोध किया था। सरकार ने बिल को विधानसभा में पास तो करा लिया, लेकिन विधान परिषद में वो बहुमत में नहीं है और इस वजह से बिल वहां फंस गया। बिल को पास कराते वक्त बोम्मई सरकार ने कहा कि ये किसी धर्म के खिलाफ नहीं है, लेकिन जबरन या लालच देकर धर्मांतरण की कानून में जगह नहीं होनी चाहिए। इस कानून के खिलाफ ईसाई समुदाय ने सोमवार को गवर्नर को ज्ञापन भी दिया था। वहीं, सरकार का कहना है कि ये कानून, धार्मिक अधिकार देने वाले संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन नहीं करता है।
बिल का विरोध कर रही कांग्रेस के नेता डीके शिवकुमार का कहना है कि आखिर बिल को अध्यादेश के जरिए लागू क्यों कराया गया। उनका कहना है कि कर्नाटक सरकार इस मामले में जल्दबाजी क्यों कर रही है। शिवकुमार ने कहा कि सरकार को विकास के एजेंडा और युवाओं को रोजगार देने के लिए अध्यादेश लाना चाहिए था, लेकिन ये लोग समाज में भेदभाव बढ़ाने का काम कर रहे हैं। कांग्रेस नेता ने ये आरोप भी लगाया कि केंद्र और कर्नाटक की सरकारें हर मोर्चे पर फेल हैं। जनता का ध्यान बंटाने के लिए ऐसे बिल लाए जा रहे हैं, जिनसे कोई भला होने वाला नहीं है।