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Delhi High Court: दिल्ली हाई कोर्ट का आदेश, समान नागरिक संहिता पूरे देश में हो एक समान, सरकार करे इसकी तैयारी

Delhi High Court: समान नागरिक संहिता का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 44 में किया गया है। जिसके तहत पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने जैसे कानूनों में भी एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान है।

नई दिल्लीा। दिल्ली हाई कोर्ट ने समान नागरिक संहिता की आवश्कता का समर्थन किया है। जिसे ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने भारत सरकार को इस मामले में सख्त और आवश्यक कदम उठाने के आदेश दिए हैं। इस मामले में कोर्ट ने कहा कि समाज में धर्म, जाति और समुदाय की पारंपरिक रूढ़ियां टूट रही हैं। जिसे देखते हुए लगता है कि अब समय आ गया है कि अब संविधान की धारा 44 के आलोक में समान नागरिक संहिता की तरफ कदम बढ़ाया जाए।

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न्यायधीश प्रतिभा एम सिंह ने 7 जुलाई को दिए एक फैसले में हिंदू विवाह अधिनियम 1955 को लागू करने में हो रही मुश्किलों को देखते हुए यह बात कही है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व चीफ जस्टिस एस ए बोबडे ने गोवा के समान नागरिक संहिता की तारीफ की थी। वहीं हाई कोर्ट बिल्डिंग के उद्घाटन के कार्यक्रम में पुहंचे चीफ जस्टिस ने कहा था कि गोवा के पास ऐसी समान नागरिक संहिता है जिसकी कल्पना संविधान निर्माताओं ने की थी।

क्या है समान नागरिक सहिंता

समान नागरिक संहिता का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 44 में किया गया है। जिसके तहत पूरे देश के लिए एक समान कानून के साथ ही सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने जैसे कानूनों में भी एकरूपता प्रदान करने का प्रावधान है। जिसमें यह भी कहा गया है कि भारत के पूरे क्षेत्र में नागरिकों के लिये एक समान नागरिक संहिता सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।

देश के अलग-अलग समुदाय और धर्म ने अपने अलग-अलग नियम बना रखे हैं जिन्हें वह मानते हैं। जबकि देश में हिंदू सहित में सभी धर्मों के लिए सिर्फ एक शादी करने का नियम है। लेकिन शादी को लेकर उम्र क्या हो इसे लेकर सभी समुदाय की अपनी अलग व्यवस्था है।