नई दिल्ली। विपक्षी दलों में इस बात को लेकर आतुरता का सैलाब अपने उफान पर है कि आखिर हिजाब विवाद पर बीजेपी की क्या राय है। वे इस मसले के पक्ष में हैं या विरोध में। विरोधी दलों ने तो इस विवाद के उभार से पहले ही इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि वे इस मसले को लेकर मुस्लिम छात्राओं के पक्ष में हैं, जिसकी शुरूआत सबसे पहले कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अपने ट्वीट से की थी, जिसमें उन्होंने कर्नाटक की बीजेपी सरकार पर निशाना साधते हुए कहा था कि ऐसा करके सरकार मुस्लिम छात्राओं को शिक्षा से वंचित कर रही है, जिसके बाद से कई विपक्षी दलों के नेताओं ने एक सुर में इस प्रकरण में केंद्र सरकार की मंशा जानने की इच्छा प्रकट की।
विगत गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सराहनपुर में रैली को संबोधित करते हुए पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि कुछ लोग अपनी सियासी हितों की पूर्ति करने हेतु मुस्लिम छात्राओं को बरगलाने की कोशिश कर रहे हैं, क्योंकि उनसे यह देखा नहीं जा रहा है कि आखिर कैसे मुस्लिम छात्राएं मोदी-मोदी के नारे लगा सकती हैं और इस तरह बीजेपी के कई नेताओं ने इस मसले को लेकर अपनी राय व्यक्त कर अपनी मंशा जाहिर कर दी है, लेकिन क्या आपको पता है कि हर मसले को लेकर सक्रिय रहने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इस मसले पर क्या राय है। आखिर उनका इस पूरे मामले को लेकर क्या स्टैंड है। अब मसला हिजाब का हो और आप योगी आदित्यनाथ के विचारों से रूबरू होने के इच्छा न रखते हों। ऐसा भला हो सकता है क्या, तो जवाब स्पष्ट है, बिल्कुल भी नहीं, तो चलिए आगे जानते हैं कि आखिर उन्होंने इस पूर क्या कुछ कहा है।
आज यानी की शुक्रवार को सीएम योगी ने दूसरे चरण में होने जा रहे चुनाव प्रचार के दौरान मीडिया से मुखातिब होने के दौरान कई मसलों को लेकर अपना पक्ष रखा। इस बीच जहां उन्होंने आगामी चुनाव में बीजेपी की जीत का दावा किया तो वहीं हिजाब मसले को लेकर अपने विचार पेश कर दिए। उन्होंने साफ कह दिया कि यह देश संविधान से चलता है, ना किसी शरीयत से। अब आप इतना सब कुछ पढ़ने के बाद समझ ही गए होंगे कि उनकी इस पूरे मसले को लेकर क्या राय है। खैर, उन्होंने इस पूरे मसले को लेकर तो अपनी राय व्यक्त कर दी है, लेकिन अभी हिजाब मसले को लेकर शुरू हुआ विवाद का सिलसिला अभी खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। बहरहाल, यह पूरा मामला वर्तमान में कोर्ट में विचाराधीन है। जहां मुस्लिम छात्राएं इसे अपना संवैधानिक अधिकार बता रही हैं, तो वहीं शिक्षण संस्थानों में यूनिफॉर्म पहनने की अनिवार्यता पर बल दिया जा रहा है। अब ऐसे में आगे चलकर यह पूरा विवाद क्या रुख अख्तियार करता है। यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा, लेकिन फिलहाल तो इसे लेकर सियासी गलियारों में तपिश भरी सियासी बया के बहने का सिलसिला शुरू हो चुका है।