नई दिल्ली। साल 2018 में कांग्रेस को लगातार 2014 के बाद से चुनावों में मिल रही हार का सिलसिला थम गया था। भाजपा के तीन हिंदी पट्टी के राज्यों पर कांग्रेस ने जीत का पताका लहराया था। उसमें सबसे अप्रत्याशित जीत कांग्रेस की छत्तीसगढ़ में थी जहां चावल वाले सीएम मतलब भाजपा के सीएम डॉ. रमन सिंह को बुरी तरीके से हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस और भाजपा के बीच यहां सीट का अंतर काफी बड़ा था। लेकिन यहां भी पार्टी के भीतर के कलह ने ऐसी परेशानी खड़ी की कि पार्टी को मुख्यमंत्री का चेहरा तय करने में लंबा समय लग गया। अंत में पार्टी ने भूपेश बघेल के नाम पर अपनी मुहर लगा दी।
हालांकि मध्य प्रदेश में दोनों ही दलों ने लगभग बराबर की ताकत पाई थी लेकिन कांग्रेस बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और उसने अन्य दलों के समर्थन के साथ यहां सरकार का गठन कर लिया था। मुख्यमंत्री को लेकर यहां भी खूब ड्रामेबाजी हुई थी पार्टी के अंदर का अंतर्कलह खूब उभरकर सामने आया था। ज्योतिरादित्य सिंधिया का खेमा और कमलनाथ का खेमा आमने-सामने थे। खूब सियासी उठापटक चली दिल्ली से भोपाल तक लगातार बैठकों का दौर चलता रहा है और अंत में पार्टी हाईकमान की तरफ से कमलनाथ की ताजपोशी कर दी गई।
साल 2018 को जिस दिन कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने की घोषणा की गई वह तारीख थी 13 दिसंबर। राहुल गांधी ने इस दिन ट्वीट करते हुए लिखा था कि दो सबसे ताकतवर योद्धा को समय और पेशेंस यानी मौके का इंतजार करना होता है। इस ट्वीट के साथ तस्वीर लगाई गई थी जिसमें शामिल ज्योतिरादित्य ने खूब इंतजार किया और अब से चार महीने पहले समय आते ही राहुल का हाथ झटककर भाजपा का दामन ताम लिया। नतीजे में मध्यप्रदेश की 18 महीने पुरानी कमलनाथ सरकार मुंह के बल गिर गई। कमलनाथ और पार्टी हाईकमान से सिंधिया क्यों नाराज थे इसके बारे में वह लागातार पार्टी के शीर्ष लोगों को बताते रहे थे। लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं था अंत में पार्टी से अलग हटकर उनको यह फैसला लेना पड़ा और परिणाम कांग्रेस पार्टी के सामने था।
हालांकि कयास तभी से लगाए जाने लगे थे कि राजस्थान में भी कुछ ऐसा ही होने वाला है। क्योंकि सचिन पायलट का खेमा वहां अशोक गहलोत की जगह पायलट को मुख्यमंत्री बनाना चाहता था जिसकी वाजिब वजह भी थी। सचिन पायलट यहां कांग्रेस के लिए जीत तय करनेवाले विमान की मुख्य सीट पर बैठकर उसको चला रहे थे और सत्ता की मलाई खाने का जब वक्त आया तो पार्टी की तरफ से अशोक गहलोत को सामने लाकर खड़ा कर दिया।
कांग्रेस के भीतरखाने इस बात को लेकर कलह जारी थी कि पार्टी को युवा नेतृत्व से कोई मतलब नहीं है। पार्टी अभी भी उन्हीं पुराने विचारधारा वाले लोगों के कंधे पर सवार होकर सत्ता की वैतरणी पार करना चाहती है। परिणाम आज सामने है। पार्टी से असंतुष्ट चल रहे सचिन पायलय उपनी विमान में 30 से ज्यादा विधायकों को लेकर उड़ान भर चुके हैं और सत्ता में बैठे अशोक गहलोत और पार्टी हाईकमान के रडार में उनका कोई नामोनिशान तक नहीं दिख रहा है।
14 दिसंबर 2018 को जब राजस्थान में सीएम उम्मीदवार के नाम पर मुहर लगी तो उसके पहले खूब सारी सियासी ड्रामेबाजी हुई। हालांकि सहमति अशोक गहलोत के नेतृत्व को लेकर हुआ और 14 दिसंबर के ट्वीट में अपने साथ अशोक गहलोत और सचिन पायलट की तस्वीर लगाई और लिखा यूनाइटेड कलर्स ऑफ राजस्थान…यानी राजस्थान में एकता के रंग। लेकिन राहुल शायद यह नहीं समझ सके कि गहलोत और पायलट उनके साथ खड़े होकर फोटो भले ही खिंचवा रहे हैं। लेकिन यह एकता का रंग 19 महीने से ज्यादा टिकने वाला नहीं है।
पार्टी में लगातार बढ़ती अंतर्कलह की स्थिति और युवा नेतृत्व पर पार्टी का भरोसा सबसे कम होना पार्टी की सेहत के लिए नुकसान दे गया। जो हालत मध्य प्रदेश में बने थे कुछ ऐसे ही आसार राजस्थान में दिखने लगे हैं। ऐसे में पार्टी नेतृत्व भी अपने को ठगा सा और बेबस महसूस कर रहा है।