नई दिल्ली। मोदी सरकार द्वारा 2016 में की गई नोटबंदी सवालों के घेरे में रही है। विपक्ष हमेशा से ही आरोप लगाता आया है कि जिस कालेधन को नोटबंदी के द्वारा वापस लाने का बीजेपी ने वादा किया था, वह तो वापस नहीं आया लेकिन भ्रष्टाचार इसकी बदौलत खूब पनपा है। वहीं नोटबंदी का केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुरजोर बचाव किया है। कोर्ट में दाखिल हलफनामे में सरकार ने बताया है कि यह टैक्स चोरी रोकने और काले धन पर लगाम लगाने के लिए लागू की गई सोची-समझी योजना थी। नकली नोटों की समस्या से निपटना और आतंकवादियों की फंडिंग को रोकना भी इसका मकसद था।
इसके अलावा नोटबंदी प्लान का बचाव करते हुए सरकार ने कहा कि इसकी सिफारिश रिजर्व बैंक ने की थी। इसे काफी चर्चा और तैयारी के बाद लागू किया गया था। 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 500 और 1000 रुपए के पुराने नोटों को वापस लेने का की घोषणा की थी। इसके बाद लोगों को कुछ समय तक करेंसी नोट की कमी का सामना करना पड़ा था।
2016 में नोटबंदी से क्या परेशानी हुई थी?
जब मोदी सरकार द्वारा नोटबंदी का ऐलान किया गया तो बैंकों के बाहर कई किलोमीटर लंबी लाइन लग गई थी। अमीर गरीब बच्चे बूढ़े सभी लंबी-लंबी कतारों में लगे हुए थे। सरकार के इस कदम को 30 से अधिक याचिकाओं के जरिए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई हैं। इन याचिकाओं में यह कहा गया है कि बिना तैयारी के लागू हुई इस योजना के चलते लोगों को बहुत तकलीफ उठानी पड़ी। यह योजना न सिर्फ नियम-कानूनों को ताक पर रखकर लागू की गई, बल्कि इससे लोगों के संवैधानिक अधिकारों का भी हनन हुआ है।
वहीं आपको बता दें कि नोटबंदी के इस मामले की सुनवाई कर रही 5 जजों की संविधान पीठ ने सरकार से यह पूछा था कि नोटबंदी को क्यों लागू किया गया? 500 और 1000 रुपए के नोटों को वापस लेने का फैसला लेने से पहले किस तरह प्रक्रिया अपनाई गई? जवाब में केंद्र सरकार ने कहा है यह फैसला आर्थिक और मौद्रिक नीति का हिस्सा है। इसकी समीक्षा कोर्ट में नहीं की जानी चाहिए। मोदी सरकार 2016 से ही लगातार नोटबंदी के आरोपों का बचाव करती हुई दिखाई दी है। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है तो वहां पर भी केंद्र सरकार अपने पक्ष में दलीलें पेश कर रही है।