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Haridwar: हरिद्वार में हरकी पौड़ी पर सूखने के बाद भी हज़ारों लोगों का पेट पाल रही गंगा

Haridwar: पतित पावनी गंगा को यूं ही तारणहार नहीं कहा जाता, गंगा बहती है तो सबके पापों को धो देती है, सबको पार लगाती है और जब हरिद्वार में गंगा बंदी के दौरान गंगा की धारा अस्थाई रूप से रोक दी जाती है तब यही गंगा कई गरीबों का पेट भरती है।

नई दिल्ली। पतित पावनी गंगा को यूं ही तारणहार नहीं कहा जाता, गंगा बहती है तो सबके पापों को धो देती है, सबको पार लगाती है और जब हरिद्वार में गंगा बंदी के दौरान गंगा की धारा अस्थाई रूप से रोक दी जाती है तब यही गंगा कई गरीबों का पेट भरती है। साल में एक बार दशहरा से लेकर दीपावली तक हरिद्वार से कानपुर तक जाने वाली गंगनहर में साफ सफाई का काम होता है जिसे अंजाम देने के लिए यूपी सिंचाई विभाग गंगा बंदी कर देता है। इस दौरान गंगाजल का प्रवाह रोक दिया जाता है जिसके चलते उत्तराखंड की धर्मनगरी हरिद्वार में श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला थम जाता है और गंगा घाट सूने दिखाई देने लगते हैं।

इस सालाना गंगा बंदी के दौरान हरकी पौड़ी और आसपास के घाटों पर हज़ारों लोग गंगा की सूखी धारा में सिक्के, सोने-चांदी के कण और बेशकीमती कटपीस और धातुएं बीनने का काम करते हैं। एक महीने तक इन निम्न वर्गीय लोगों की आजीविका गंगा बंदी पर ही निर्भर होती है। इस खोजबीन के दौरान कई लोगों के हाथ तो कीमती रत्न तक लग जाते हैं, यही वजह है कि ऐसे लोग सुबह से ही इस काम में जुट जाते हैं। दिनभर सिक्के बीनने वाले लोग भी आठ सौ रुपये से लेकर एक हजार रुपये तक जमा कर लेते हैं।

दरअसल, श्रद्धालु अपनी आस्था से गंगा जी में सिक्के चढ़ाते हैं और अस्थि विसर्जन भी करते हैं। अस्थि विसर्जन की राख में भी सोने-चांदी के कण होते हैं, ये कण और सिक्के जल के नीचे सतह पर बैठ जाते हैं। आमतौर पर कुछ युवा पूरे साल भर सिक्के और सोने-चांदी के कण बीनते हैं लेकिन गंगाजल का बहाव तेज़ होने के कारण सिक्के और सोने-चांदी के कणों को बीनना मुश्किल होता है। यही वजह है कि ये लोग सालभर गंगा बंदी होने का इंतज़ार करते हैं जिसके बाद गंगा में डुबकी लगाने लायक जल नहीं रहता और इन लोगों का काम बेहद आसान हो जाता है।

कीमती चीजें बीनने के इस काम में कई परिवार तक लग जाते हैं, बीनने वाले अधिकतर लोग चंडीघाट, भीमगोड़ा और रोड़ीबेलवाला की झुग्गी बस्तियों में रहते हैं। सिक्के और बेशकीमती धातुओं को बीनकर इन परिवारों की दीपावली रौशन हो जाती है, ये लोग इसे मां गंगा का आशीर्वाद मानते हैं। इस काम में किसी-किसी को तो लाखों की सौगात भी हाथ लग चुकी है। वहीं दूसरी तरफ गंगा बंदी का असर श्रद्धालुओं की संख्या पर भी साफ दिखाई देता है, दीपावली के आसपास हर की पौड़ी पर गंगा जल न होने के चलते बेहद कम श्रद्धालु हरिद्वार का रुख करते हैं। इस दौरान यहां दूसरे गंगा घाटों पर भी सन्नाटा पसरा रहता है, जिससे घाट के तीर्थ पुरोहितों को आर्थिक तंगी झेलनी पड़ती है।