नई दिल्ली। हाथरस में हुई घटना के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने स्वतः संज्ञान लेते हुए प्रशासन, पुलिस और पीड़ित के परिवार को इस मामले में अपनी बात अदालत के सामने रखने के लिए बुलाया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने पुलिस, प्रशासन और पीड़ित के परिवार के बयानों को बड़े ध्यान से सुना और फिर हाईकोर्ट ने इस पर अगली सुनवाई की तारीख दे दी लेकिन इस पूरे मामले पर अदालत की तरफ से आदेश जारी किया गया है। इस पूरे मामले पर प्रशासन और पुलिस के बयानों से अदालत संतुष्ट नजर नहीं आई। अदालत ने डीएम, एडीजी लॉ एंड ऑर्डर पर सख्त टिप्पणी की और कहा कि इस पूरे मामले में डीएम हाथरस का बयान विरोधाभाषी है। डीएम हाथरस ने अदालत के सामने इस बात को माना कि पीड़िता के शवदाह का निर्णय उन्होंने लिया था ताकि इलाके में माहौल खराब ना हो। इस पर कोर्ट ने पूछा कि क्या और फोर्स बढ़ाकर अंतिम संस्कार के लिए सुबह होने का इंतज़ार नहीं किया जा सकता था? इस दौरान पीड़िता के अंतिम संस्कार को लेकर कोर्ट ने एडीजी प्रशांत कुमार से यह पूछा कि अगर उनकी अपनी बेटी होती तो क्या वह बिना चेहरा देखे उसका अंतिम संस्कार होने देते। पीड़ित परिवार ने अदालत से कहा था कि उन्हें लड़की का मुंह भी नहीं देखने दिया गया और ज़बरदस्ती उसे जला दिया गया।
अदालत ने हाथरस के डीएम प्रवीण कुमार समेत कई अफसरों को भी आड़े हाथों लिया। अदालत ने इन अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए बिना परिवार की सहमति के अंतिम संस्कार करने के मुद्दे को लेकर डीएम को फटकार लगाई। कोर्ट ने डीएम से पूछा कि अगर वो किसी बड़े आदमी की बेटी होती तो क्या उसे इस तरह जला देते?
लखनऊ पीठ ने सोमवार की सुनवाई के बाद आज अपने आदेश में कहा कि किसी को भी पीड़िता के चरित्र हनन के प्रयास में शामिल नहीं होना चाहिए, ठीक उसी तरह जैसे कि आरोपियों को निष्पक्ष सुनवाई के पहले दोषी नहीं ठहराया नहीं जाना चाहिए। कोर्ट ने हाथरस मामले में स्वत: संज्ञान लिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 2 नवंबर को होनी है, जिसके लिए सभी को फिर यहां आना होगा। इसके बाद अदालत ने अपने आदेश में कहा कि पीड़ित परिवार को कड़ी सुरक्षा मुहैया कराया जाए और यह जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। जिसपर सरकार सहमत भी हो गई।
इसके साथ ही कोर्ट पीड़िता के साथ गैंगरेप नहीं होने वाले बयान पर बेहद खफा नजर आई। इसके साथ ही कोर्ट ने हाथरस के निलंबित एसपी विक्रांत वीर की पेशी के भी आदेश दे दिए कोर्ट ने कहा कि 2 नवंबर को हाईकोर्ट में अगली सुनवाई में उनकी पेशी जरूरी है। कोर्ट ने मीडिया, राजनीतिक दलों पर भी सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि सबी इस मामले में अनावश्यक बयानबाजी से बचें। मीडिया जिम्मेदारी भरी रिपोर्टिंग करे। इसके साथ ही अदालत ने कहा कि सीबीआई जांच मीडिया से शेयर नहीं करेगी। मतलब आदेश में साफ था कि इस जांच की प्रगति पब्लिक डोमेन में नहीं रखी जाएगी। इसके साथ ही अदालत ने सरकार को आदेश दिया कि महिला सुरक्षा को लेकर भी जल्द नीति बनाई जाए।