नई दिल्ली। भारत सरकार ने सोशल मीडिया पर नकेल कसने के लिए कानूनी फरमान जारी कर उसको मानने की बाध्यता की समय सीमा तय कर दी तो सारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पूरी तरह से इस मियाद के खत्म होने का इंतजार करने लगे। कारण साफ और स्पष्ट था उन्हें लगता था कि भारत सरकार की ताकत इतनी नहीं कि वह इस तरह के प्लेटफॉर्म पर बैन लगा सके। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों के लिए भारत में बना बाजार और उसके उपभोक्ता हैं। ऊपर से ऐसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जिस विचारधारा से पोषित हैं उसके समर्थक पहले से ही उनके साथ भारत में खड़े हैं। सारी राजनीतिक विपक्षी पार्टियां अभी केवल और केवल अभिव्यक्ति की आजादी और निजता के अधिकार के हनन का गीत गा रहे हैं तो वहीं उनके सुर में सुर मिला रहे हैं ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म। तभी तो भारत सरकार के बनाए आईटी कानून के खिलाफ WhatsApp जैसे संस्थान भारत सरकार के खिलाफ भारत की ही अदालत में पहुंच गई। ट्विटर तो सरकार के खिलाफ बगावत का ही सुर छेड़कर आमने-सामने आ खड़ा हुआ है। हालांकि फेसबुक ने सरकार के सामने घूटने जरूर टेक दिए और सरकार से इस बात के लिए विनती की है कि वह ऐसे सारी बातों और शर्तों को मानने के लिए तैयार है जो सरकार कहती है। लेकिन उसी की दूसरी यूनिट Whatsapp ने जो किया है उससे स्पष्ट है कि यह चेक मेट का खेल है। अगर WhatsApp को अदालत से आदेश मिल गया कि ऐसा कानून नहीं मानना तो तब तो उसके Facebook और instagram को कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी वह तो स्वतः सभी पर लागू हो जाएगा और अगर फैसला उल्टा आया तो तब तक फेसबुक और इंस्टा पर तो बैन से बचाव है ही बाद में Whatsapp की तरफ से भी इस मामले में बयान जारी कर माफी मांग ली जाएगी और फिर सबकुछ पहले जैसा ही हो जाएगा।
लेकिन इस सब के बीच ट्विटर की एक अलग ही सनक है। वह सीधे तौर पर भारत सरकार से दो-दो हाथ करने के मुड़ में है और उसको भरोसा और समर्थन मिल रहा है देश और सरकार विरोधी ताकतों से। इसके पीछे की वजह भी स्पष्ट है ये वही सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है जो संबित पात्रा के ट्वीट पर मैनुपुलैटेड का टैग लगा देती हैं लेकिन वह शशि थरूर और अन्य कांग्रेसी नेताओं के फेक न्यूज को ससम्मान चलने देती है। ये वही ट्विटर है जो कंगना रनौत के अकाउंट को बैन कर देती है लेकिन शरजील इमाम, उमर खालिद और अमानतुल्लाह जैसे जहर उगलने वालों के लिए अपने प्लेटफॉर्म की चीड़िया को आजाद उड़ने के लिए छोड़ कर रखती है।
ऐसे में सरकार की तरफ से नए आईटी कानून की मियाद पूरी होने की स्थिति में इस बात की पूछताछ की गई है। केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने फेसबुक, व्हाट्सएप और ट्विटर समेत सभी सोशल मीडिया प्लेट्फॉर्म को नोटिस भेजकर पूछा है कि उन्होंने मंत्रालय की तरफ से जारी किए गए नए नियमों का पालन क्यों नहीं किया? और अगर किया है तो क्या उन्होंने अपने कार्यालय पर सक्षम अधिकारियों की नियुक्ति की है। जो भारत सरकार के सवालों के जवाब के लिए भारत में स्थित उनके कार्यालय में मौजूद हों। सरकार ने ये भी कहा कि इन कंपनियों ने अगर नियुक्ति की है और नियमों का पालन किया है तो इसके विवरण जल्द से जल्द भारत सरकार को भेजें।
For India ,Twitter have appointed officer in US. GOI is saying appoint in India pic.twitter.com/CFAlJGEZlU
— Anil Tiwari (@Interceptors) May 26, 2021
अब आप ट्विटर की चालबाजी देखिए वह अमेरिका में अपने कार्यालय में अमेरिकी कानून के अनुसार जवाबदेह और सक्षम अधिकारियों की नियुक्ति करता है। वहीं यूनाइटेड स्टेट के अलावा यूरोपियन यूनियन के देशों के लिए भी उसने सक्षम अधिकारी नियुक्त कर रखे हैं। लेकिन वह भारत में इस पूरी बात को खारिज करता है क्योंकि अगर उसने सरकार की इस बात को मान लिया तो उसे अपना एक सूत्री और भारत विरोधी एजेंडा चलाने में नाकामी हाथ लगेगी। आपको बता दें कि भारत के सभी लीगल मामले और किसी भी प्रकार की पूछताछ के लिए एक डाटाबेस यूनिट ट्विटर ने सेन फ्रांसिसको में तैयार कर रखा है। जहां किसी भी हालत में भारत सरकार की पहुंच नहीं हो सकती।
लेकिन भारत सरकार की तरफ से जैसे ही नए आईटी कानून की तलवार इनके गर्दन पर लटकी इनको भारत सरकार के आमने-सामने आकर खड़ा होना पड़ा। आपको ग्रेटा थनबर्ग का वह टूलकिट किसान आंदोलन वाला याद होगा उसको इसी ट्विटर ने अनलिस्टेड या बैन नहीं किया लेकिन भाजपा की तरफ से कांग्रेस की पोल खोलती टूलकिट पर यह सक्रिय हो उठा और उसे मैनुपुलेटेड बता दिया। यह इसके लिए तभी संभव हो पाया है जबकि इसने भारत सरकार के लिए जवाबदेह अधिकारी को सेन फ्रांसिसको के कार्यालय में बिठा रखा है।