नई दिल्ली। मणिपुर में हिंसा और महिलाओं को निर्वस्त्र कर रेप के मामले में विपक्षी दलों ने एकजुट होकर मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है। नियम 198 के तहत ये नोटिस दिया गया है। विपक्षी दलों को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा है कि वो सभी दलों से बात कर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा कराने का दिन तय करेंगे। इस चर्चा के बाद पीएम नरेंद्र मोदी सरकार की तरफ से पक्ष रखेंगे। हालांकि, विपक्ष चाहता है कि आज ही अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की जाए। बात करें, भारत की आजादी के बाद से संसद में आए अविश्वास प्रस्तावों की, तो इनकी संख्या 27 है। पहला अविश्वास प्रस्ताव आचार्य जेबी कृपलानी ने तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू की सरकार के खिलाफ 1963 में दिया था। इस प्रस्ताव पर 347 सांसद सरकार के समर्थन में थे। जबकि, विपक्ष के साथ सिर्फ 62 सांसद रहे।
अब तक जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री मोरारजी देसाई, इंदिरा गांधी, चौधरी चरण सिंह, वीपी सिंह, एचडी देवगौड़ा, इंद्रकुमार गुजराल, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकारों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश हो चुका है। मोदी सरकार के खिलाफ भी 2018 में पहला अविश्वास प्रस्ताव टीडीपी ने दिया था। इनमें से सिर्फ 3 बार सरकारें गिरी हैं। चौधरी चरण सिंह ने अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। पीएम रहते इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ सबसे ज्यादा 15 बार अविश्वास प्रस्ताव आया और बहुमत से वो विपक्ष को संसद में हराती रहीं। लाल बहादुर शास्त्री के पीएम रहते जब अविश्वास प्रस्ताव आया, तो उस पर 24 घंटे 32 मिनट तक चर्चा हुई। ये किसी भी अविश्वास प्रस्ताव पर सबसे लंबी बहस थी।
अगर अभी की लोकसभा में मोदी सरकार और संयुक्त विपक्ष की ताकत को देखें, तो अविश्वास प्रस्ताव से सरकार को कोई खतरा नहीं है। लोकसभा में 543 सीटें हैं। अभी इनमें से 5 पर कोई सदस्य नहीं है। कुल सांसदों में से बीजेपी और सहयोगी एनडीए के मिलाकर 335 सांसद हैं। जिनमें से बीजेपी के ही अकेले 301 सांसदों की संख्या है। वहीं, विपक्षी गठबंधन के पास 142 सांसद हैं। अन्य दलों के भी 60 सांसद लोकसभा में हैं। जो सत्ता पक्ष या विपक्ष से नहीं जुड़े हैं और मुद्दों पर मोदी सरकार का समर्थन भी करते रहे हैं। इनमें से वाईएसआरसीपी ने अविश्वास प्रस्ताव का विरोध पहले ही कर दिया है। बीएसपी की तरफ से भी इस प्रस्ताव का विरोध किया जाना करीब-करीब तय माना जा रहा है।