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Opposition I.N.D.I.A Meeting: न सीटों का बंटवारा और न ही संयोजक का चुनाव, विपक्षी गठबंधन की बैठक में फिर ढाक के तीन पात का नजारा!

विपक्षी गठबंधन की बैठक से पहले ही ममता बनर्जी ने कांग्रेस को अपने राज्य में 2 सीटें जीतने वाली बताया था। वहीं, अरविंद केजरीवाल ने पंजाब की सभी 13 लोकसभा सीटों पर दावा कर दिया था। जबकि, उद्धव ठाकरे की शिवसेना-यूबीटी के मुखपत्र सामना में भी कांग्रेस पर निशाना साधा गया था।

नई दिल्ली। विपक्षी गठबंधन यानी I.N.D.I.A के नेताओं की अब तक 4 बैठक हो चुकी है, लेकिन अहम मसलों पर मामला अभी ढाक के तीन पात जैसा ही है। विपक्षी दलों का गठबंधन बनने के बाद से पटना, बेंगलुरु और मुंबई के बाद मंगलवार को दिल्ली में भी नेता जुटे और काफी देर तक मंथन किया, लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए जरूरी सीटों के बंटवारे पर कोई फैसला नहीं ले सके। अब कहा जा रहा है कि सीटों के बंटवारे का अहम मसला जनवरी 2024 में तय किया जाएगा। विपक्ष के नेताओं ने मंगलवार को हुई बैठक में जिस अहम मुद्दे पर रजामंदी दिखाई, वो ये कि 30 दिसंबर से वे एकसाथ रैलियां करेंगे। पूरे समय जो बैठक हुई, उसमें संसद से विपक्षी सांसदों के निष्कासन पर ही चर्चा होती रही। फिर ममता बनर्जी की तरफ से पीएम पद के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे करने के साथ बैठक खत्म हो गई।

सुना ये भी जा रहा है कि खरगे का नाम पीएम पद के लिए आगे होने के साथ ही नीतीश कुमार और लालू यादव भी नाराज हो गए। नीतीश और लालू की नाराजगी की चर्चा ने इसलिए भी जोर पकड़ा, क्योंकि दोनों ही विपक्षी गठबंधन की बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए नहीं रुके। इसकी बड़ी वजह ये भी मानी जा रही है कि इंडिया गठबंधन के नेता सीटों का बंटवारा तो छोड़िए, संयोजक का नाम तक तय नहीं कर पाए। जबकि, काफी पहले से चर्चा इसकी थी कि नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन का संयोजक बनाया जा सकता है। कुल मिलाकर कोई भी अहम फैसला न होने से ये चर्चा अब तेज है कि विपक्षी गठबंधन में एकराय कायम हो पाना मुश्किल है।

विपक्षी गठबंधन की बैठक से पहले ही ममता बनर्जी ने कांग्रेस को अपने राज्य में 2 सीटें जीतने वाली बताया था। वहीं, अरविंद केजरीवाल ने पंजाब की सभी 13 लोकसभा सीटों पर दावा कर दिया था। जबकि, उद्धव ठाकरे की शिवसेना-यूबीटी के मुखपत्र सामना में भी कांग्रेस पर निशाना साधा गया था। ऐसे में विपक्षी गठबंधन के इन तीन बड़े घटकों की तरफ से जो बयानबाजी हुई, उससे साफ है कि कांग्रेस के लिए आने वाले वक्त में दो ही रास्ते बचते हैं। पहला ये कि क्षेत्रीय दल उसे अपने राज्य में जितनी सीटें दे, उस पर कांग्रेस संतोष कर ले। दूसरा रास्ता ये कि गठबंधन से अलग होकर अपनी राह चले। देखना ये है कि कांग्रेस इसमें से कौन सा रास्ता अख्तियार करती है।