नई दिल्ली। बुधवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में वन रैंक वन पेंशन (One Rank One Pension) मामले में सुनवाई हुई। सुप्रीम कोर्ट ने वन रैंक वन पेंशन पर केंद्र सरकार के फैसले को बरकरार रखा है। कोर्ट ने सेवानिवृत्त सैनिकों के लिए लागू OROP की नीति को सही ठहराया।
Supreme Court upholds the government’s decision on One Rank, One Pension (OROP) and says it does not find any constitutional infirmity on the OROP principle and the notification dated November 7, 2015. pic.twitter.com/9rc25Qp1td
— ANI (@ANI) March 16, 2022
न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ (Justice DY Chandrachud) की अध्यक्षता वाली पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार का ‘वन रैंक-वन पेंशन’ का फैसला मनमाना नहीं है, और न ही किसी प्रकार की संवैधानिक कमी से ग्रस्त है। इसलिए इसे बरकरार रखा जाना चाहिए। बता दें, इस पीठ में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस विक्रम नाथ भी शामिल थे। इसके अलावा देश के सर्वोच्च न्यायालय ने ये भी कहा, कि OROP की लंबित पुनर्निर्धारण प्रक्रिया की शुरुआत 1 जुलाई, 2019 से जानी चाहिए और तीन महीने में बकाया राशि का भुगतान हो जाना चाहिए।
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि नीति में 5 साल में पेंशन की समीक्षा का प्रावधान है। सरकार 1 जुलाई 2019 की तारीख से पेंशन की समीक्षा करे। 3 महीने में बकाया का भुगतान करे। बता दें, कि एक भारतीय भूतपूर्व सैनिक आंदोलन (आईईएसएम) साल 2015 में सरकार द्वारा लाई गई वन रैंक वन पेंशन नीति के फैसले को चुनौती दी थी, जिसमें उन्होंने दलील दते हुए कहा था कि सरकार का ये फैसला मनमाना और दुर्भावनापूर्ण है, क्योंकि ये एक प्रकार से वर्ग के भीतर एक वर्ग का निर्माण करता है। ये नीति प्रभावी रूप से एक रैंक को अलग-अलग पेंशन प्रदान करती है। सुप्रीम कोर्ट ने भूतपूर्व सैनिक संघ द्वारा दायर एक याचिका पर फैसला दिया, जिसमें भगत सिंह कोश्यारी समिति ने पांच साल में एक बार आवधिक समीक्षा की वर्तमान में चल रही नीति के बजाय एक स्वचालित वार्षिक संशोधन के साथ एक रैंक-एक पेंशन को लागू करने की मांग की गई थी।