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Ram Mandir Sacrifice: राम मंदिर को बचाने की पहली जंग में बाबर के 700 सैनिकों को मारने वाले योद्धा की कहानी

Ram Mandir Sacrifice: जब मुगल आक्रांताओं के अत्याचार की आंच राम मंदिर तक पहुंची तब चट्टान बनकर खड़ो हो गए थे पंडित देवीदीन पाण्डेय। 1528 में उन्होंने बाबर की सेना से लंबी लड़ाई थी। इसमें गजराज सिंह भी थे। इन लोगों ने 90 हजार सैनिकों की सेना तैयार की थी। लोगों का कहना है कि तब गुरिल्ला वॉर लड़ा गया था।

नई दिल्ली। इतिहास विजेताओं के इशारे पर लिखा जाता है, इसलिए बलिदान की कई हैरतअंगेज कहानियां उन पन्नों में जगह नहीं बना पाती हैं। इन्हीं हैरतअंगेज कहानियों में नाम दर्ज होते हैं उन अनसुने नायकों के जिनके बलिदान को वो महत्व नहीं मिल पाता जिसके वो हकदार होते हैं। ऐसी ही एक कहानी है पंडित देवीदीन पाण्डेय की, जिन्होंने राम मंदिर की रक्षा करते हुए अयोध्या का पहला भीषण युद्ध लड़ा था। राम मंदिर से सिर्फ 12 किलोमीटर दूर सनेथू गांव, जिसका अपना इतिहास और बलिदान की अपनी दास्तान है। सनेथू गांव के देवीदीन पाण्डे और आस-पास के गांव के लोगों ने बाबर की सेना से राम मंदिर को बचाने के लिए लंबी लड़ाई लड़ी थी। ये कहानी इतिहास में ज्यादा जगह नहीं बना पाई लेकिन मौखिक इतिहास में ये कहानी जिंदा है।

जब मुगल आक्रांताओं के अत्याचार की आंच राम मंदिर तक पहुंची तब चट्टान बनकर खड़ो हो गए थे पंडित देवीदीन पाण्डेय। 1528 में उन्होंने बाबर की सेना से लंबी लड़ाई थी। इसमें गजराज सिंह भी थे। इन लोगों ने 90 हजार सैनिकों की सेना तैयार की थी। लोगों का कहना है कि तब गुरिल्ला वॉर लड़ा गया था। अलग-अलग माध्यमों से ये लोग लड़ाई लड़ रहे थे। इस वक्त उनकी सातवीं पीढ़ी है।

 देवीदीन पाण्डेय के वंशज आज इसी मंदिर में रहते हैं। राम मंदिर के लिए शहीद होने वाले देवीदीन की पीढ़ी में महिलाएं हों या पुरुष, युवा हों या बुजुर्ग अपनी पीढ़ियों के पराक्रम की विरासत को इन्होंने संजोकर रखा है। ये वही तलवार है जिससे देवीदीन पाण्डे ने बाबर के 700 मुगल सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। देवीदीन पांडे के इन वंशजों के मुताबिक, 3 जून 1528 को युद्ध की शुरुआत हुई थी। संभाजी सिंह, जिनके नाम से घाट है, वहां ये लोग गुरिल्ला युद्ध लड़ा करते थे। दिन भर वो लोग दीवारें तैयार करते थे और ये लोग जाकर गिरा देते थे। फिर मीर बाकी से युद्ध हुआ। बाबर कभी यहां नहीं आया। मीर बाकी हाथी पर सवार होकर आया था। उसके पास बंदूकें थीं। हमारे पूर्वजों के पास भाला और तलवार थी। 90 हजार लोग शहीद हुए। 7 दिनों तक युद्ध चला। बाद में लखौरी ईंट से उनका देहांत हुआ और वो वीरगति को प्राप्त हुए।

देवीदीन पाण्डेय पर पीछे से वार किया गया था। लेकिन शहादत से पहले उन्होंने उस युद्ध में बाबर के 700 सैनिकों को अकेले मारा था। मीर बाकी की लाखों की सेना थी। आधुनिक अस्त्र-शस्त्र से लैस थी। पीछे से देवीदीन पाण्डेय के सिर पर ईंट से मारा गया। फिर उन्होंने पगड़ी से सिर को बांधा और अंत तक लड़ते रहे। ऐसा कहा जाता है कि उन्होंने अकेले 700 आतंकियों को मारा। वो घोड़े पर युद्ध लड़ते थे। ये शहादत सिर्फ राम मंदिर के लिए नहीं थी। ये शहादत अयोध्या और पूरे भारत के लिए थी।