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West Bengal: बंगाल में चुनाव बाद हिंसा पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी, ममता सरकार से मांगा जवाब

West Bengal: दलील में कहा गया, “राज्य प्रायोजित हिंसा के कारण पश्चिम बंगाल में लोगों के पलायन ने उनके अस्तित्व से संबंधित गंभीर मानवीय मुद्दों को जन्म दिया है, जहां वे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के साथ दयनीय परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं।”

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र से उस जनहित याचिका पर जवाब की मांग की है, जिसमें राज्य में चुनाव के बाद हुई हिंसा को लेकर एसआईटी जांच की मांग की गई थी। साथ ही, इस याचिका में टीएमसी कार्यकर्ताओं द्वारा कथित रूप से की गई हिंसा के चलते आंतरिक रूप से विस्थापित लाखों लोगों को तत्काल राहत पहुंचाने की भी बात कही गई थी। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पिंकी आनंद ने न्यायमूर्ति विनीत सरन और न्यायमूर्ति बी.आर. गवई की पीठ के समक्ष अपना पक्ष रखा कि विभिन्न मानवाधिकार आयोगों ने इस हिंसा पर रिपोर्ट की है और कोर्ट से इन रिपोर्टों पर गौर फरमाने का आग्रह किया है।

Bengal Violence

पिंकी आनंद ने कहा कि राष्ट्रीय महिला आयोग ने विस्थापित महिलाओं की मदद की है। उन्होंने इन संगठनों के खिलाफ अभियोग चलाए जाने की भी मांग की। आनंद के अनुरोध पर पीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता अरुण मुखर्जी और चार अन्य द्वारा दायर जनहित याचिका में एनएचआरसी और राष्ट्रीय महिला आयोग को लेकर एक पक्ष बनाने को कहा। पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया और मामले की अगली सुनवाई के लिए जून की तारीख तय की।

supreme court

याचिका में सुप्रीम कोर्ट से राज्य में राजनीतिक हिंसा और लक्षित हत्याओं की घटनाओं की जांच करने और मामला दर्ज करने के लिए एक एसआईटी गठित करने का आग्रह किया गया था। दलील में कहा गया, “राज्य प्रायोजित हिंसा के कारण पश्चिम बंगाल में लोगों के पलायन ने उनके अस्तित्व से संबंधित गंभीर मानवीय मुद्दों को जन्म दिया है, जहां वे संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत निहित अपने मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के साथ दयनीय परिस्थितियों में रहने के लिए मजबूर हैं।”

यह याचिका मुखर्जी और कुछ अन्य लोगों द्वारा दायर की गई थी, जो 2 मई के बाद राज्य में चुनाव के बाद हो रही हिंसा से पीड़ित होने का दावा करते हैं।