नई दिल्ली। प्रोजेक्ट टाइगर को 50 साल पूरे हो चुके हैं। भारत में लगातार विलुप्त होते बाघों को बचाने के लिए प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की गई थी। इस प्रोजेक्ट की वजह से बाघों को बचाया जा सका है। अभयारण्यों में उनकी संख्या भी बढ़ी है। ताजा आंकड़ों के मुताबिक देश में बाघों की तादाद बढ़कर 3167 हो गई है। पिछले साल ये आंकड़ा 2967 का था। यानी एक साल में 200 बाघ नए जुड़े हैं। ये आंकड़े भले ही उत्साह बढ़ाते हों। हमारे देश के राष्ट्रीय पशु को विलुप्ति से बचाने की सफल कहानी कहते हों, लेकिन एक और पहलू भी है, जो बाघों के लिए बड़ी मुश्किलों का सबब बन रही है।
बाघ कहां रहते हैं? आप कहेंगे भई और कहां रहेंगे भला। जंगल में रहते हैं। हां, बाघ जंगल में रहते हैं, लेकिन कभी क्या किसी ने ये सोचा है कि बाघ आखिर आए दिन इंसानी बस्तियों में क्यों दिखते हैं? क्यों उनको शिकारियों के फंदों और बिजली वाले खेतों के चारों तरफ लगाए तारों में चिपककर जान देनी पड़ती है? क्यों कई बार बाघ हाइवे पर गाड़ियों की टक्कर से मारे जाते हैं? इसका जवाब है इंसान। इंसान जितनी तेजी से बढ़ रहे, वो सिर्फ बाघ ही नहीं बल्कि, दूसरे जानवरों की जिंदगी पर भी बड़ा खतरा बनते जा रहे हैं। इंसान बढ़ रहे, तो रहने के लिए जगह की जरूरत भी बढ़ रही। जगह की जरूरत बढ़ रही, तो जंगल भी खत्म हो रहे। नतीजे में बाघों की तादाद बढ़ भी रही है और उनकी मौत की खबरें भी आती ही रहती हैं।
इस साल यानी 2023 की ही बात करें, तो अब तक 26 बाघों की मौत की खबर आ चुकी है। बीते 5 साल की बात करें, तो विभिन्न कारणों से 171 बाघों ने जान गंवाई है। यहां तक कि मध्यप्रदेश हाईकोर्ट को राज्य में बाघों की मौत का संज्ञान लेकर जांच के आदेश तक देने पड़े। 2022 में पता चला था कि भारत में जितने बाघ थे, उनमें से 30 फीसदी अभयारण्यों से बाहर थे। साफ है इसकी वजह जमीन के लिए जंगलों को नष्ट करना और बाघ के इलाके में इंसानी अतिक्रमण ही है। अगर इस अतिक्रमण को न रोका गया, तो बाघों की संख्या एक तरफ तो प्रोजेक्ट टाइगर के कारण बढ़ेगी, लेकिन दूसरी तरफ उनकी जान भी जाएगी। सरकारें हालांकि इस दिशा में काम कर रही हैं, लेकिन बाघों को बचाने में हमारी और आपकी भूमिका सबसे अहम है। तभी हम इस शानदार जीव को भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी बचा सकेंगे।