newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

Vision IAS की शिक्षिका का अजीबोगरीब ज्ञान, कश्मीरी हिंदुओं पर अत्याचार को ठहराया उचित, इस्लाम को बताया उदारवादी

Vision IAS: इसके अलावा उन्होंने एकल परिवार और संयुक्त परिवार के संदर्भ में विवादित टिप्पणी की है, जिसमें उन्होंने कहा कि वहीं संयुक्त परिवार पढ़ाते हुए संयुक्त परिवार की अवधारणा को कॉमन प्रॉपर्टी, सेक्सुअल ग्रैटिफिकेशन, रिप्रोडक्शन तक केंद्रित कर दिया गया है।

नई दिल्ली। अगर आपके जेहन में भी IAS बनने का ख्वाब पल रहा होगा, तब तो फिर आप सोशल मीडिया के मुख्तलिफ मंचों के जरिए ‘IAS दृष्टि’ के वीडियोज तो देखते ही होंगे। इन वीडियोज में आईएएस के ज्ञान के संदर्भ में ज्ञान की दरिया बहाई जाती हैं, जिसमें आईएएस बनने की चाह रखने वाले प्रतिभागी जमकर गोता लगाते हैं। अब इतना सब कुछ पढ़ने के बाद आप सोच रहे होंगे कि आखिर आज एकाएक आईएएस के संदर्भ में लंबी चौड़ी भूमिका क्यों रचाई जा रही है। आखिर पूरा माजरा क्या है। तो माजरा यह है कि दृष्टि आईएएस में एक शिक्षिका हैं, जिनका नाम स्मृति शाह हैं, जो बच्चों को आईएएस से संबंधित विषयों को पढ़ाती हैं। उनके वीडियोज भी काफी छात्रों द्वारा देखे जाते हैं। इसी बीच उनका एक विवादित वीडियो सामने आया है, जिसमें वे ऐतिहासिक तथ्यों के साथ खिलवाड़ करती हुई छात्रों के बीच गलत जानकारी प्रस्तुत करती हुई नजर आ रही है। आइए, आगे आपको विस्तार से बताते हैं।

Vision IAS की शिक्षिका ने कश्मीरी हिंदुओं के 'सामूहिक नरसंहार' को ठहराया जायज

कश्मीर पंडितों के नरसंहार को ठहराया जायज

वीडियो में शिक्षिका स्मृति शाह नब्बे के दशक में जम्मू-कश्मीर में हुए कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को उचित ठहराती हुई नजर आ रही हैं और शेख अब्दुल्ला सरीखे नेताओं को लिबरल बताने से भी कोई गुरेज नहीं कर रही हैं। यही नहीं, मौजूदा वक्त में विवादों के सैलाब में गोता लगाने वाले हिजाब मसले पर उनका कहना है कि मुस्लिम महिलाओं का हिजाब पहनना सामाजिक सम्मान का प्रतीक है।

उदासीनता के 3 दशक, अन्याय की 7 शताब्दियां, 1 सहस्राब्दी के बिना भरे घाव

लेकिन उन्होंने शैक्षाणिक संस्थानों में ड्रोस कोड के नियमों के संदर्भ में कोई भी टिका टिप्पणी करना जरूरी नहीं समझा है, जिससे आप उनके दोहरे मापदंड का अंदाजा लगा सकते हैं। यही नहीं, मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, वे मुस्लिमों के अत्याचार को उचित ठहराती हुई नजर आई हैं।

अंग्रेजी शासनकान को बताया सुनहरा काल

सोचकर ही हैरानी होती है कि अंग्रेजों की जिन बेड़ियों से आजादी दिलाने के लिए मां भारती के असंख्य वीरों ने हंसते-हंसते अपने प्राणों का आहुति दे दी, आखिर कोई भारतीय नगारिक कैसे आज के दौर में अंग्रेजों के शासनकाल को उचित ठहरा सकता है।

Behind the formal dress and polite smiles, the British in India were often sex mad and bloodthirsty | Daily Mail Online

लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि आईएएस दृष्टि में पढ़ाने वाली शिक्षिका स्मृति शाहा ने अंग्रेजों के शासनकाल को बेहतर बताया है। उन्होंने बताया है कि अंग्रेजों के काल में भारत में शिक्षा, स्वास्थ्य समेत अन्य आधारभूत संरचाओं में अभूतपूर्व विकास दर्ज किया गया था, जो कि आगे चलकर देश की नींव बनी है।

इस्लामी प्रोपेगेंडा को बढ़ाया आगे

इसके साथ ही वीडियो में स्मृति शाहा के जेहन में इस्लामिक प्रोपेगेंडा को आगे बढ़ाने की इच्छा साफ नजर आ रही है, जिसमें वे यह कहती हुई नजर आ रही है कि इसमें महिला टीचर छात्रों को ‘भक्ति आंदोलन’ पढ़ा रही हैं और समझा रही हैं कि कैसे ये आंदोलन इस्लामिक लिबर्टी के कारण शुरू हुआ। वहीं अब हिन्दू धर्म की कई दूसरी मान्यताओं पर भी कटाक्ष करते हुए इस्लाम को बेहतर बताया गया है। ज़्यादातर वीडियो में भक्ति आंदोलन के नाम पर या समाज और परिवार समझाते हुए द्रौपदी आदि के बहाने हिन्दू धर्म को ही निशाना बनाया गया है।

संयुक्त और एकल परिवार के संदर्भ में की ये टिप्पणी

इसके अलावा उन्होंने एकल परिवार और संयुक्त परिवार के संदर्भ में विवादित टिप्पणी की है, जिसमें उन्होंने कहा कि वहीं संयुक्त परिवार पढ़ाते हुए संयुक्त परिवार की अवधारणा को कॉमन प्रॉपर्टी, सेक्सुअल ग्रैटिफिकेशन, रिप्रोडक्शन तक केंद्रित कर दिया गया है। वहीं हरियाणा-पंजाब के बहाने पॉलीएंड्री पर बात की गई है कि पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में संपत्ति को बचाए रखने के लिए कई बेटों के लिए एक पत्नी खरीदी जाती है।

इस्लाम को बताया लिबरल  

वहीं, उन्होंने इस्लाम को लिबरल बताने से भी गुरेज नहीं किया है। उन्होंने कहा कि इस्लाम था बहुत लिबरल। वह समानता के बारे में बात करता था। कोई जाति व्यवस्था भी नहीं थी। अगर इस्लाम पढ़ा होगा तो एक चेरामन जुमा मस्जिद है जिसका मिनिएचर आपके पीएम ने सऊदी किंग को दिया । ये भारत का पहला मस्जिद है जो 7वीं-8वीं शताब्दी में बना। तब इस्लाम आया नहीं था।

Muharram| Hijri New Year, the History, Significance, Date and Much More

लेकिन इस्लाम आना शुरू हो गया था। उस समय वह उदारवाद, समानता के बारे में बात कर रहे थे। वह किसी भी तरह की कठोरता और जातिवाद से मुक्त थे। इस्लाम की एक खासियत थी जिसमें वह ईश्वर (अल्लाह) के प्रति पूरे समर्पण को लेकर बात करते थे। वे एक ईश्वर के कॉन्सेप्ट पर बात कर रहे थे।” ऐसे में आपके उनके जेहन में पल्लवित हो चुके विचारधाराओं से अवगत होने के बाद क्या विचार रखते हैं। हमें कमेंट कर बताना बिल्कुल मत भूलिएगा।