नई दिल्ली। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। उन्होंने यह इस्तीफा अपनी पुस्तक ‘लोक माझे सांगाती’ के विमोचन के मौके पर दिया है। उनके इस्तीफे के बाद एनसीपी कार्यकर्ता लगातार उन्हें मनाने की कोशिश कर रहे हैं। पवार के इस्तीफे के विरोध में पार्टी के अन्य नेता भी इस्तीफा दे रहे हैं। बता दें कि अब तक अशोक चव्हाण और संदिप पाटिल अपने पद से इस्तीफा दे चुके हैं। उनके इस्तीफे के बाद महाराष्ट्र की जनता की निगाहें दो बातों पर टिकी हैं। पहली तो यह कि शरद पवार के बाद एनसीपी की कमान किसे मिलती है? हालांकि, इस रेस में दो नाम शामिल हैं, पहला अजित पवार और दूसरा सुप्रिया सुले। अब दोनों में से किसके नाम पर मुहर लगती है। फिलहाल कह पाना मुश्किल है। वहीं, शरद पवार ने अपने फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए दो दिन का समय मांगा है। अब ऐसे में यह देखना भी दिलचस्प रहेगा कि क्या वे अपना फैसला वापस लेते हैं या अपने रूख पर बरकरार रहते हैं।
ध्यान रहे कि पवार ने अपना इस्तीफा अपनी आत्मकथा ‘लोक माझे सांगती’ के विमोचन के मौके पर दिया है। ऐसे में इस रिपोर्ट में उनकी इस आत्मकथा के बारे में जिक्र किए गए कुछ प्रमुख प्रसंगों के बारे में विस्तार से आपको बताएंगे, जिसके अभी कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। बता दें कि अपनी इस आत्मकथा में शरद पवार ने पीएम मोदी से अपने रिश्ते से लेकर अजित पवार की बगावत सहित महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार के गठन तक के पूरे सियासी सफर के बारे मे विस्तार से बताया है। ध्यान रहे कि अजित पवार ने 1999 में एनसीपी के गठन के बाद अध्यक्ष पद की कमान संभाली थी। इसके बाद से लेकर अब तक वो इस पद पर विराजमान रहे हैं, लेकिन अब जब उन्होंने अपनी उम्र का हवाला देकर अपना इस्तीफा दे दिया है, तो लगातार उन्हें मनाने की कोशिश जारी है।
कैसे थे मोदी से रिश्ते
शरद पवार ने अपनी पुस्तक लोक माझे सागंती में बताया कि यह उन दिनों की बात है, जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। उस वक्त केंद्र में यूपीए की सरकार थी और प्रधानमंत्री की कुर्सी पर डॉ मनमोहन सिंह विराजमान थे। उस वक्त नरेंद्र मोदी के रिश्ते तत्कालीन केंद्र सरकार से अच्छे नहीं थे, तो ऐसी सूरत में वो गुजरात और केंद्र सरकार के बीच एक पुल की तरह काम करते थे। उसी वक्त उन्होंने गुजरात के हित को ध्यान में रखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह से बात की थी।
पवार ने मनमोहन सिंह की तारीफ करते हुए लिखा है कि वो काफी सुलझे हुआ नेता थे और हमेशा देश-प्रदेश के विकास के प्रति प्रतिबद्ध रहा करते थे, लेकिन इसके बावजूद भी केंद्र और गुजरात के बीच संवाद के अभाव में जनता के हितों पर कुठाराघात हो रहा था, जिसे ध्यान में रखते हुए दोनों के बीच संवाद स्थापित करने की जिम्मेदारी मुझे दी गई थी, तो मैंने संवाद का सेतु स्थापित किया था। राजनीति में संवाद अपिहार्य है। बिना संवाद के राजनीति नीरस है। वो दीगर बात है कि बहुधा किसी विषय को लेकर मतभेद की वजह से विवाद हो जाता है, लेकिन यह विवाद देश प्रदेश के विकास की राह पर रोड़ा नहीं बनना चाहिए।
क्यों हुए थे अजित बागी
अजित पवार के बागी रूख के बारे में शरद पवार ने अपनी आत्मकथा में लिखा कि उनके बागी तेवर के पीछे की वजह सिर्फ सियासी नहीं, बल्कि पारिवारिक भी थी। निसंदेह वह हमारे लिए बहुत संवेदनशील परिस्थिति थी। ऐसी संवेदनशील परिस्थिति में मेरी पत्नी ने बहुत सूझबूझ से काम किया था।
अजित और मेरी पत्नी के बीच काफी अच्छे रिश्ते हैं। अजित मेरी पत्नी की किसी भी बात नहीं टालते हैं। ऐसी सूरत में मेरी पत्नी ने इस पारिवारिक विवाद पर विराम लगाने की दिशा में अहम भूमिका निभाई थी। जिसकी लिए मैं उनका शुक्रिया अदा करता हूं।
कैसे हुआ महाविकास अघाड़ी का जन्म
शरद पवार ने अपनी आत्मकथा में महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार के गठन की पूरी यात्रा के बारे में भी विस्तार से बताया है। सनद रहे कि गत महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में शिवेसना और बीजेपी ने मिलकर चुनाव लड़ा था, जबकि कांग्रेस और एनसीपी एक साथ चुनावी मैदान में आई थी, लेकिन बाद में शिवसेना और बीजेपी के बीच मुख्यमंत्री पद को लेकर विवाद हो गया। इसके बाद शिवेसना ने सरकार बनाने के लिए अपनी हिंदुत्ववादी विचारधारा की तिलांजलि देते हुए कांग्रेस और एनसीपी से भी हाथ मिलाने से गुरेज नहीं किया था, लेकिन इसी बीच अजित पवार गुट ने बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बना ली और देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री तो वहीं अजीत पवार को उपमुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी गई, लेकिन बाद में अजित सरकार बनाने के लिए पर्याप्त विधायक अपने साथ नहीं ला पाए, जिसके चलत उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने मिलकर सरकार बनाई। इस सरकार में सीएम की कमान उद्धव ठाकरे को सौंपी गई और डिप्टी सीएम अजित पवार को। बताया जाता है कि इस पूरे उथल-पुथल के दौरान शरद पवार ने अहम भूमिका निभाई थी।
उनके बिना यह सबकुछ संभव नहीं था, मगर सरकार गठन के तीन सालों के अंदर ही एकनाथ शिंदे ने शिवसेना विधायकों के गुट के साथ उद्धव ठाकरे के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। शिंदे ने उद्धव पर सत्ता सुख के लिए लिए बालासाहेब ठाकरे के हिंदुत्ववादी विचाराधारा की तिलांजलि देने का आरोप लगाया। शिंदे का कहना था कि उद्धव द्वारा एनसीपी और कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने से शिवसैनिक नाराज हैं। इसके बाद सभी बागी विधायकों ने शिंदे के नेतृत्व में गुजरात का रूख किया। वहां एक होटल में ठहरे और इसके बाद बीजेपी के साथ सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया, जिसके बाद उद्धव सरकार अल्पमत में आ गई और उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ गया।
हालांकि, इस बीच उद्धव ने इस घमासान पर अंकुश लगाने की पूरी कोशिश की, लेकिन उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिल पाई। आज उनकी सियासी दुर्गति की स्थिति कुछ ऐसी है कि उन्हें सत्ता के साथ-साथ शिवसेना से भी हाथ धोना पड़ रहा है। सनद रहे कि गत दिनों सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में उद्धव गुट को असली शिवसैनिक बताया है और तीर कमान उन्हें ही सौंपा है, जिसके विरोध में उद्धव गुट ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। अब ऐसे में यह देखना होगा कि आगामी दिनों में कोर्ट का क्या फैसला रहता है।
अप्रत्याशित थी ये बगावत
शरद पवार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि हमें इस बारे में तनिक भी बोध नहीं था कि महाविकास अघाड़ी सरकार में बगावत हो जाएगी। पवार ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उद्धव ठाकरे ने बिना संघर्ष किए ही इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने सहजता से इस्तीफा दे दिया, जिससे महाविकास अघाड़ी सरकार गिर गई और सत्ता गंवानी पड़ गई।
कांग्रेस को बताया अहंकारी
शरद पवार ने अपनी आत्मकथा में कांग्रेस को अहंकारी बताया है। उन्होंने कहा कि महाविकास अघाड़ी सरकार के गठन के दौरान मैंने कुछ पदों को लेकर कांग्रेस के नेताओं से बात की थी, लेकिन उस वक्त उनका रूख बहुत अहंकारी था, लेकिन मैंने उन चीजों को नजरअंदाज कर दिया था। सनद रहे कि शरद पवार ने अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत कांग्रेस से ही की थी। उन्होंने ही पहली बार सोनिया गांधी के विदेशी होने का मुद्दा उठाया था। जिसके बाद उन्होंने 1999 मे कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी का गठन किया था।
इतना ही नहीं, शरद पवार सबसे पहली बार विधायक कांग्रेस की ही टिकट पर बने थे, लेकिन बाद उन्होंने अपनी राह जुदा कर ली थी। शरद पवार ने अपने एक इंटरव्यू में यहां तक कहा था कि कांग्रेस को इस बात का डर था कि अगर शिवसेना हमारे साथ आती है, तो हमारी धर्मनिरपेक्षता वाली छवि को चोट पहुंचेगी, तो इस तरह से कई मसलों का जिक्र शरद पवार ने अपनी आत्मकथा में किया है, जिसे लेकर चर्चाएं जोरों पर हैं, लेकिन वर्तमान में जिस तरह से सियासी घमासान जारी है, उसे लेकर आगामी दिनों में कैसी स्थिति देखने को मिलती है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।