लखनऊ। ‘मन से हैं मुलायम, इरादे लोहा हैं’। मुलायम सिंह यादव के लिए ये हमेशा कहा जाता था। इसकी वजह भी थी। मुलायम ने अगर अपने करीबियों का ध्यान रखा, तो मुख्यमंत्री रहते उन्होंने कई कठोर फैसले लिए और उनको लागू कराया। इन फैसलों की वजह से वो विवादों में भी घिरे। 1990 में जब अयोध्या में विवादित ढांचे पर चढ़कर कारसेवकों ने तोड़फोड़ की, तो मुलायम ने उनको रोकने के लिए पुलिस बल को हर संभव कदम उठाने के लिए कहा। उन्होंने जरूरत पड़ने पर फायरिंग की भी इजाजत दी। पुलिस ने अयोध्या में फायरिंग की और दर्जनों कारसेवकों की मौत हुई। मुलायम को इसके बाद से ही उनके विरोधी ‘मुल्ला मुलायम’ कहने लगे। मुलायम ने बाद में एक बार कहा था कि सीएम रहते विवादित ढांचे को बचाना उनकी जिम्मेदारी थी। अगर जरूरत पड़ती, तो वो फिर फायरिंग करवाते।
मुलायम सिंह ने सीएम रहते उर्दू भाषा को बढ़ावा देने के लिए सरकारी कामकाज में इसे शामिल करने का फैसला किया। हर अफसर और मंत्री के दफ्तर के दरवाजे पर उनके नाम हिंदी के अलावा उर्दू में भी लिखे जाने लगे। मुलायम सिंह अंग्रेजी के काफी खिलाफ थे। उन्होंने एक आदेश ये भी जारी किया कि सरकारी वाहनों के अलावा यूपी में आम लोग भी गाड़ियों के नंबर हिंदी में लिखवा सकते हैं। इसपर भी विवाद हुआ क्योंकि मोटर व्हिकल एक्ट के तहत गाड़ियों के नंबर हिंदी में लिखे जाने चाहिए। बावजूद इसके मुलायम टस से मस नहीं हुए।
उनके मन की मुलायमियत भी लोगों ने देखी। जब मुलायम की रैली कवर कर लौटते वक्त लखनऊ के हिंदुस्तान अखबार के विशेष संवाददाता जयप्रकाश शाही का रोड एक्सीडेंट में निधन हुआ, तो मुलायम ने उनके घर जाकर परिवार को सिर्फ ढांढस ही नहीं दी, आर्थिक मदद भी की। इसी एक्सीडेंट में घायल हुए दैनिक आज के पत्रकार गोपेश पांडेय का सरकारी मदद से पूरा इलाज भी कराया। मुलायम एक बार पत्रकारों को जमीन देने के मामले में भी विवाद में घिरे। अपने करीबियों को रेवड़ी बांटने का आरोप उनपर लगा, लेकिन इस मामले में भी उन्होंने कदम वापस नहीं खींचे। आज भी मुलायम के चाहने वालों की कमी नहीं है। वो तमाम लोगों के ‘नेताजी’ थे, हैं और रहेंगे।