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Afghanistan: अफगानिस्तान में बहुत कम रह गए हैं अल्पसंख्यक, संख्या जानकर आप रह जाएंगे हैरान

afghanistan: कबायली गुटों में बंटे अफगानिस्तान का इतिहास 20वीं सदी से बदलना शुरू हुआ। पहले रूस ने यहां दखल दिया। रूस के दखल को खत्म करने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ मिलकर मुजाहिदीनों को हथियार दिए।

नई दिल्ली। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद वहां के अल्पसंख्यक समुदाय को लेकर चिंता जताई जा रही है। वहां रहने वाले हिंदुओं और सिखों ने भारत से शरण की गुजारिश की है। एक दौर था, जब वहां करीब 6 फीसदी हिंदू और सिख थे, लेकिन अब कुल अल्पसंख्यक ही 1 फीसदी रह गए हैं। इनमें भी सिख और हिंदू ज्यादा हैं। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा है कि सरकार इन सभी को वीजा देकर यहां लाने के लिए तैयार है। अफगानिस्तान में 1950 के दशक तक हिंदू और सिखों की तादाद करीब 7 लाख हुआ करती थी। इसके अलावा ईसाई और यहूदी भी वहां रहते थे। फिर हालात लगातार बदलने के कारण अब वहां हिंदू, सिख, यहूदी और ईसाई मिलाकर करीब 1000 अल्पसंख्यक पूरे अफगानिस्तान में रह गए हैं। बाकी हिंदू, सिख, ईसाई और यहूदी कहां गए, ये किसी को नहीं पता। समय-समय पर वैसे हिंदू और सिख वहां से आकर भारत में शरण भी लेते रहे हैं।

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अफगानिस्तान एक बड़ा देश है, लेकिन इसका ज्यादातर हिस्सा रहने लायक नहीं है। फिलहाल वहां की कुल जनसंख्या करीब 3 करोड़ 30 लाख है। इनमें पाकिस्तान और ईरान से शरण लेने आए करीब 30 लाख लोग हैं। देश की 99 फीसदी आबादी इस्लाम को मानती है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक 2050 तक यहां की आबादी 8 करोड़ से ज्यादा हो सकती है।

अफगानिस्तान में ज्यादातर लोग गांवों में रहते हैं। यहां गांवों में देश की आबादी के करीब 80 फीसदी लोग रहते हैं। जबकि, 20 फीसदी लोग शहरों में बसते हैं। काबुल, हेरात, गजनी, कंधार और मजार-ए-शरीफ यहां के बड़े शहर हैं। यहां की महिलाओं की अच्छी खासी संख्या बच्चे को जन्म देने में मौत के मुंह में जाती है। मातृ मृत्यु दर यहां प्रति 1 लाख पर करीब 400 है। जबकि, पैदा होने वाले हर 1000 बच्चों में से करीब 540 की मौत हो जाती है।

कबायली गुटों में बंटे अफगानिस्तान का इतिहास 20वीं सदी से बदलना शुरू हुआ। पहले रूस ने यहां दखल दिया। रूस के दखल को खत्म करने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ मिलकर मुजाहिदीनों को हथियार दिए। लंबे संघर्ष के बाद रूस के सैनिक हटे, तो तालिबान ने यहां कब्जा कर लिया। फिर यहां अल-कायदा का नेता ओसामा बिन लादेन आकर रहने लगा। अमेरिका पर 9/11 का हमला हुआ, तो अमेरिका ने अफगानिस्तान के तालिबान पर धावा बोल दिया। तालिबान हटा, लोकतांत्रिक सरकारें बनीं और अब अमेरिका ने जैसे ही अपनी फौज हटाई, तालिबान फिर से यहां आकर काबिज हो गया।