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पद्मिनी एकादशी 2020 : जानें व्रत कथा और पूजा विधि

पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadashi) इस साल 27 सितंबर 2020 रविवार को पड़ रही है। अधिकमास के शुक्ल पक्ष (Shukl Paksha) में आने वाली एकादशी (Ekadashi) को पद्मिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है।

नई दिल्ली। पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadashi) इस साल 27 सितंबर 2020 रविवार को पड़ रही है। अधिकमास के शुक्ल पक्ष (Shukl Paksha) में आने वाली एकादशी (Ekadashi) को पद्मिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी तीन साल में एक baar आती है, इसलिए इसका सर्वाधिक महत्व बताया गया है।

इस बार आश्विन माह का अधिकमास होने के कारण यह एकादशी 27 सितंबर 2020 रविवार को आ रही है। इसे कमला एकादशी भी कहा जाता है। इस एकादशी के दिन भगवा लक्ष्मीनारायण के साथ शिव-पार्वती की पूजा का भी विधान है। चूंकि अधिकमास के देवता स्वयं भगवान विष्णु होते हैं, ऐसे में इस एकादशी का व्रत-पूजन सभी प्रकार की सिद्धियां देने वाला होता है।

पद्मिनी एकादशी भगवान विष्णु को अति प्रिय है इसलिए इस व्रत का विधि पूर्वक पालन करने वाला विष्णु लोक को जाता है तथा सभी प्रकार के यज्ञों, व्रतों एवं तपस्चर्या का फल प्राप्त कर लेता है। इस बार अधिकमास 18 सितंबर से 16 अक्टूबर 2020 तक रहेगा।

शुभ मुहूर्त

एकादशी 26 सितंबर को सायं 6.59 से प्रारंभ हो कर एकादशी पूर्ण 27 सितंबर को सायं 7.45 तक रहेगी। व्रत का पारण 28 सितंबर को प्रात: 6.17 से 8.41 तक रहेगा।

पद्मिनी एकादशी की पूजा विधि

पद्मिनी एकादशी की पूजा karne के लिए ek din पहले से एक दिन पूर्व दशमी तिथि के दिन से व्रती को संयम का पालन करना आवश्यक है। दशमी पर रात्रि में भोजन ना करें। एकादशी के दिन प्रात: सूर्योदय के समय उठकर नित्यकर्मों से निवृत्त होकर स्नानादि के बाद सूर्यदेव को जल का अर्घ्य अर्पित करें। इसके बाद अपने पूजा स्थान को साफ-स्वच्छ कर भगवान विष्णु की पूजा करें और एकादशी व्रत का संकल्प लें।

Lord vishnu

दिनभर निराहार रहते हुए भागवत कथा, विष्णु पुराण आदि का श्रवण मनन करते रहें। सायंकाल में पुन: भगवान लक्ष्मीनारायण और शिव-पार्वती की पूजा करें। इसके बाद रात्रि के प्रत्येक प्रहर में पूजन कर ये वस्तु भेंट करें। प्रथम प्रहर में नारियल, दूसरे प्रहर में बेल, तीसरे प्रहर में सीताफल और चौथे प्रहर में नारंगी और सुपारी भेंट करें। अगले दिन द्वादशी के दिन प्रात: भगवान की पूजा करें। ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा सहित विदा करें। इसके पश्चात स्वयं भोजन करके व्रत खोलें।