नई दिल्ली। कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन में छूट मिलने से वाहन ईंधन की मांग बढ़ने और ब्रेंट क्रूड का भाव 40 डॉलर प्रति बैरल के पार जाते ही सरकारी तेल विपणन कंपनियों ने आम आदमी को झटका दिया है। कंपनियों ने रविवार को पेट्रोल और डीजल की कीमत में 60 पैसे प्रति लीटर की बढ़ोतरी कर दी। बीते 80 दिनों में यह पहला मौका है जब पूरे देश में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी की गई है। पिछली बार ईंधन की कीमतों में 16 मार्च को बदलाव किया गया था।
पेट्रोल और डीजल की कीमतों में लॉकडाउन के दौरान आए उतार-चढ़ाव के लिए राज्य सरकारें जिम्मेदार हैं। दरअसल, राज्यों के अपना राजस्व बढ़ाने के लिए वैट या सेस में की बढ़ोतरी के कारण ही पेट्रोल-डीजल की कीमतों में उछाल दर्ज किया गया था। लॉकडाउन के दौरान नकदी संकट से जूझ रहीं ज्यादातर राज्य सरकारों ने ईंधन पर टैक्स लगाकर अपनी जरूरत पूरी की।
केंद्र सरकार ने मई में पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क में 10 रुपये और डीजल पर 13 रुपये प्रति लीटर की बढ़ोतरी की थी। इसके बाद भी दोनों ईंधन की खुदरा कीमतों में कोई बदलाव नहीं किया गया था। दरअसल, उत्पाद शुल्क में की गई बढ़ोतरी को कच्चे तेल की घटी हुई कीमतों के साथ समायोजित कर दिया गया था। देश में रोज पेट्रोल-डीजल के दामों में होने वाला बदलाव कच्चे तेल के भाव के आधार पर तय किया जाता है। क्योंकि हम अपनी जरूरत का 80 फीसदी क्रूड ऑयल आयात करते हैं।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड ऑयल तीन महीने के उच्चस्तर पर पहुंचकर 42 डॉलर प्रति बैरल हो गया है। अप्रैल में कच्चा तेल 30 डॉलर प्रति बैरल के नीचे चला गया था। हालांकि, अभी भी कच्चे तेल के भाव 2019 के आखिरी समय से कम हैं। अप्रैल में पेट्रोल-डीजल की मांग भी करीब आधी रह गई थी। दरअसल, लॉकडाउन के कारण बहुत सी फैक्ट्रियां और ऑफिस बंद कर दिए गए थे। वहीं, लोगों पर घर से नहीं निकलने की पाबंदी के कारण सड़कों पर वाहन भी नहीं थे।