newsroompost
  • youtube
  • facebook
  • twitter

कोरोना के इलाज में सबसे भरोसेमंद दवा रेमेडेसिविर, सबसे कम असरकारक कौन सी ये भी जानें…

दुनियाभर में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। दुनियाभर के डॉक्टर और वैज्ञानिक लगातार वैक्सीन की खोज में लगे हैं। हम आपको कोरोनो महामारी में सबसे चर्चित ड्रग्स और ट्रीटमेंट के नतीजे बताते हैं।

नई दिल्ली। दुनियाभर में कोरोना के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। दुनियाभर के डॉक्टर और वैज्ञानिक लगातार वैक्सीन की खोज में लगे हैं। हम आपको कोरोनो महामारी में सबसे चर्चित ड्रग्स और ट्रीटमेंट के नतीजे बताते हैं।

कहा जा रहा है कि दुनियाभर के मॉडर्न मेडिसिन के सामने कोरोना से बड़ा संकट पहले कभी नहीं आया। एक्सपर्ट्स बताते हैं कि अगर तय समय में कोरोनावायरस की वैक्सीन तैयार हो जाती है तो यह इतिहास का सबसे तेज वैक्सीन प्रोग्राम होगा। आमतौर पर वैक्सीन बनाने में 10 साल तक लग जाते हैं। कोरोना के इलाज में कुछ दवाओं के अच्छे रिजल्ट मिले। कुछ ऐसी दवाएं भी हैं, जिन्होंने काफी सुर्खियां बटोरीं। हालांकि अमेरिकी हेल्थ एजेंसी एफडीए ने किसी भी ट्रीटमेंट को लाइसेंस नहीं दिया है, सिर्फ इमरजेंसी यूज की परमिशन दी है।

Remdesivir

रेमेडेसिविर

इस दवा को गिलियड साइंसेज ने तैयार किया था। यह पहली ड्रग थी, जिसे एफडीए ने कोरोना के मामलों में इमरजेंसी यूज की परमिशन दी थी। यह जीन में जाकर वायरस को रेप्लिकेट करने से रोकता है। रेमेडेसिविर को इबोला और हेपेटाइटिस-सी के खिलाफ एंटीवायरल के तौर पर टेस्ट किया गया था। ट्रायल से मिले शुरुआती डेटा बताते हैं कि ये ड्रग कोरोना के गंभीर मरीजों के हॉस्पिटलाइजेशन के समय को 15 दिन से घटाकर 11 दिन कर सकती है। मौत के मामलों में शुरुआती नतीजे असरदार नहीं रहे, लेकिन जुलाई में जारी हुए रिजल्ट संकेत देते हैं कि ये ड्रग गंभीर मरीजों में डेथ रेट भी कम कर सकता है।

डेक्सामैथासोन

सस्ती और आसानी से मिलने वाली ये ड्रग कई तरह के इम्यून रिस्पॉन्स को कमजोर कर देती है। डॉक्टर काफी समय से इसका यूज अस्थमा, एलर्जी और सूजन के इलाज के लिए करते हैं। जून में यह कोरोना से डेथ रेट कम करने वाली पहली दवा बन गई। 6000 से ज्यादा लोगों पर की गई स्टडी में सामने आया कि डेक्सामैथासोन ने वेंटिलेटर वाले मरीजों में डेथ रेट एक तिहाई कम हो गई। अभी तक यह स्टडी किसी साइंटिफिक जर्नल में पब्लिश नहीं हुई है। हो सकता है कि यह दवा उन मरीजों की मदद कम करे जो कोरोना संक्रमण के शुरुआती दौर में हैं। नेशनल इंस्टीट्यूट्स ऑफ हेल्थ ने कोरोना ट्रीटमेंट गाइडलाइंस में डेक्सामैथासोन के यूज की सलाह सिर्फ ऑक्सीजन और वेंटीलेटर सपोर्ट वाले मरीजों को दी है। ये ट्रीटमेंट्स सबसे ज्यादा प्रोन पोजिशनिंग के किए जा रहे है। इसमें मरीज को पेट के बल लेटने को कहा जाता है, जिससे उनके फेफड़े खुलते हैं। ये तरीका मरीजों में वेंटीलेटर की जरूरत को खत्म कर सकता है। फिलहाल क्लीनिकल ट्रायल्स में इलाज के फायदों की जांच की जा रही है।

वेंटिलेटर्स और रेस्पिरेटरी सपोर्ट डिवाइसेज

जो डिवाइस मरीजों को सांस लेने में मदद करती हैं, उन्हें सीरियस रेस्पिरेटरी डिजीज के खिलाफ अहम माना जाता है। नाक या मास्क के जरिए ऑक्सीजन देने पर भी कुछ मरीजों की हालत में सुधार देखा गया। वेंटिलेटर सांस लेने में मुश्किलों का सामना कर रहे मरीजों के फेफड़े ठीक होने तक मदद करता है।

वे ट्रीटमेंट जिनके सबूत अनिश्चित और मिले-जुले रहे

फेविपिराविर

इंफ्लूएंजा के खिलाफ तैयार की गई फेविपिराविर वायरस को जेनेटिक मटेरियल रेप्लिकेट करने से रोकती है। मार्च में हुई एक स्टडी से संकेत मिलते हैं ये ड्रग हवा से कोरोनावायरस निकालने में मददगार हो सकती है, लेकिन अभी भी बड़े क्लीनिकल ट्रायल्स अटके हुए हैं।

ईआईडीडी-2801

फ्लू के इलाज के लिए तैयार की गई ईआईडीडी-2801 ने सेल्स और जानवरों पर हुए कोरोनावायरस स्टडीज में अच्छे रिजल्ट दिए हैं। इसकी टेस्टिंग इंसानों पर होना बाकी है।

corona
रीकॉम्बिनेंट ऐस-2

सेल के अंदर जाने के लिए कोरोनावायरस को पहले उन्हें अनलॉक करना होगा। साइंटिस्ट्स ने आर्टिफिशियल ऐस-2 प्रोटीन तैयार किया है। यह खतरे वाले सेल्स से कोरोनावायरस को दूर रखेगा। रीकॉम्बिनेंट ऐस-2 प्रोटीन ने सेल्स पर हुए प्रयोग में भरोसेमंद रिजल्ट दिए हैं।

कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा

एक सदी पहले डॉक्टर फ्लू से ठीक हुए मरीज के खून से प्लाज्मा निकालते थे। इस कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा में एंटीबॉडीज होती थीं, जो मरीजों की मदद करती थी। रिसर्चर इस तरीके को अब कोरोना के मरीजों पर भी अपनाकर देख रहे हैं। कॉन्वालैसेंट प्लाज्मा के शुरुआती रिजल्ट भरोसेमंद रहे हैं। एफडीए ने भी कोरोनावायरस के गंभीर मरीजों के लिए इसे यूज करने की परमिशन दे दी है।

वे ट्रीटमेंट्स जो बिल्कुल भरोसेमंद नहीं रहे

लोपिनावीर और रिटोनावीर

20 साल पहले एफडीए ने इस जोड़ी को एचआईवी के ट्रीटमेंट के लिए परमिशन दी थी। हाल ही में शोधकर्ताओं ने इनका उपयोग कोरोनावायरस के मरीजों पर किया। उन्होंने पाया कि इससे वायरस रेप्लिकेट होना रुक गया। हालांकि कुछ क्लीनिकल ट्रायल्स के रिजल्ट अच्छे नहीं रहे।
जुलाई की शुरुआत में ही डब्ल्यूएचओ ने अस्पताल में भर्ती कोरोना के मरीजों में इसके ट्रायल्स बंद कर दिए थे।

hydroxychloroquine medicine

हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन और क्लोरोक्वीन

जर्मन केमिस्ट ने 1930 में मलेरिया की दवा के तौर पर क्लोरोक्वीन सिंथेसाइज की थी। इसके बाद इसका कम टॉक्सिक वर्जन हाइड्रॉक्सिक्लोरोक्वीन 1946 में तैयार हुआ। बाद में यह दवा ल्यूपस और रिह्युमैटॉयड ऑर्थराइटिस जैसी बीमारियों में भी इस्तेमाल की जाने लगी। कोरोना महामारी की शुरुआत में वैज्ञानिकों ने पाया कि दोनों ड्रग्स कोरोना को सेल की नकल बनाने से रोक रहे हैं।
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन का जमकर प्रचार किया। एफडीए ने भी अस्थाई तौर पर इसके इमरजेंसी यूज की इजाजत दे दी। बाद में यह दावा किया गया कि यह राजनीतिक दबाव में आकर ऐसा किया गया था।
जब क्लीनिकल ट्रायल्स के डेटा सामने आए तो पता चला कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन कोरोना के मरीजों और स्वस्थ लोगों के लिए मददगार नहीं है। एक बड़ी स्टडी में यह भी बताया गया कि इस दवा के नुकसान हैं। हालांकि बाद में स्टडी वापस ले ली गई थी।
डब्ल्यूएचओ, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ और नोवार्टिस ने इसके ट्रायल्स बंद कर दिए हैं। अब एफडीए चेतावनी दे रहा है कि इस ड्रग से दिल और दूसरे अंगों में गंभीर साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं।

वे ट्रीटमेंट्स जो फर्जी नुस्खे और दावों वाले रहे

ब्लीच और डिसइंफेक्टेंट्स को पीना या इंजेक्ट करना

अप्रैल में राष्ट्रपति ट्रम्प ने सलाह दी थी कि अल्कोहल या ब्लीच जैसे डिसइंफेक्टेंट्स इंजेक्ट करने से मदद मिल सकती है। ट्रम्प के इस बयान का खंडन दुनियाभर के हेल्थ प्रोफेशनल्स और रिसर्चर ने किया। उनके मुताबिक डिसइंफेक्ट को इंजेस्ट करना खतरनाक हो सकता है।

यूवी लाइट

रिसर्चर यूवी लाइट का यूह सतहों को साफ करने और वायरस मारने के लिए करते हैं। यूवी लाइट किसी बीमार के शरीर से वायरस को नहीं निकाल पाएगी। इस तरह का रेडिएशन स्किन को नुकसान पहुंचा सकता है। ज्यादातर स्किन कैंसर के केस सूरज की रोशनी में मौजूद यूवी किरणों के संपर्क में आने की वजह से ही होते हैं।

चांदी

एफडीए ने उन लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है, जो ये दावा कर रहे हैं कि चांदी के प्रोडक्ट कोरोना के खिलाफ असरदार होते हैं। कई धातुओं में नेचुरल एंटीमाइक्रोबायल प्रॉपर्टीज होती हैं, लेकिन कोरोनावायरस के मामले में कोई भी रिजल्ट सामने नहीं आया है।