नई दिल्ली। मिलिए इनसे…नाम है इनका हैदर अली…यूपी की चुनावी सरगोशियों के बीच इस नाम की चर्चा अपने शबाब पर है…आखिर होगी भी क्यों नहीं…कभी कांग्रेस की छत्रछाया में रहने वाले हैदर ने अब कांग्रेस के खिलाफ ही मोर्चा खोलने का मन लिया है…सोचकर ही हैरानी होती है कि कभी सुबह से लेकर शाम और शाम से लेकर रात तक कांग्रेस के नाम तारीफों के कसीदे पढ़ने वाले हैदर अली के साथ ऐसा क्या हुआ कि उन्होंने देश की सबसे पुरानी पार्टी के खिलाफ चुनावी मौसम में मोर्चा खोलने का मन लिया। ये वही हैदर हैं जो पहले कांग्रेस के खिलाफ एक लफ्ज़ भी सुनना पसंद नहीं करते थे, लेकिन इनके साथ फिर कुछ ऐसा हुआ, जिसने इन्हें बीजेपी का दीवाना बना दिया और अब यह आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी का सियासी किला फतह करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रहे हैं। आइए, आगे आपको हैदर अली के अब तक के सियासी सफरनामे के बारे में पूरे तफसील से बताए चलते हैं।
तो आपको बताते चलें कि पहले कांग्रेस की नौका पर सूबे की सियासी मझधार को पार करने वाले हैदर जब पार्टीजनों की उपेक्षा का शिकार होने लगे, तो उन्होंने अपना दल का दामन थाम लिया। अब अपना दल ने उन्हें रामपुर की स्वार सीट से चुनावी अखाड़े में उतारा है। जी बिल्कुल…सही समझ रहे हैं आप..वही स्वार..जहां से समाजवादी पार्टी ने आजम खां के बेटे अब्दुल्ला आजम को चुनावी मैदान में उतारा है। अब ऐसे में आप इस बात का अंदाजा लगा ही सकते हैं कि आने वाले दिनों में इस सीट से मुकाबला कितना दिलचस्प हो सकता है। अब अपना दल ने इस सीट से हैदर अली को चुनावी मैदान में उतारकर सियासी दिलचस्पी बढ़ा दी है। खास बात है कि यह सीट भी मुस्लिम बाहुल्य है। ऐसे में कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी।
हालांकि, कांग्रेस ने पहले इन्हें विगत 13 जनवरी को प्रत्याशी बनाया था। मगर इन्होंने अपना दल का दामन थाम लिया। अब आपको तो पता ही होगा कि अपना दल ने बीजेपी के साथ गठबंधन किया है, तो ऐसे में दिन-रात हैदर अली बीजेपी और अपना दल के जीतने की दुआएं मांग रहे हैं। अब उनकी दुआओं के क्या नतीजे निकलकर सामने आते हैं, यह तो फिलहाल आगामी 10 मार्च के बाद ही तय हो पाएगा। लेकिन उससे पहले आइए एक नजर हैदर अली के सियासी जीवन पर डालते हैं। तो हैदर अली के सियासी कुनबे से ताल्लुक रखते हैं। उनके पिता नवाब काजिम खां सियासत के पुराने खिलाड़ी रहे हैं। जिस सीट से अपना दल ने हैदर को चुनावी मैदान में उतारा है, उस सीट से उनके पिता कई मर्तबा विधायिकी का तगमा हासिल कर चुके हैं। उनके पिता कांग्रेस के पुराने कद्दावर नेता माने जाते हैं। कांग्रेस इस बार फिर से उनके पिता पर दांव आजमाया है और उनके बेटे पर अपना दल ने। ऐसेे में इस सीट से पिता और पुत्र के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिलेगी।
अब ऐसे में सियासी आलीमों को यह इकरार करने में कोई गुरेज नहीं है कि आगामी दिनों में हैदर अली के रूप में चले गए बीजेपी के इस दांव से कांग्रेस समेत सपा के समक्ष चुनौतियों का सैलाब उमड़ सकता है। बता दें कि बीजेपी द्वारा हैदर अली को चुनावी मैदान में उतारने का फैसला इसलिए भी काफी सुर्खियों में है, क्योंकि जब से पार्टी ने प्रत्याशियों की सूची जारी की है, तभी से उस पर मुस्लिम उम्मीदवारों को नजरअंदाज करने आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि हैदर अली के रूपे में बीजेपी की तरफ से ऐसी सभी आलोचकों को करारा जवाब मिला है।