लखनऊ। साल 2007 था, जब बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने पार्टी के चाल, चरित्र और चेहरे को बदलने के लिए बड़ा प्रयोग किया। इस प्रयोग के तहत ‘तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार’ का नारा देने वाली बीएसपी ‘हाथी नहीं गणेश है’ कहने लगी। ब्राह्मणों ने भी मायावती को पसंद किया और करिश्मा दिखाते हुए उन्हें सीएम बनवा दिया। अब फिर मायावती यूपी चुनाव से पहले ब्राह्मणों को लुभाने के लिए सम्मेलन करवा रही हैं, लेकिन उम्मीद कम ही है कि वह 15 साल पहले का करिश्मा दोहरा सकेंगी। इसकी वजह हम आपको आज बताने जा रहे हैं। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी की आंधी के सामने यूपी में बीएसपी तिनके की तरह उड़ गई थी। उसका एक भी सांसद नहीं चुना गया था। 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भी उसकी दुर्गति हुई और सिर्फ 19 विधायक चुने गए। 2019 में विषम हालत देखते हुए मायावती ने बीएसपी की जन्मजात दुश्मन सपा से हाथ मिलाया। नतीजे में बीएसपी को 10 और सपा को 5 लोकसभा सीटों पर जीत मिली।
पहले ज्यादातर दलित बीएसपी के साथ थे, लेकिन 2014 से ‘खेला’ हो गया। बीजेपी अब यूपी के करीब 21.5 फीसदी दलित वोटों में से भी काफी को साथ ले चुकी है। मायावती के साथ हालांकि उनके सबकास्ट यानी जाटव अब भी जुड़े हैं। करीब 18 फीसदी मुसलमान और 9 फीसदी यादव वोटर आम तौर पर सपा का वोट बैंक माना जाता है। तो फिर 12 फीसदी ब्राह्मणों के सहारे बीएसपी क्या यूपी में सत्ता की सवारी कर लेगी ?
यूपी के 12 जिलों में ब्राह्मण वोटरों की तादाद 15 से 20 फीसदी है। ये जिले हैं वाराणसी, चंदौली, महराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, बस्ती, संत कबीरनगर, अमेठी, बलरामपुर, कानपुर और प्रयागराज। लेकिन उसे इन 12 के अलावा बहुमत के लिए कुल 403 सीटों में से 190 और सीटें जीतनी होंगी। ये आंकड़ा बीएसपी के लिए इतना आसान तो नहीं दिख रहा।
बहरहाल, शुक्रवार को अयोध्या से बीएसपी ने अयोध्या से ब्राह्मण लुभाओ अभियान के तहत सम्मेलन की शुरुआत की है। आज और 25 जुलाई को अपने गढ़ अंबेडकरनगर, 26 जुलाई को प्रयागराज, 27 जुलाई को कौशांबी, 28 जुलाई को प्रतापगढ़ और 29 जुलाई को सुल्तानपुर में बीएसपी का ब्राह्मण सम्मेलन होगा।