जयपुर। जुलाई का महीना है। जून का महीना खत्म हुए 10 दिन हो चुके हैं। अगर इस साल के शुरुआत से देखा जाए, तो अप्रैल से लेकर जून तक कांग्रेस शासित राजस्थान में हर महीने सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुई हैं। करौली से शुरू हुआ हिंसा का दौर जोधपुर होते हुए उदयपुर तक इस दौरान पहुंचा। सूबे में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। इससे पहले तीन बड़ी सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं से सीएम अशोक गहलोत की सरकार परेशान है। ऊपर से नूपुर शर्मा का सिर काटने की बात कहने वाले अजमेर दरगाह के खादिम सलमान चिश्ती को बचाने की पुलिस की कोशिश का वीडियो वायरल होने से भी सरकार को विपक्ष लगातार घेर रहा है। ऐसे में अशोक गहलोत सरकार आज बकरीद के मौके पर काफी सख्ती बरत रही है। जगह-जगह संवेदनशील जगहों पर बड़ी तादाद में सुरक्षाबल तैनात किए गए हैं।
बात करें राजस्थान में इस साल हुई सांप्रदायिक हिंसा की, तो सबसे पहले करौली कस्बे में हिंदू नववर्ष के मौके पर 2 अप्रैल को निकाली गई बाइक रैली पर एक समुदाय के लोगों ने जमकर पथराव किया। फिर 35 से ज्यादा दुकानों, मकानों और गाड़ियों में आग लगा दी थी। हिंसा में पुलिसवालों समेत 40 से ज्यादा लोग घायल हुए थे। 15 दिन कर्फ्यू लगाना पड़ा था। इस घटना के ठीक एक महीने बाद 2 मई को जोधपुर में परशुराम जयंती के मौके पर जालोरी गेट पर भगवा झंडे हटाने और इस्लामी झंडे लगाने के मसले पर हिंसा भड़की। अगले दिन ईद के मौके पर नमाज के लिए लगाए गए लाउडस्पीकर्स को भीड़ ने हटा दिया। इसके बाद जमकर हिंसा हुई। 10 थाना इलाकों में कर्फ्यू लगाने की नौबत आ गई।
ताजा घटना 28 जून को हुई। उदयपुर के धानमंडी इलाके में टेलर कन्हैयालाल की दो मुस्लिम लोगों ने धारदार हथियार से हत्या कर दी। दोनों कपड़े का नाप देने के बहाने कन्हैयालाल की दुकान पर आए थे। कन्हैयालाल को बचाने की कोशिश में साथी ईश्वर सिंह भी गंभीर रूप से घायल हुआ। खास बात ये कि करौली की घटना के बाद से सीएम अशोक गहलोत लगातार कहते रहे कि सरकार हर हाल में सांप्रदायिक हिंसा को सख्ती से रोकेगी, लेकिन जोधपुर से लेकर उदयपुर तक की घटनाओं ने गंभीर हालात की ओर इशारा किया है।