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अगर नहीं हुआ सोशल डिस्टेंसिंग का ठीक से पालन तो भविष्य में देश की इतनी फीसदी आबादी होगी कोरोना के चपेट में!

देश की 70 से 80 फ़ीसदी आबादी कोरोनावायरस की चपेट में आई तो क्या वाकई बचे हुए लोगों में हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो जाएगी ?

नई दिल्ली। जब से भारत में कोरोनावायरस फैला है तब से ही इसको लेकर तमाम भ्रांतियां, कई झूठी खबरें और कई सवाल सोशल मीडिया पर देखने को मिल रहे हैं। इन सवालों में अमूमन कोरोनावायरस का खतरा कब तक देश में रहेगा, कोरोना वायरस की वजह से कितने लोग प्रभावित होंगे, यह क्या मनुष्यों की प्रकृति में बदलाव करेगा, क्या हमारे अंदर कोरोनावायरस से लड़ने की शक्ति स्वतः पैदा हो जाएगी, क्या आने वाले वक्त में भारत कोरोनावायरस पर काबू पा सकता है ?

कुछ इस तरह के सवाल अक्सर देखने को मिलते हैं। कोरोनावायरस जैसे बड़े खतरे को देखते हुए लोगों के मन में इस तरह के सवाल उठना लाजमी है और उन सवालों के जवाब महामारी विशेषज्ञ या फिर डॉक्टर ही दे सकते हैं। इन्हीं सवालों को लेकर एक समाचार चैनल ने दो विशेषज्ञ डॉक्टरों, चंद्रकांत एस पांडव और डॉक्टर नरेंद्र अरोड़ा से बातचीत की। इन दोनों डॉक्टर्स को दिल्ली के एम्स में एक लंबे वक्त तक काम करने का अनुभव है।

पहला सवाल –
देश में कब तक कोरोनावायरस का खतरा यूं ही रहेगा और कितने लोग इससे प्रभावित होने की संभावना है ?

जवाब- यह वायरस लंबे समय तक साथ रहेगा। सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया गया तो इसके संक्रमण से हम लंबे समय तक बच सकते हैं। ऐसा न किया तो भविष्य में देश की 70 से 80% आबादी इस वायरस की चपेट में आ सकती है।

दूसरा सवाल-
देश की 70 से 80 फ़ीसदी आबादी इस वायरस की चपेट में आई तो क्या वाकई बचे हुए लोगों में हर्ड इम्यूनिटी विकसित हो जाएगी ?

जवाब- हां, बड़ी आबादी के वायरस से प्रभावित होने पर बाकी बचे 20% लोगों में कोरोना से लड़ने की क्षमता यानी हर्ड इम्युनिटी पैदा हो पाएगी, लेकिन अगर एक बड़ी आबादी एक साथ इस वायरस से संक्रमित हो गई तो हमारे देश के लिए उसे संभालना मुश्किल हो जाएगा इसीलिए सबसे बेहतर उपाय इस वक्त सिर्फ इस वायरस से बचाव है और इसकी रोकथाम के लिए अधिक प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। क्योंकि सिर्फ उसी तरीके से हम इसका खतरा कम कर सकते हैं।

तीसरा सवाल-
जिस सोशल डिस्टेंसिंग की हर तरफ बात हो रही है आखिर कितने लंबे वक्त तक इतने बड़े देश में उसको रख पाना संभव है ?

जवाब- मौजूदा वक्त में भारत के पास सोशल डिस्टेंसिंग से अच्छा कोई भी विकल्प मौजूद नहीं है। यह समय की मांग है, और सोशल डिस्टेंसिंग का यह समय एक से डेढ़ साल तक हो सकता है। क्योंकि वैज्ञानिक लगातार कोरोना से बचने के लिए वैक्सीन और दवा के निर्माण कार्य में लगे हुए हैं। जब तक ये नहीं बनती है, तब तक सोशल डिस्टेंसिंग और साफ-सफाई ही सबसे अच्छी दवा और वैक्सीन होगी। हालांकि, जान बचाने के लिए लोगों को बुनियादी चीजें उपलब्ध कराना होगा। इसके लिए देश को इमरजेंसी कॉरिडोर भी जरूर बनाना चाहिए।

चौथा सवाल-
क्या कोरोनावायरस के खतरे को देखते हुए भारत में हो रही जांचों का आंकड़ा बेहद कम है ?

जवाब- यह बात सत्य है कि शुरुआती दौर से ही ज्यादा जांच होनी चाहिए थी। लेकिन इतने बड़े स्तर की तकनीक और सुविधाएं हमारे पास नहीं होने की वजह से वह संभव नहीं हो पाया। जांच का दायरा अब और बढ़ाना चाहिए, क्योंकि अब तो ऐसे मरीज आ रहे हैं जिनमें कोई लक्षण नहीं दिखे थे।

अलग-अलग राज्यों के जिलों में रैंडम सैंपलिंग करके जांच होनी चाहिए। इससे निष्कर्ष निकलेगा कि वायरस कहां और किस रूप में फैला हुआ है। इससे आगे की रणनीति तैयार करने में मदद मिलेगी। राजस्थान का भीलवाड़ा मॉडल इसका उदाहरण है। क्योंकि भारत की आबादी बेहद ज्यादा है इसलिए अधिक से अधिक लोगों की जांच हमें करनी होगी जिससे कि इसका कम्युनिटी स्प्रेड ना हो।