श्रीहरिकोटा। इसरो के वैज्ञानिकों ने एक और अहम काम कर दिखाया है। इसरो वैज्ञानिकों ने नॉटी ब्वॉय कहे जाने वाले अपने जीएसएलवी रॉकेट से इनसैट-3डीएस Insat-3DS को सफलता से अंतरिक्ष में प्रक्षेपित कर दिया। इनसैट-3डीएस को अब भूस्थैतिकीय कक्षा यानी जियो सिन्क्रोनस ऑर्बिट में स्थापित किया जाएगा। इस उपग्रह से भारत और आसपास के देशों में मौसम पर हमेशा नजर रखी जा सकेगी। जिससे मौसम का पूर्वानुमान और सटीकता से जारी हो सकेगा और लोगों को पहले से ही खतरों के बारे में पता चल जाएगा। ये सैटेलाइट 10 साल तक काम करने के लिए तैयार किया गया है और तीसरी पीढ़ी का उपग्रह है।
#WATCH | Andhra Pradesh: ISRO launches INSAT-3DS meteorological satellite onboard a Geosynchronous Launch Vehicle F14 (GSLV-F14), from Satish Dhawan Space Centre in Sriharikota.
(Source: ISRO) pic.twitter.com/kQ5LuK975z
— ANI (@ANI) February 17, 2024
इनसैट-3डीएस सैटेलाइट में ऐसे कैमरे और यंत्र लगे हैं, जिनसे समुद्र की सतह का बारीकी से अध्ययन हो सकेगा। इससे समुद्र की दिशा से आने वाली हवाओं और चक्रवात के बारे में छोटी से छोटी जानकारी मिल सकेगी और आपदा के बारे में मौसम विभाग पहले से ज्यादा बेहतर अनुमान लगा सकेगा। इनसैट-3डीएस सैटेलाइट से प्राकृतिक आपदा के बारे में पहले से ही सटीक जानकारी मिलने से लोगों के बचाव के लिए काफी पहले से सरकारें प्रभावी कदम उठा सकेंगी। मौसम विभाग के लिए ये उपग्रह बहुत अहम साबित होने जा रहा है। ये नया सैटेलाइट पहले के भेजे गए इनसैट सीरीज के सैटेलाइट्स के स्थान पर काम करने वाला है।
इनसैट-3डीएस को जिस जीएसएलवी रॉकेट से अंतरिक्ष में भेजा गया, उसे नॉटी ब्वॉय कहा जाता है। खुद इसरो के वैज्ञानिकों ने ये नाम रखा है। इसकी वजह ये है कि जीएसएलवी के अब तक हुए 16 में से 4 रॉकेट उड़ान के दौरान ही नष्ट हो गए थे। इसरो के वैज्ञानिकों ने इसके बाद जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट बनाया। जिसकी सफलता 100 फीसदी रही है। जीएसएलवी में स्ट्रैप ऑन रॉकेट के अलावा 4 चरणों का मुख्य रॉकेट होता है। इसमें क्रायोजेनिक इंजन का भी इस्तेमाल किया जाता है। दुनिया के बड़े देशों के अलावा भारत के पास ही क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन बनाने की क्षमता है।