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Guest House Kand: जानिए 1995 का वो गैस्ट हाउस कांड, जिसके बाद मुलायम और मायावती बन गए थे एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन

Guest House Kand: तो मुलायम और मायावती के पीछे की इस दुश्मनी के पीछे की वजह जानने के लिए हमें साल 1992 में जाना होगा, जब मुलयाम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन किया था। समाजवादी पार्टी के गठन के बाद उन्होंने सूबे में अपनी सरकार बनाने के लिए जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए मायावती के साथ दोस्ती का बढ़ाया।

नई दिल्ली। सुबह के कुछ 8 बजकर 16 मिनट हो रहे होंगे…एकाएक खबर आती है कि समाजवादी पार्टी के प्रणेता मुलयाम सिंह यादव अब हमारे बीच नहीं रहे…उनका निधन हो गया….इस खबर के प्रकाश में आने के बाद पूरे देश में शोक की लहर दौड़ चुकी है… भारतीय राजनीति में हर कोई नेताजी के निधन पर शोक व्यक्त कर रहा है…मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने नेताजी के निधन पर प्रदेश में तीन दिन के राजकीय शोक की घोषणा की है, तो वहीं दूसरी तरफ  बिहार में एक दिन के राजकीय शोक की घोषणा की गई है। नेताजी की पिछले कुछ दिनों से तबीयत नासाज थी। गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में वे उपचाराधीन थे। हालांकि, इससे पूर्व भी कई मर्तबा उनकी तबीयत नसाज रह चुकी थी, लेकिन इस बार उनकी तबीयत कुछ ऐसी बिगड़ी कि वो हम सभी को हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कहकर चले गए। पीएम मोदी से लेकर अमित शाह तक ने उनके निधन पर दुख व्यक्त किया है। इस बीच उनसे जुड़े कुछ सियासी किस्सों को लेकर चर्चाएं हो रही हैं। इसी कड़ी में इस रिपोर्ट में हम आपको गैस्ट हाउस कांड के उस किस्से के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बाद कभी सत्ता के लिए एक-दूसरे से दोस्ती का हाथ बढ़ाने वाले मुलायम और मायावती एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए थे।

फाइल फोटो

1995 का गैस्ट हाउस कांड

तो मुलायम और मायावती के दुश्मनी के पीछे की वजह जानने के लिए हमें साल 1992 में जाना होगा, जब मुलयाम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी का गठन किया था। समाजवादी पार्टी के गठन के बाद उन्होंने सूबे में अपनी सरकार बनाने के लिए जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए मायावती के साथ दोस्ती का बढ़ाया। वहीं बसपा प्रमुख ने भी इस दोस्ती के हाथ को सहर्ष स्वीकार कर लिया। जिसके बाद सूबे में सपा और बसपा के गठबंधन से सरकार बनी और मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज होने में कामयाब हुए, लेकिन फिर एकाएक कुछ सियासी कारणों की वजह से साल 1995 में बसपा प्रमुख मायावती ने अपने कदम पीछे खींच लिए जिसका नतीजा यह हुआ कि मुलायम सिंह यादव की सरकार अल्पमत में गई। मुलायम की सीएम कुर्सी खतरे में आ गई। जिसके बाद सपा कार्यकर्ताओं का पारा अपने चरम पर पहुंच गया और उन्होंने मायावती के खिलाफ मोर्चा ही खोल दिया और मोर्चा भी कोई छोटामोटा नहीं, बल्कि ऐसा जिसने मुलायम और मायावती के बीच अदावत पैदा कर दी।

फाइल फोटो

वहीं, मायावती के कदम पीछे खींच लेने के बाद भड़के सपा कार्यकर्ताओं को जैसे ही खबर लगी कि बसपा प्रमुख लखनऊ के गैस्ट हाउस में ठहरीं हुईं हैं, तो सपा कार्यकर्ताओं ने वहां पहुंचकर जमकर बवाल काटा। बसपा विधायकों के साथ मारपीट की। बसपा कार्यकर्ताओं को जमकर पीटा। यहां तक की मायावती के साथ भी बदतमीजी की गई। उनके लिए अभद्र शब्दों का इस्तेमाल किया गया। उनके लिए जातिसूचक शब्दों का भी इस्तेमाल किया गया था और यह सबकुछ सपा कार्यकर्ताओं ने मायावती द्वारा अपने कदम पीछे खींच लेने की वजह से किए थे, जिसके बाद दोनों ही दलों के बीच लंबी सियासी खाई पैदा हो गई। जिसके बाद दोनों ही एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन बन गए। सबको लगा कि अब ये दोनों एक-दूसरे के अंतिम क्षण तक दुश्मन ही बने रहेंगे, लेकिन वो कहते हैं ना कि राजनीति में ना कोई किसी का दोस्ता होता है, ना कोई दुश्मन, यहां तो सिर्फ और सिर्फ प्रत्येक व्यक्ति को अवसर के तराजू पर तौला जाता है।

मुलायम सिंह यादव और मायावती (फाइल)

बता दें कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा और बसपा ने एक-दूसरे से दोस्ती का हाथ बढ़ाया था। दोनों ही दलों ने आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के लिए गठबंधन की नौका की सवारी करने की फैसला किया था, जिसे जानकर भारतीय राजनीति में सभी के होश फाख्ता हो गए थे, लेकिन फिर इसके बाद सभी ने यह कहकर अपने मन को शांत कर लिया कि राजनीति में ना कोई किसी का दोस्त होता है और ना कोई किसी का दुश्मन होता है।