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Punjab: 33 साल पुराने मामले पर सुप्रीम कोर्ट से सिद्धू ने लगाई गुहार, बोले- ‘बेदाग रहा है करियर, अब…

Punjab: जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच इस केस की सुनवाई कर रही है। मई साल 2018 में सिद्धू को सुप्रीम कोर्ट से ही 1,000 का जुर्माना भरने का दंड मिला था। सिद्धू पर धारा 323 IPC के तहत कार्रवाई हुई थी।

नई दिल्ली। पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू का नाम अक्सर चर्चा में बना रहता है। कभी अपनी किसी बयान को लेकर, तो कभी अपने पार्टी प्रमुखों के खिलाफ तल्ख तेवर को लेकर…एक बार फिर नवजोत सिंह सिद्धू चर्चा में हैं लेकिन इस बार उनके चर्चा में रहने का कारण 33 साल पुराना एक मामला है। दरअसल, 33 साल पुराने रोड रेज मामले में नवजोत सिंह सिद्धू ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। दाखिल किए गए हलफनामा में सिद्धू ने कोर्ट से पुनर्विचार याचिका खारिज करने की अपील की है। सिद्धू ने अपने राजनीतिक और खेल करियर को बेदाग होने का हवाला देते हुए कहा है कि सांसद के रूप में भी उनका रिकॉर्ड बेदाग रहा है। वो कानून का पालन करने वाले नागरिक हैं। ऐसे में अब इस मामले में आगे सजा नहीं होनी चाहिए।

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बता दें, 1988 के रोड रेज केस में नवजोत सिंह सिद्धू पर ₹1,000 का जुर्माना लगा था। बाद में इसके खिलाफ पीड़ित परिवार की ओर से रिव्यू पेटिशन दाखिल की गई थी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सिद्धू को पीड़ित परिवार की याचिका पर सितम्बर 2018 में नोटिस मिला था। इस मामले में 65 साल के बुजुर्ग गुरनाम सिंह की मौत हो गई थी। सिद्धू के साथ मामले में उनके साथी रुपिंदर सिंह संधू भी आरोपित हैं।


नोटिस के जवाब में सिद्धू ने कही ये बात

नोटिस के जवाब में सिद्धू ने कहा है, “एक राजनेता के तौर पर मैंने बहुत सारे सामाजिक और जनहित के काम किए हैं। मैंने तमाम जरूरतमंदों की सेवा की है। कई प्रोजेक्टों को स्थापित करने में सहयोग प्रदान किया है। इसलिए मैं अब और अधिक दंडित किए जाने योग्य नहीं हूँ। आरोपी और पीड़ित के बीच कोई पुरानी दुश्मनी नहीं थी। साथ ही मेरे द्वारा किसी भी हथियार का इस्तेमाल नहीं किया गया था।”

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1 साल की जेल और 1,000 का जुर्माना

जस्टिस ए एम खानविलकर और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच इस केस की सुनवाई कर रही है। मई साल 2018 में सिद्धू को सुप्रीम कोर्ट से ही 1,000 का जुर्माना भरने का दंड मिला था। सिद्धू पर धारा 323 IPC के तहत कार्रवाई हुई थी। इसमें अधिकतम 1 साल की जेल और ₹1,000 जुर्माना या दोनों एक साथ की सजा होती है। अब इस मामले पर पीड़ित परिवार ने सुप्रीम कोर्ट से सभी सबूतों की जांच की मांग की है।