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EWS Quota: आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10 फीसदी आरक्षण सही, मोदी सरकार के संविधान संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट की मुहर

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10 फीसदी आरक्षण देने का केंद्र सरकार का फैसला सही है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने पक्ष में और चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट ने विपक्ष में फैसला दिया।

नई दिल्ली। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10 फीसदी आरक्षण देने का केंद्र सरकार का फैसला सही है। जस्टिस दिनेश माहेश्वरी, जस्टिस बेला त्रिवेदी और जस्टिस जेबी पारदीवाला ने पक्ष में और चीफ जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस रवींद्र भट ने विपक्ष में फैसला दिया। 5 में से 3 जजों की राय आरक्षण के पक्ष में होने से ये लागू रहेगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान पीठ बनाई थी। इस मामले में सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुनाया है।

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आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने का प्रावधान मोदी सरकार ने संविधान के 103वें संशोधन से किया था। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी गई। याचिका दाखिल करने वालों ने दलील दी कि नियम के हिसाब से 50 फीसदी से ज्यादा आरक्षण नहीं हो सकता। इसके अलावा ये दलील भी दी गई कि एससी, एसटी और ओबीसी में भी गरीब हैं। फिर ये आरक्षण सामान्य वर्ग को ही क्यों दिया जा रहा है।

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सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। चीफ जस्टिस 8 नवंबर यानी कल रिटायर होने वाले हैं। ऐसे में वो और साथी जज आज इस अहम मसले पर फैसला सुना चुके हैं। बता दें कि आरक्षण के नियमों के तहत एससी को 15 फीसदी, एसटी को 7.5 फीसदी और ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण दिया जाना पहले से तय है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट का आज का फैसला सामान्य वर्ग के लिए काफी अहम साबित होने वाला है। अब उनको शिक्षा और रोजगार में 10 फीसदी आरक्षण का लाभ मिल सकेगा। गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले आए इस फैसले से बीजेपी इसे अपने पक्ष में मुद्दा भी बना सकेगी।