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Supreme Court: माओवादी लिंक मामले में डीयू के पूर्व प्रोफेसर को तगड़ा झटका, सुप्रीम कोर्ट ने पलटा बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला

Supreme Court: दरअसल, इस पूरे मामले को विस्तार से समझने से पूर्व आपको हमारे साथ साल 2014 में चलना होगा। जब माओवादियों से कथित लिंक के मामले में प्रोफेसर को गिरफ्तार किया गया था। बता दें कि तब से लेकर अब तक प्रोफेसर सलाखों के पीछे ही कैद हैं। हालांकि, बीते दिनों उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट की ओर से रिहाई मिली थी, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने उस पर रोक लगा दी है।

नई दिल्ली। दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को सुप्रीम कोर्ट ने माओवादियों से कथित लिंक मामले बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा मिली रिहाई पर रोक लगा दी है। मालूम हो कि विगत दिनों बॉम्बे हाईकोर्ट ने जीएन साईबाबा को माओवादी कथित लिंक मामले में रिहाई दे दी थी, जिसे अभियोजन पक्ष द्वारा सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। इसी पर आज सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जीएन साईबाबा को बड़ा झटका देते हुए उनकी रिहाई पर ब्रेक लगा दिया।हालांकि, अभी तक जीएन साईबाबा मामले में कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आया है। शीर्ष न्यायालय ने आगामी 8 दिसंबर को अगली सुनवाई सूचीबद्ध की है। ऐसे में कोर्ट का फैसला क्या होता है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी, लेकिन आइए उससे पहले ये जान लेते हैं कि आखिर यह पूरा माजरा क्या है, जिस पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर को बड़ा झटका दिया है।

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दरअसल, इस पूरे मामले को विस्तार से समझने से पूर्व आपको हमारे साथ साल 2014 में चलना होगा। जब माओवादियों से कथित लिंक के मामले में प्रोफेसर को गिरफ्तार किया गया था। बता दें कि तब से लेकर अब तक प्रोफेसर सलाखों के पीछे ही कैद हैं। हालांकि, बीते दिनों उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट की ओर से रिहाई मिली थी, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने उस पर रोक लगा दी है। दरअसल, दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर पर आरोप है कि वे माओवादियों की मदद करते थे और उन्हें नीतिगत सूचनाएं लीक करते थे। पूर्व प्रोफेसर पर आरोप है कि वे माओवादियों के लिए एक कुरियर के रूप में काम करते थे।

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इस पूरे मामले को लेकर जब उनके खिलाफ शिकायत दर्ज की गई, तो कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए उनके खिलाफ कार्रवाई का सिलसिला शुरू किया। ध्यान रहे कि इससे पूर्व अभियोजन पक्ष की ओर से प्रोफेसर के खिलाफ यूएपीए के तहत कार्रवाई कि मांग की गई थी, लेकिन इस मांग को स्वीकार नहीं किया गया। बहरहाल, अब मामले की अगली सुनवाई आगामी 8 दिसंबर को सूचीबद्ध की गई है। अब ऐसी स्थिति में कोर्ट का क्या फैसला आता है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी।