लखनऊ। उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव से पहले सियासी गहमागहमी शुरू हो गई है। एक तरफ योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में बीजेपी लगातार अपने दावों को मजबूत करने में जुटी है तो वहीं दूसरी तरफ निकाय चुनाव में समाजवादी पार्टी की मुसीबत अपनों ने ही बढ़ा दी है। अब जो नुकसान अपने ही नेताओं ने दिया ही उसकी भरपाई के लिए अखिलेश यादव भी कमर कस चुके हैं। पार्टी के भीतर कई ऐसे नेता भी हैं जिन्होंने टिकट ने मिलने के कारण बगावत करते हुए निर्दलीय नामांकन दाखिल कराया है। ऐसी ही एक सीट है झांसी की जहां, नगर निगम के मेयर पद पर भी पार्टी में विरोध नजर आने लगा है।
जानकारी के लिए आपको बता दें कि समाजवादी पार्टी ने मेयर कैंडिडेट्स की पहली लिस्ट में झाँसी से रघुवीर चौधरी को प्रत्याशी बनाकर उतारा था, लेकिन किन्हीं कारणों के चलते सिर्फ 10 घंटे के भीतर पार्टी का फैसला बदला गया और रघुवीर से टिकट छीनकर पूर्व विधायक सतीश जकारिया को सौंप दिया। ये बात जाहिर तौर पर रघुवीर चौधरी को रास नहीं आने वाली थी, हुआ भी ऐसा ही, पार्टी से नाराज चल रहे रघुवीर ने बगावत कर दी और निर्दलीय नामांकन पात्र दाखिल कर डाला। ठीक इसी तरह एक और सीट पर अखिलेश यादव को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। ये सीट है मैनपुरी की, जहां से अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल सांसद हैं। यहां से सपा ने सुमन वर्मा को प्रत्याशी घोषित किया तो पार्टी के इस फैसले से नाराज होकर पूर्व पालिका अध्यक्ष साधना गुप्ता ने पार्टी को अलविदा कहते हुए निर्दलीय नामांकन दाखिल कर दिया।
कुछ इसी प्रकार के हालात चंदौली और बिजनौर में भी हैं। यहां भी पार्टी के फैसले से नाराज नेताओं ने पार्टी से अलग रास्ता अख्तियार किया है। चंदौली जिले की नगर पालिका परिषद सीट पंडित दीन दयाल नगर में समाजवादी पार्टी के नेता उदय खरवार को टिकट नहीं दिया गया तो उन्होंने सपा को अलविदा कहकर कांग्रेस का दामन थाम लिया। वहीं बिजनौर में सपा के सहयोगी रालोद ने बागियों को अपने यहां शरण देते हुए टिकट थमा दिया है। इस तरह अखिलेश यादव के लिए चुनाव से ऐन पहले इस तरह से नेताओं का बगावत करना बड़ा सिरदर्द है। क्या अखिलेश यादव डैमेज कंट्रोल कर सकेंगे ये देखना दिलचस्प होगा।