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बर्मिंघम की वैक्सीन एक्सपर्ट का बड़ा दावा, वैक्सीन मुंह से खाने के बजाय ऐसे लेने से करेगी ज़्यादा असर

कुछ वैज्ञानिक नसल स्प्रे (Nasal spray) के जरिए वैक्सीन (Corona Vacine) को शरीर में पहुंचाना ज्यादा बेहतर विकल्प मानते हैं। चलिए जानते हैं नसल स्प्रे क्या वाकई बेहतर विकल्प होगा।

नई दिल्ली। दुनियाभर में कोरोनावायरस (Corona virus) के कुल मामलों (Corona Cases) की संख्या 2.54 करोड़ के पार पहुंच गई है, जबकि इस बीमारी से 849,000 से अधिक लोग जान गंवा चुके हैं। ऐसे में इस महामारी से दुनिया को बचाने के लिए सैकड़ों वैक्सीन (Corona Vaccine) पर काम जारी है। कोरोना वैक्सीन का रूप कैसा होगा और वो किस तरह शरीर में जाकर इस भयंकर रोग का खात्मा करेगी, इसे लेकर अभी तक कोई मजबूत दावा नहीं किया गया है। हालांकि कुछ वैज्ञानिक नसल स्प्रे (Nasal spray) के जरिए वैक्सीन को शरीर में पहुंचाना ज्यादा बेहतर विकल्प मानते हैं। चलिए जानते हैं नसल स्प्रे क्या वाकई बेहतर विकल्प होगा।

CORONAVIRUS

वैसे तो कोरोना को लेकर कई शोध और रिपोर्ट सामने आ रही हैं लेकिन बर्मिंघम की अल्बामा यूनिवर्सिटी की इम्यूनोलॉजिस्ट और वैक्सीन डेवलपर फ्रांसिस कहती हैं कि क्लीनिकल ट्रायल में मौजूद ज्यादातर वैक्सीन मसल इंजेक्शन के जरिए बॉडी में डिलीवर किए जाते हैं। वैक्सीन को हाथ के ऊपरी हिस्से की तरफ लगाया जाता है। मांसपेशियों में इंजेक्शन का इम्यून पर अच्छा रिस्पॉन्स देखने को मिलता है। इसी वजह से ज्यादातर वैक्सीन डेवलपर यहीं से शुरुआत करते हैं।

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वैक्सीन डेवलपर फ्रांसिस एक वैक्सीन निर्माता कंपनी ‘अल्टइम्यून’ के साथ काम करती हैं। उन्होंने बताया कि मांसपेशियों में इंजेक्शन का ‘सिस्टमैटिक रिस्पॉन्स’ तो मिलता है, लेकिन ‘लोकल रिस्पॉन्स’ नहीं मिल पाता है। जेनेटिक एंटीबॉडीज जो शरीर के विभिन्न हिस्सों में खून के जरिए पहुंचती है, उसे सिस्टमैटिक रिस्पॉन्स कहा जाता है।

लेकिन कोरोना वायरस जैसे किसी रेस्पिरेटरी वायरस के इंफेक्शन की शुरुआत आमतौर पर नाक या गले से ही होती है। इस तरह के इंफेक्शन इम्यूनिटी को घेरने से पहले काफी देर तक नाक और गले में रहते हैं। मांसपेशियों में इंजेक्शन के जरिए दी जाने वाली वैक्सीन रोगी को एक बड़े खतरे से तो बचा सकती है, लेकिन गले और नाक में दवा ना जाने की वजह से इंफेक्शन फैलने का खतरा तब भी बना रहेगा। नाक में सीधे वैक्सीन जाने से एक अलग तरह की इम्यूनिटी बढ़ती है, जो नाक और गले के बीच पाई जाने वाली एक लाइन की कोशिका में होता है।

उनके मुताबिक, ‘इंट्रानसल रूट’ के जरिए दी जाने वाली वैक्सीन भी सिस्टमैटिक इम्यूनिटी पर असर दिखाती है। सिस्टमैटिक इम्यूनिटी गंभीर रोगों से शरीर को बचाने का काम करती है। जबकि लोकल इम्यूनिटी नाक और गले के इंफेक्शन को खत्म करती है, जिससे छींकने या खांसने पर ड्रॉपलेट्स के जरिए बाहर इंफेक्शन फैलता है।